राजकोट अग्निकांड: गुजरात हाईकोर्ट ने TRP गेम जोन के खिलाफ विध्वंस आदेश के क्रियान्वयन में एक साल की देरी पर राज्य सरकार से किया सवाल

Update: 2024-07-05 07:14 GMT

गुजरात हाईकोर्ट ने गुरुवार को राजकोट में TRP गेम जोन अग्निकांड को लेकर राज्य सरकार को फटकार लगाई, जिसके परिणामस्वरूप मई में 27 लोगों की मौत हो गई थी। कोर्ट ने सवाल किया कि अवैध ढांचे के खिलाफ विध्वंस आदेश का क्रियान्वयन लगभग एक साल से क्यों नहीं किया गया।

चीफ जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस प्रणव त्रिवेदी की खंडपीठ को सौंपे गए हलफनामे के जवाब में ये टिप्पणी आई, जो आग लगने के एक दिन बाद 26 मई को शुरू की गई जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई कर रही है।

गुजरात सरकार ने गुरुवार को आग लगने के संबंध में अपनी तथ्य-खोज जांच रिपोर्ट भी सीलबंद लिफाफे में हाईकोर्ट को सौंपी।

चीफ जस्टिस अग्रवाल ने राज्य के हलफनामे की समीक्षा करते हुए कहा कि राजकोट नगर निगम (RMC) के अधिकारियों को TRP गेम जोन की अवैध स्थिति के बारे में पता होने के बावजूद इसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई, जबकि जून 2023 में इसे ध्वस्त करने का आदेश जारी किया गया था।

खंडपीठ ने पिछले महीने आग की जांच पर असंतोष व्यक्त किया और यह निर्धारित करने के लिए तथ्य-खोज जांच का आदेश दिया कि अवैध गेम जोन कैसे स्थापित किया गया। इसके अस्तित्व में अधिकारियों की क्या भूमिका थी। इसके कारण गुजरात सरकार ने IAS अधिकारी मनीषा चंद्रा, पी स्वरूप और राजकुमार बेनीवाल की एक "तथ्य-खोज समिति" बनाई।

राज्य के हलफनामे की जांच करते हुए चीफ जस्टिस अग्रवाल ने टिप्पणी की,

“RMC द्वारा ध्वस्तीकरण आदेश जारी किया गया। तब से (आग की घटना तक) एक साल बीत चुका है। इसे निष्पादित क्यों नहीं किया गया? जवाब कहां है? उस ध्वस्तीकरण आदेश से साबित होता है कि अधिकारियों को पता था कि संरचना अवैध है।”

जब एडवोकेट जनरल कमल त्रिवेदी ने उल्लेख किया कि वर्तमान नगर आयुक्त ने लापरवाही के लिए आरएमसी के टाउन प्लानिंग अधिकारी (TPO) और सहायक TPO निलंबित कर दिया तो चीफ जस्टिस अग्रवाल ने जवाब दिया कि यह अपर्याप्त है।

चीफ जस्टिस ने कहा,

“कुछ लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने से आपको मदद नहीं मिलेगी। कार्यप्रणाली पर फिर से विचार करना होगा। इसमें खामियां हैं, जिन पर ध्यान देने की जरूरत है। आप इस राज्य को इस स्थिति में नहीं डाल सकते। यह बहुत गंभीर है कि ऐसी घटनाएं हो रही हैं।”

खंडपीठ ने राज्य सरकार के इस दावे पर भी नाराजगी जताई कि तत्कालीन RMC आयुक्त को अवैध संरचना के बारे में जानकारी नहीं थी, क्योंकि TPO और उनका कार्यालय मामले को संभाल रहा था और ध्वस्तीकरण नोटिस टीपीओ द्वारा भेजा गया, न कि नगर प्रमुख द्वारा।

चीफ जस्टिस ने जोर देकर कहा,

“आप यह नहीं कह सकते कि यह मेरे संज्ञान में नहीं लाया गया। यह कोई बहाना नहीं है। मैं भी ऐसा नहीं कह सकती। मुझे हर चीज की जिम्मेदारी लेनी होगी, चाहे वह अच्छी हो या बुरी। यह एक संस्था के प्रमुख का दृष्टिकोण होना चाहिए।”

न्यायाधीश ने आगे कहा,

“नियंत्रण और संतुलन की कोई व्यवस्था होनी चाहिए। केवल यह कहने से कि कोई गलती हुई है, कुछ नहीं होने वाला है। यह एक तरह की चेतावनी है, एक ट्रिगर है कि आपको अपने घर को देखना चाहिए और उसे व्यवस्थित करना चाहिए। यह ऐसा राज्य है, जिसमें बहुत संभावनाएं हैं; आप कुछ अधिकारियों के लाभ के लिए राज्य को इस स्थिति में नहीं डाल सकते।”

राज्य सरकार द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल (SIT) की रिपोर्ट अभी भी लंबित होने के कारण अदालत ने त्रिवेदी को अगली सुनवाई की तारीख 25 जुलाई को कार्रवाई रिपोर्ट के साथ इसे प्रस्तुत करने के लिए कहा।

इस बीच हाईकोर्ट ने राज्य को दानपीठ में अहमदाबाद नगर निगम (AMC) परिसर में दो अदालतों में अग्नि सुरक्षा के मुद्दों को संबोधित करने का भी निर्देश दिया, जब एडवोकेट अमित पंचाल ने सुरक्षा उपायों की कमी को उजागर किया। त्रिवेदी ने अदालत को आश्वासन दिया कि तुरंत निरीक्षण किया जाएगा।

25 मई को राजकोट के नाना-मावा इलाके में खेल क्षेत्र में लगी भीषण आग में चार बच्चों सहित 27 लोग मारे गए।

केस टाइटल- स्वप्रेरणा बनाम गुजरात राज्य और अन्य।

Tags:    

Similar News