गुजरात हाईकोर्ट ने कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों का निरीक्षण कर श्रमिकों के व्यावसायिक स्वास्थ्य जोखिमों का आकलन करने के लिए पैनल को निर्देश दिया
गुजरात हाईकोर्ट ने बुधवार (23 जुलाई) को अदालत द्वारा नियुक्त समिति को राज्य में कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों का नए सिरे से निरीक्षण करने का निर्देश दिया ताकि श्रमिकों की चिकित्सा स्थिति का आकलन किया जा सके और "व्यावसायिक स्वास्थ्य जोखिमों" का आकलन किया जा सके।
अदालत कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों में काम करने वाले श्रमिकों के स्वास्थ्य संबंधी खतरों - जैसे एस्बेस्टोसिस, सिलिकोसिस और शोर से होने वाली श्रवण हानि (NIHL) - जिन्हें व्यावसायिक स्वास्थ्य जोखिम बताया गया है, से संबंधित एक स्व-प्रेरणा जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
सुनवाई के दौरान व्यावसायिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा संघ की ओर से पेश हुए एडवोकेट सुब्रमण्यम अय्यर ने दलील दी कि हाईकोर्ट ने अपने 16 दिसंबर, 2015 के आदेश में इस मुद्दे की जांच के लिए एक समिति गठित करने का निर्देश दिया था। अय्यर ने कहा कि गठित समिति में केवल नौकरशाह शामिल थे। इसमें विशेषज्ञ निकाय, यानी राष्ट्रीय व्यावसायिक स्वास्थ्य संस्थान (NIOH) के सदस्य शामिल नहीं थे। उन्होंने आगे कहा कि व्यावसायिक रोगों का निदान केवल विशेषज्ञ ही कर सकते हैं।
अदालत को सूचित किया गया कि गठित समिति ने 27-01-2016 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, जिसमें कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों द्वारा व्यावसायिक स्वास्थ्य संबंधी खतरों को कम करने और अपने कर्मचारियों को स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने के लिए किए गए उपायों के बारे में बताया गया था।
अदालत ने अपने 16 दिसंबर, 2015 के आदेश का संज्ञान लिया, जिसके अनुसार समिति में संबंधित जिले के प्रिंसिपल जिला जज के न्यायालय के रजिस्ट्रार सहित सरकारी अधिकारी शामिल होंगे और उन्हें 11 ताप विद्युत संयंत्रों का निरीक्षण करने का कार्य सौंपा गया। हाईकोर्ट के दिसंबर 2015 के आदेश में कहा गया कि निरीक्षण इस बात को ध्यान में रखते हुए किया जाना था कि पर्याप्त और प्रभावी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली मौजूद है, श्रमिकों की व्यावसायिक स्वास्थ्य स्थिति और श्रमिकों, विशेष रूप से व्यावसायिक रोगों से पीड़ित या व्यावसायिक रोगों से ग्रस्त श्रमिकों को उपलब्ध प्रभावी चिकित्सा उपचार।
मामले की सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस डीएन रे की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा:
"चूंकि काफी समय बीत चुका है और वर्तमान याचिका लंबे समय के बाद सूचीबद्ध की गई, समिति की अंतिम रिपोर्ट 2016 की है, इसलिए हमारा विचार है कि संविधान के अनुसार समिति को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए... स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव यह सुनिश्चित करें कि आज से दो सप्ताह की अवधि के भीतर ऐसी समिति का गठन हो जाए। इस प्रकार, गठित समिति संबंधित ताप विद्युत संयंत्र का नए सिरे से निरीक्षण करेगी और दिनांक 16-12-2016 के आदेश और सुप्रीम कोर्ट के दिनांक 31-01-2014 के आदेश के अनुसार अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी... सुप्रीम कोर्ट की दिनांक 31-01-2014 की टिप्पणी को ध्यान में रखते हुए हम आगे यह प्रावधान करते हैं कि इस न्यायालय द्वारा गठित समिति विशेषज्ञ (NIOH) की सहायता लेगी और क्षेत्र में आवश्यक सुधारात्मक उपायों के लिए अपने सुझाव देगी।"
इसके बाद न्यायालय ने सरकारी वकील से अपने आदेश की सूचना प्रधान सचिव को देने को कहा और मामले की सुनवाई 3 सितंबर के लिए निर्धारित कर दी।
बता दें, सुप्रीम कोर्ट ने 2005 की एक रिट याचिका पर 31 जनवरी, 2014 को दिए अपने आदेश में संबंधित हाईकोर्ट से यह जांच करने को कहा कि क्या पर्याप्त और प्रभावी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली मौजूद है और क्या श्रमिकों की व्यावसायिक स्वास्थ्य स्थिति का कोई मूल्यांकन किया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के महापंजीयकों को निर्देश दिया कि वे संबंधित राज्यों के चीफ जस्टिस के समक्ष अपना निर्णय प्रस्तुत करें ताकि कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों में कार्यरत श्रमिकों के व्यापक हित में स्वतः संज्ञान कार्यवाही शुरू की जा सके।
इसके बाद 2014 में हाईकोर्ट द्वारा वर्तमान स्वतः संज्ञान याचिका शुरू की गई।
Case title: Suo Motu v/s State of Gujarat and Others