S.156(3) CrPC | ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक एक्ट के तहत पुलिस को FIR दर्ज करने का निर्देश नहीं दे सकते मजिस्ट्रेट: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2025-09-30 17:24 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक एक्ट, 1940 (Drugs & Cosmetics Act) के तहत FIR रद्द की, जो पुलिस द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता (IPC) की धारा 156(3) के तहत मजिस्ट्रेट के निर्देश पर दर्ज की गई।

जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने कहा कि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक एक्ट के तहत उल्लंघन केवल औषधि निरीक्षक के अधिकार क्षेत्र में आते हैं और पुलिस द्वारा उनकी जाँच नहीं की जा सकती।

भारत संघ बनाम अशोक कुमार शर्मा (2020) का हवाला दिया गया, जहां ड्रग्स एक्ट की धारा 32 के अधिदेश और औषधि निरीक्षक को प्राप्त शक्तियों के संदर्भ में यह माना गया कि पुलिस अधिकारी अधिनियम के अध्याय IV (औषधियों एवं प्रसाधन सामग्री का निर्माण, विक्रय एवं वितरण) के अंतर्गत संज्ञेय अपराधों के संबंध में CrPC की धारा 154 के तहत FIR दर्ज नहीं कर सकता।

एक्ट की धारा 32 अपराधों के संज्ञान से संबंधित है। यह निर्धारित करती है कि अध्याय IV के अंतर्गत अभियोजन निरीक्षक, प्राधिकृत राजपत्रित अधिकारी आदि के अलावा किसी अन्य द्वारा नहीं चलाया जाएगा। यह प्रावधान पुलिस को अधिकार नहीं देता।

इस मामले में प्रतिवादी द्वारा याचिकाकर्ता पर हानिकारक इंजेक्शन बनाने का आरोप लगाने वाली शिकायत के बाद CrPC की धारा 156(3) के तहत मजिस्ट्रेट के निर्देश पर FIR दर्ज की गई।

हाईकोर्ट ने अशोक कुमार (सुप्रा) मामले में स्पष्ट रूप से वर्णित कानून के आलोक में यह माना कि वर्तमान FIR पुलिस द्वारा ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक एक्ट के तहत किसी भी अपराध के लिए दर्ज नहीं की जा सकती, "जो कि औषधि निरीक्षक के विशेष अधिकार क्षेत्र में है।"

फिर भी चूंकि FIR में उसी मामले में IPC के प्रासंगिक प्रावधानों का भी उल्लेख किया गया, इसलिए अदालत ने कहा कि FIR के तहत इन अपराधों की जांच करना पुलिस के अधिकार क्षेत्र में आता है।

अदालत ने कहा,

“मार्गदर्शक धारा 32(3) डी एंड सी अधिनियम से आता है जो स्पष्ट रूप से प्रावधान करता है कि “इस अध्याय में निहित कोई भी बात किसी भी व्यक्ति को किसी अन्य कानून के तहत किसी भी कार्य या चूक के लिए मुकदमा चलाने से नहीं रोकेगी, जो इस अध्याय के विरुद्ध अपराध बनता है...”, जिसका अर्थ है कि IPC अपराधों के लिए FIR अपने आप जारी रहेगी और पुलिस द्वारा उसमें जांच जारी रखी जाएगी।”

इस मामले में पुलिस ने IPC की धारा 274/275 (दवाओं में मिलावट) लगाई, जो असंज्ञेय अपराध हैं।

इस प्रकार, अदालत ने माना कि इन अपराधों के लिए FIR दर्ज नहीं की जा सकती थी और NCR दर्ज की जानी चाहिए थी। फिर भी यह कहते हुए कि यह FIR की धारा 460 के तहत एक मात्र अनियमितता है, जो कार्यवाही को दूषित नहीं करती है, अदालत ने कहा कि मजिस्ट्रेट की कार्रवाई को FIR की धारा 155 (असंज्ञेय मामलों की जानकारी और ऐसे मामलों की जाँच) के तहत माना जा सकता है।

हालांकि, मामले के तथ्यों पर विचार करते हुए अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता के विरुद्ध IPC के तहत आरोपित अपराध नहीं बनते। इसलिए अदालत ने FIR रद्द की।

Case title: Revacure Lifesciences LLP & Ors. v. State & Ors.

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