दिल्ली हाइकोर्ट ने हाल ही में कहा कि वैधानिक जमानत देना अंतरिम आदेश नहीं बल्कि अंतिम आदेश है।
जस्टिस नवीन चावला ने कहा,
"जहां तक पुनर्विचार याचिका की स्थिरता का सवाल है, वैधानिक जमानत देना अंतरिम आदेश नहीं माना जा सकता। यह आवेदक को जमानत पर रिहा करने का अंतिम आदेश है, क्योंकि जांच पूरी नहीं हो सकी और अभियोजन पक्ष द्वारा 60/90 दिनों की अवधि के भीतर अंतिम रिपोर्ट दाखिल नहीं की जा सकी।"
अदालत ने कहा कि केवल इसलिए कि कुछ दस्तावेज प्रथम या प्रारंभिक आरोपपत्र के साथ दाखिल नहीं किए गए, क्योंकि जांच अभी भी चल रही है, उक्त आरोपपत्र को अमान्य नहीं करेगा और आरोपी को वैधानिक जमानत देने का अधिकार नहीं देगा।
जस्टिस चावला ने आरोपी की याचिका खारिज कर दी, जिसे मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट (MM) ने वैधानिक जमानत दी थी लेकिन अभियोजन पक्ष द्वारा इसे चुनौती दिए जाने के बाद सत्र न्यायालय ने आदेश रद्द कर दिया।
एमएम ने कहा था कि प्रथम दृष्टया आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 467 के तहत अपराध नहीं बनता है। हालांकि सत्र न्यायालय ने कहा कि वैधानिक जमानत की मांग करने वाले आवेदन पर विचार करने के चरण में एमएम को ऐसा अवलोकन नहीं करना चाहिए था।
याचिका खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा कि मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने उसी एफआईआर में सह-आरोपी द्वारा दायर जमानत आवेदन पर टिप्पणी की थी कि आईपीसी की धारा 467 के तहत भी प्रथम दृष्टया मामला बनता है।
न्यायालय ने कहा,
"इसके लगभग 13 दिन बाद पारित आदेश में विपरीत निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए मजिस्ट्रेट द्वारा कोई कारण नहीं दिया गया।"
इसने आरोपी को दो सप्ताह के भीतर ट्रायल कोर्ट या जांच अधिकारी के समक्ष आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया।
अदालत ने कहा,
"हालांकि यह आदेश याचिकाकर्ता को ट्रायल कोर्ट से नियमित जमानत के लिए आवेदन दायर करने से नहीं रोकेगा।"
इसमें यह भी कहा गया कि आरोपी द्वारा दायर किसी भी जमानत आवेदन पर ट्रायल कोर्ट द्वारा कानून के अनुसार शीघ्रता से और उसके गुण-दोष के आधार पर निर्णय लिया जाएगा।
केस टाइटल- अमरजीत सिंह ढिल्लों बनाम राज्य एनसीटी ऑफ दिल्ली