बिना विज्ञापन या चयन प्रक्रिया के राज्य द्वारा नियोजित दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी छंटनी से सुरक्षा का दावा करने का हकदार नहीं: गुवाहाटी हाइकोर्ट
गुवाहाटी हाइकोर्ट के जस्टिस माइकल ज़ोथनखुमा की एकल पीठ ने रिट याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि कर्मचारी को कभी-कभार दैनिक वेतनभोगी के रूप में नियुक्त करने से पहले न तो कोई विज्ञापन जारी किया गया और न ही कोई चयन प्रक्रिया अपनाई गई। इसने आगे कहा कि भारतीय स्टेट बैंक (SBI) संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत राज्य है। इसलिए उसे संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के अनुसार विज्ञापन और उचित चयन प्रक्रिया के माध्यम से नियुक्तियां करनी होंगी।
दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को नियुक्त करने की ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं थी, इसलिए याचिकाकर्ता औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 25-एफ के तहत संरक्षण का दावा नहीं कर सकता।
संक्षिप्त तथ्य:
यह मामला याचिकाकर्ता की बर्खास्तगी से संबंधित था, जो SBI की दिनजान शाखा में स्वीपर के रूप में काम करता था। औद्योगिक न्यायाधिकरण, गुवाहाटी ने अवार्ड के माध्यम से बर्खास्तगी बरकरार रखी। व्यथित महसूस करते हुए याचिकाकर्ता ने गुवाहाटी हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और औद्योगिक न्यायाधिकरण के फैसले को चुनौती दी।
याचिकाकर्ता को मौखिक रूप से स्वीपर के रूप में नियुक्त किया गया और वह SBI दिनजान शाखा में काम करता था। उसे शुरू में 50 रुपये प्रतिदिन की मजदूरी मिलती थी, जिसे बाद में बढ़ाकर 60 रुपये कर दिया गया। इसके अतिरिक्त उसे जनवरी 2008 से एटीएम की सफाई के लिए 30 रुपये प्रतिदिन मिलते थे और बैंक परिसर की सफाई और संदेशवाहक के रूप में काम करने जैसे अन्य कार्यों के लिए उसे टीए/डीए मिलता था।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी के रूप में उसकी स्थिति उसे कामगार के रूप में योग्य बनाती है। इसलिए 16.09.2008 को बिना किसी पूर्व सूचना के उनकी बर्खास्तगी रद्द की जानी चाहिए, क्योंकि यह औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 25-एफ का उल्लंघन करता है।
हाइकोर्ट का अवलोकन:
हाइकोर्ट ने हरि नंदन प्रसाद एवं अन्य बनाम भारतीय खाद्य निगम के प्रबंधन के लिए नियोक्ता आई/आर एवं अन्य, (2014) 7 एससीसी 190 में रिपोर्ट किए गए मामले का संदर्भ दिया, जहां दैनिक वेतन के आधार पर नियुक्त अपीलकर्ता को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया, जिसके कारण औद्योगिक विवाद को केंद्र सरकार-सह-औद्योगिक न्यायाधिकरण (CGIT) के पास भेजा गया।
अपीलकर्ताओं की बर्खास्तगी के साथ आयोजित सीजीआईटी कार्यवाही अवैध थी और उन्हें बहाल करने और उनकी सेवा को नियमित करने का निर्देश दिया गया। एफसीआई द्वारा जारी सर्कुलर के अनुसार 90 दिनों से अधिक समय तक नियोजित किसी भी अस्थायी कर्मचारी को नियमितीकरण का अधिकार है।
सहायक अभियंता राजस्थान राज्य कृषि विपणन बोर्ड, उप-मंडल कोटा बनाम मोहन लाल के मामले में प्रतिवादी जो मस्टर रोल के आधार पर मिस्त्री के रूप में कार्यरत था। उसकी सेवाएं एक महीने की सूचना या नोटिस के बजाय वेतन और छंटनी मुआवजे के बिना समाप्त कर दी गई। श्रम न्यायालय ने सेवा में निरंतरता के साथ बहाली का आदेश दिया, जिसे शुरू में हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश ने खारिज कर दिया, लेकिन खंडपीठ ने इसे बहाल कर दिया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि औद्योगिक विवाद उठाने में छह साल की महत्वपूर्ण देरी हुई। माना कि बहाली व्यवहार्य नहीं है।
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने कर्मचारी को 1 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया।
यू.पी. राज्य सड़क परिवहन निगम बनाम मान सिंह के मामले में प्रतिवादी की अस्थायी नियुक्ति समाप्त कर दी गई, जिससे श्रम न्यायालय को संदर्भित औद्योगिक विवाद हो गया। न्यायालय ने औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 25-एफ का अनुपालन न करने के कारण समाप्ति खारिज कर दी, लेकिन केवल पिछला वेतन दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने विवाद उठाने में 12 वर्षों की देरी और भर्ती नियमों के अनुपालन में कमी को देखते हुए निगम को न्याय के हित में कर्मचारी को 50,000 रुपए का भुगतान करने का आदेश दिया।
नंद कुमार बनाम बिहार राज्य और अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक राज्य बनाम उमा देवी में अपने फैसले का हवाला देते हुए इस बात पर जोर दिया कि अस्थायी या आकस्मिक रोजगार किसी व्यक्ति को स्वचालित रूप से स्थायी रोजगार का हकदार नहीं बनाता।
अस्थायी रोजगार की कठिनाइयों को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना कि इससे नियुक्ति की संवैधानिक योजना को कमजोर नहीं किया जाना चाहिए। इस प्रकार न्यायालय ने याचिकाकर्ता को स्थायी रोजगार देने का आदेश देने से इनकार कर दिया।
ओडिशा राज्य बनाम ममता मोहंती (2011) 3 एससीसी 436 में रिपोर्ट किए गए मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि बिना विज्ञापन के की गई नियुक्तियां संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन करती हैं।
हाइकोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए हाइकोर्ट ने माना कि ऐसा कोई सबूत नहीं है, जो यह दर्शाता हो कि याचिकाकर्ता को उचित विज्ञापन के बाद या रोजगार कार्यालय के माध्यम से किसी स्थायी रिक्ति के विरुद्ध नियुक्त किया गया। इसके अलावा, याचिकाकर्ता लगातार 12 महीनों में 240 दिनों से ज़्यादा लगातार काम करने का सबूत देने में विफल रहा, जो औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 25-f से लाभ पाने के लिए शर्त है। इसके अलावा, याचिकाकर्ता प्रतिवादी के साथ नियमित रोज़गार स्थापित नहीं कर सका।
इसके अलावा, प्रतिवादी बैंक को संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत राज्य इकाई माना जाता है, इसलिए हाइकोर्ट ने माना कि उसे अनुच्छेद 14 और 16 में उल्लिखित नियुक्ति प्रक्रियाओं का पालन करना चाहिए, जिसमें विज्ञापन और उचित चयन प्रक्रियाएं शामिल हैं। याचिकाकर्ता को दिहाड़ी मजदूर के रूप में नियुक्त करने से पहले ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं अपनाई गई।
इसलिए हाइकोर्ट ने रिट याचिका खारिज कर दी।
केस टाइटल: बिनॉय कुमार सिन्हा बनाम सहायक महाप्रबंधक प्रशासन भारतीय स्टेट बैंक और अन्य।