'लोकतंत्र में असहमति स्वीकार होनी चाहिए': पत्रकार अभिसार शर्मा को असम CM पर बयान वाले मामले में हाईकोर्ट से राहत

Update: 2025-09-19 17:13 GMT

गुवाहाटी हाईकोर्ट ने आज पत्रकार अभिसार शर्मा को पहले से मिली अंतरिम सुरक्षा (गिरफ्तारी या चार्जशीट जैसी जबरन कार्रवाई से संरक्षण) की अवधि 22 अक्टूबर तक बढ़ा दी। शर्मा ने यह याचिका उस FIR के खिलाफ दायर की है जो असम पुलिस ने उनके खिलाफ दर्ज की थी। FIR में आरोप है कि उन्होंने असम मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा पर “सांप्रदायिक राजनीति” करने का बयान दिया। FIR भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 (राष्ट्र की संप्रभुता को खतरे में डालना), 196 (समूहों के बीच वैमनस्य फैलाना) और 197 (राष्ट्रीय एकता व सुरक्षा के विरुद्ध आरोप) के तहत दर्ज की गई है।

जस्टिस मृदुल कुमार कालिता की बेंच ने कहा कि मामला जांच योग्य है और इसीलिए अपराध शाखा की केस डायरी तलब की जाए।

शर्मा के वकील (सीनियर काउंसल कमल नयन चौधरी) ने दलील दी कि याचिकाकर्ता पत्रकार हैं और केवल सरकार की आलोचना करने पर उन पर केस दर्ज किया गया है। उन्होंने कहा, “अगर हर आलोचना को देशद्रोह माना जाएगा तो यह लोकतंत्र के लिए काला दिन होगा। आलोचना लोकतंत्र में स्वीकार्य होनी चाहिए।”

उन्होंने स्पष्ट किया कि शर्मा ने केवल मुख्यमंत्री के एक बयान पर सवाल उठाया था और सरकार की कार्यप्रणाली की आलोचना अपराध नहीं है। वहीं शिकायतकर्ता आलोक बरुआ का आरोप है कि शर्मा ने जानबूझकर सरकार को बदनाम करने और सांप्रदायिक तनाव भड़काने के उद्देश्य से वीडियो बनाया, जिसमें उन्होंने “राम राज्य” का मजाक उड़ाया और सरकार पर हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण पर टिके होने का आरोप लगाया।

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