PhD स्टूडेंट्स के नामांकन पर UGC किसी यूनिवर्सिटी को रोक नहीं सकती: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2025-09-17 06:38 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के पास UGC Act 1956 या उसके विनियमों के तहत किसी यूनिवर्सिटी को PhD स्टूडेंट्स का नामांकन करने से रोकने की शक्ति नहीं है।

जस्टिस विकास महाजन ने कहा, 

"यह स्पष्ट है कि अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो UGC को अपने प्रावधानों का कथित रूप से पालन न करने पर किसी यूनिवर्सिटी को PhD स्टूडेंट्स का नामांकन करने से रोकने का अधिकार देता हो।"

कोर्ट ने सिंघानिया यूनिवर्सिटी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला दिया। यूनिवर्सिटी ने UGC के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें उसे अगले पांच शैक्षणिक वर्षों (2025-26 से 2029-30) के लिए PhD कार्यक्रम में स्टूडेंट्स का नामांकन करने से रोक दिया गया था। 

यूनिवर्सिटी ने UGC द्वारा जारी सार्वजनिक नोटिस को भी चुनौती दी, जिसमें संभावित स्टूडेंट्स और उनके माता-पिता को इस यूनिवर्सिटी के PhD प्रोग्राम में दाखिला न लेने की सलाह दी गई थी।

कोर्ट ने UGC के आदेश और सार्वजनिक नोटिस रद्द करते हुए कहा कि UGC Act की प्रस्तावना और धारा 12(जे) यह दर्शाती है कि UGC का नियामक अधिकार यूनिवर्सिटी में मानकों के समन्वय और निर्धारण तक सीमित है। इसका उद्देश्य भारत में उच्च शिक्षा को बढ़ावा देना है।

न्यायालय ने कहा कि न तो प्रस्तावना और न ही कोई प्रावधान अधिनियम या उसके विनियमों का पालन न करने पर दंड लगाने का प्रावधान करता है।

कोर्ट ने कहा कि UGC Act की धारा 12ए के तहत केवल सीमित शक्ति है, जो केवल एक कॉलेज के खिलाफ जांच शुरू करने और केंद्र सरकार की मंजूरी से निषेधात्मक आदेश पारित करने की अनुमति देती है।

कोर्ट ने कहा, 

"UGC Act या नियमों में कोई स्पष्ट दंडात्मक प्रावधान नहीं है, जो UGC को यूनिवर्सिटी को अगले पांच साल के लिए PhD प्रोग्राम की पेशकश से रोकने का अधिकार देता हो।"

न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि सिंघानिया यूनिवर्सिटी को दिया गया दंड न तो UGC Act के प्रावधानों के तहत था और न ही विनियमों के तहत। 

कोर्ट ने कहा, 

"UGC Act में स्पष्ट प्रावधानों के अभाव में व्यापक नियामक कार्यों या शक्तियों के तहत दंड देना उचित नहीं है।"

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