भावी नियमितीकरण से पहले मानद सेवा अवधि के लिए बकाया वेतन का दावा नहीं किया जा सकता: गुवाहाटी हाईकोर्ट
जस्टिस माइकल ज़ोथनखुमा और जस्टिस अंजन मोनी कलिता की गुवाहाटी हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि यदि नियुक्ति की शर्तें स्वीकार कर ली गई हों और नियमितीकरण आदेश के तहत लाभ केवल भावी रूप से प्रदान किए गए हों तो कोई कर्मचारी नियमितीकरण से पहले मानद सेवा अवधि के लिए बकाया वेतन का दावा नहीं कर सकता।
पृष्ठभूमि तथ्य
अपीलकर्ता को तर्कशास्त्र और दर्शनशास्त्र विषय के शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया। उन्हें शासी निकाय के दिनांक 03.03.2000 के प्रस्ताव नंबर 6 के अनुसरण में विद्यालय के प्रधानाचार्य द्वारा पारित दिनांक 12.07.2000 के आदेश द्वारा बारामा उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, बारामा में मानद आधार पर नियुक्त किया गया। अपीलकर्ता दो दशकों से अधिक समय तक मानद शिक्षक के रूप में कार्यरत रहा।
बाद में अपीलकर्ता की सेवा को असमिया में स्नातकोत्तर शिक्षक के पद से परिवर्तित तर्कशास्त्र और दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर शिक्षक के पद पर नियमित कर दिया गया। यह निर्दिष्ट किया गया कि वेतनमान और ग्रेड वेतन सहित नियमितीकरण आदेश की तिथि से भावी प्रभाव से लागू होगा।
व्यथित होकर अपीलकर्ता ने 12.07.2000 से सेवा के नियमितीकरण की तिथि तक की अवधि के लिए बकाया वेतन की मांग करते हुए रिट याचिका दायर की। सिंगल जज ने 03.08.2023 को रिट याचिका खारिज कर दी। यह माना गया कि अपीलकर्ता ने मानद नियुक्ति की शर्तों को स्वीकार कर लिया, इसलिए वह नियुक्ति आदेश को चुनौती दिए बिना पिछली अवधि के लिए नियमित वेतन का दावा नहीं कर सकता।
इससे व्यथित होकर अपीलकर्ता ने 03.08.2023 के आदेश को चुनौती देते हुए अंतर-न्यायालय अपील दायर की।
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि सिंगल जज के 03.08.2023 के आदेश में उसे बकाया लाभ न देकर कानूनी त्रुटि की गई। दूसरी ओर, प्रतिवादियों ने दलील दी कि रिट याचिका खारिज करने वाले सिंगल जज के फैसले में कोई अवैधता नहीं थी। यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता ने 12.07.2000 के नियुक्ति आदेश के तहत मानद शिक्षक के रूप में अपनी नियुक्ति स्वीकार कर ली थी और कभी भी उस नियुक्ति की शर्तों को चुनौती नहीं दी।
अदालत के निष्कर्ष
अदालत ने यह पाया कि अपीलकर्ता को 12.07.2000 के आदेश द्वारा मानद आधार पर विषय शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया और उसने बिना किसी चुनौती के ऐसी नियुक्ति की शर्तों को स्वीकार कर लिया। यह माना गया कि शर्तों को स्वीकार करने के बाद अपीलकर्ता अब मूल नियुक्ति आदेश को चुनौती दिए बिना अपनी नियुक्ति की शर्तों से पीछे हटने की मांग नहीं कर सकता।
यह भी देखा गया कि 31.03.2022 के आदेश, जिसके द्वारा अपीलकर्ता की सेवाओं को नियमित किया गया, उसमें यह प्रावधान था कि वेतनमान, ग्रेड वेतन और भत्तों सहित नियमितीकरण आदेश की तिथि से ही प्रभावी होगा। अपीलकर्ता ने इस नियमितीकरण आदेश को चुनौती नहीं दी और इसलिए यह अंतिम हो गया।
अदालत ने यह माना कि नियमितीकरण आदेश को किसी भी चुनौती के अभाव में 31.03.2022 से पहले की अवधि के बकाया वेतन के लिए कोई दावा स्वीकार नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह निष्कर्ष निकाला कि सिंगल जज द्वारा पारित 03.08.2023 के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है। उपरोक्त टिप्पणियों के साथ अपीलकर्ता कर्मचारी द्वारा दायर अपील को अदालत ने खारिज कर दिया।
Case Name : Basanta Barman v. State of Assam & Ors.