जमानत की शर्त के तहत आरोपी को पुलिस स्टेशन में उपस्थित होना मानवाधिकारों के हनन का कारण बन सकता है, झूठे आरोपों की गुंजाइश दे सकता है: गुजरात हाईकोर्ट

Update: 2024-07-24 10:32 GMT

गुजरात हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि आरोपी को पुलिस स्टेशन में उपस्थित होने की शर्त के तहत शिकायत, मानवाधिकारों का हनन और झूठे आरोप लग सकते हैं।

उन्होंने कहा,

“यह बताने की कोई जरूरत नहीं है कि पुलिस स्टेशन में उपस्थिति दर्ज करने की ऐसी शर्तें कई शिकायतों को आमंत्रित करेंगी, जो मानवाधिकारों के हनन का कारण भी बन सकती हैं और झूठे आरोपों की गुंजाइश दे सकती हैं, जिससे कार्यवाही की बहुलता और असत्यापित पहलू हो सकते हैं।”

जस्टिस गीता गोपी ने कहा,

"कई बार दावों और प्रतिदावों की प्रामाणिकता के बारे में पहलू को सत्यापित करने के लिए न्यायालय को सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध नहीं होती।"

यह टिप्पणी मजिस्ट्रेट न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देने वाली पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते समय आई, जिसने आवेदक की जमानत रद्द कर दी थी। यह तब हुआ जब जांच अधिकारी ने जमानत की शर्त के उल्लंघन की रिपोर्ट की जिसके तहत आवेदक को निर्दिष्ट दिन पुलिस स्टेशन में अपनी उपस्थिति दर्ज करानी थी।

आवेदक ने दावा किया कि वह अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में देर कर गया, क्योंकि उसे किसी के अंतिम संस्कार में शामिल होना था। उसने दावा किया कि वह उसी दिन थोड़ी देर से पुलिस स्टेशन गया था लेकिन आईओ ने बताया कि रिपोर्टिंग का समय बीत चुका था और उसकी उपस्थिति आधिकारिक रूप से दर्ज नहीं की गई।

प्रस्तुतियों और मामले के रिकॉर्ड की समीक्षा करने के बाद न्यायालय ने पाया कि आवेदक को अपराध की गंभीरता, उभरते सबूत, मामले की अनूठी परिस्थितियों, अभियुक्त के न्याय से भागने की संभावना, सबूतों से छेड़छाड़ और अभियोजन पक्ष के गवाहों की विश्वसनीयता सहित विभिन्न कारकों पर विचार करने के बाद जमानत दी गई।

न्यायालय ने कहा,

"उपर्युक्त सभी तथ्यों पर विचार करने के बाद दी गई जमानत को यांत्रिक रूप से रद्द नहीं किया जाना चाहिए, जब तक कि कुछ परिस्थितियों को न्यायालय के संज्ञान में नहीं लाया जाता।"

न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि अभियुक्त को अपनी अपेक्षित उपस्थिति के समय के संबंध में जांच अधिकारी से नरमी बरतने का अनुरोध करने का अधिकार है।

न्यायालय ने स्पष्ट किया,

"शर्त लगाने का एकमात्र उद्देश्य उस तिथि पर उपस्थिति दर्ज करना है, जैसा कि निर्देश दिया गया। इस तरह के विशिष्ट निर्देश का यह अर्थ नहीं है कि जांच अधिकारी उपस्थिति दर्ज करने के लिए समय या तिथि में ढील नहीं दे सकता। अधिकारी को संबंधित न्यायालय के समक्ष अभियुक्त की असुविधा के बारे में रिपोर्ट करनी चाहिए थी। इसके बजाय अभियुक्त को समायोजित करना चाहिए था। जमानत रद्द करने के आधार के रूप में उपस्थिति दर्ज करने में समय में देरी का हवाला देना, जमानत रद्द करने के लिए परिस्थितियों के रूप में नहीं माना जा सकता।

न्यायालय ने आगे कहा कि जांच अधिकारी के समक्ष नियमित रूप से उपस्थिति की आवश्यकता वाली शर्तें अनावश्यक घर्षण पैदा कर सकती हैं और संभावित रूप से अधिकारी को न्यायालय के आदेश को कमजोर करने में सक्षम बना सकती हैं विशेष रूप से इस मामले में जहां आवेदक को हज में भाग लेने की अनुमति दी गई। न्यायालय ने यह भी संकेत दिया कि इस मामले में पुलिस की मंशा की जांच की जानी चाहिए।

परिणामस्वरूप न्यायालय ने न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश को अन्यायपूर्ण अवैध और अनुचित' मानते हुए आवेदन स्वीकार कर लिया। इस प्रकार उसे रद्द कर दिया। इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने 1,00,000/- रुपये की राशि जब्त करने का आदेश रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि यह राशि आवेदक को वापस कर दी जाए, जिसे 'हज' से लौटने पर संबंधित न्यायालय के समक्ष अपनी उपस्थिति दर्ज करानी है।

केस टाइटल- कदरशा लतीफशा सैयद बनाम जमीलशा कदरशा सैयद बनाम गुजरात राज्य और अन्य

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