गुवाहाटी हाईकोर्ट का फैसला: सेना कर्मियों के बच्चों को नागालैंड के सेंट्रल पूल MBBS कोटे से बाहर रखना वैध
गुवाहाटी हाईकोर्ट ने उस मेडिकल उम्मीदवार को राहत देने से इनकार किया, जिसे कट-ऑफ अंक हासिल करने के बावजूद नागालैंड सरकार को आवंटित सेंट्रल पूल MBBS कोटे की सीट से वंचित कर दिया गया। कोर्ट ने कहा कि रक्षा कर्मियों के बच्चों के लिए पहले से ही समर्पित कोटा होने के कारण उन्हें सेंट्रल पूल के 'कमी वाले राज्य के कोटे से बाहर रखना भेदभावपूर्ण नहीं है।
चीफ जस्टिस आशुतोष कुमार और जस्टिस अरुण देव चौधरी की खंडपीठ ने सिंगल बेंच के उस फैसले को पलट दिया, जिसने उम्मीदवार के पक्ष में फैसला सुनाया था।
मामला और उम्मीदवार का तर्क
उम्मीदवार ने नागालैंड सरकार की 2021 की उस अधिसूचना को चुनौती दी थी, जिसके अनुसार उसे सेंट्रल पूल के तहत राज्य को आवंटित 42 सीटों में से एक के लिए अपात्र घोषित कर दिया गया।
उम्मीदवार ने केंद्र सरकार के 28 जुलाई के दिशानिर्देशों का हवाला दिया, जिसके अनुसार केंद्र राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के कर्मचारियों के बच्चे जो उस राज्य/केंद्र शासित प्रदेश में प्रतिनियुक्ति पर या मुख्यालय के साथ तैनात हैं, सेंट्रल पूल MBBS/BDS सीटों के लिए पात्र होते हैं। चूंकि उसके पिता भारतीय सेना में कमांडिंग ऑफिसर के रूप में नागालैंड में तैनात है, इसलिए उसने सेंट्रल पूल कोटे का लाभ मांगा।
हाईकोर्ट का निर्णय और तर्क
खंडपीठ ने राज्य की अपील स्वीकार करते हुए कहा कि उम्मीदवार जो रक्षा कर्मियों के वार्ड से संबंधित है, एक अलग वर्ग है, जिसके लिए पहले से ही समर्पित लाभ हैं। इसलिए सेंट्रल पूल से उसका बहिष्कार भेदभावपूर्ण नहीं कहा जा सकता।
कोर्ट ने दिशानिर्देशों का अवलोकन करते हुए कहा कि सेंट्रल पूल सीटें राज्य को मेडिकल बुनियादी ढांचे की कमी की भरपाई के लिए और राज्य के छात्रों को मुख्यधारा में एकीकृत करने के अवसर प्रदान करने के लिए आवंटित की जाती हैं।
कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा,
"जब केंद्र सरकार ने अपनी नीतिगत समझ में रक्षा कर्मियों और उनके वार्डों को समर्पित कोटा लाभ के साथ अलग वर्ग के रूप में मानना चुना है तो ऐसे वर्ग को दूसरे पूल से बाहर करना भेदभावपूर्ण नहीं कहा जा सकता। राज्य के सामान्य निवासियों और रक्षा कर्मियों के वार्डों, जिनके पास एक स्वतंत्र कोटा है, उसके बीच किया गया यह वर्गीकरण एक बुद्धिमान अंतर पर आधारित है, जिसका निष्पक्ष और संतुलित आवंटन के उद्देश्य के साथ तार्किक संबंध है। इसलिए याचिकाकर्ता के संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत अधिकार का कोई उल्लंघन नहीं है।"
कोर्ट ने कहा कि सिंगल जज ने दोनों श्रेणियों के बीच मौलिक अंतर को नजरअंदाज किया, जहां ये दोनों कोटे अलग-अलग नीतिगत उद्देश्य की पूर्ति करते हैं।
इसका उद्देश्य उन राज्यों में डॉक्टरों की आपूर्ति बढ़ाना है जिनमें पर्याप्त मेडिकल कॉलेज नहीं हैं।
रक्षा पूल कोटा: इसका उद्देश्य रक्षा कर्मियों द्वारा की गई राष्ट्रीय सेवा को पहचानना और पुरस्कृत करना है।
कोर्ट ने कहा कि उम्मीदवार को एक बार जब रक्षा कर्मियों के वार्ड के रूप में माना जाता है तो वह रक्षा कोटे के तहत लाभ ले सकता है, जिसे वह न्यूनतम कट-ऑफ अंक कम होने के कारण हासिल नहीं कर पाई। इसके बाद वह एक अलग लाभार्थी समूह के लिए अभिप्रेत दूसरे कोटे के तहत समानांतर लाभ का दावा नहीं कर सकती।
कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि रक्षा पूल और कमी वाले पूल के बीच पारस्परिक अनन्यता की नीति इस योजना के उद्देश्य के साथ तार्किक संबंध रखती है और इसे मनमाना नहीं कहा जा सकता।
कोर्ट ने राज्य की अपील स्वीकार की।