FIR रद्द होने के बाद इंटरनेट पर सूचना कायम रखने में कोई जनहित नहीं: भूल जाने के अधिकार पर दिल्ली हाईकोर्ट
यह देखते हुए कि जनता के सूचना के अधिकार को व्यक्ति के निजता के अधिकार के साथ संतुलित करना महत्वपूर्ण है, दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि आपराधिक कार्यवाही रद्द होने के बाद इंटरनेट पर सूचना को कायम रखने से कोई जनहित नहीं सधता।
जस्टिस अमित महाजन ने कहा,
“ऐसा कोई कारण नहीं है कि कानून द्वारा किसी भी दोष से विधिवत मुक्त किए गए व्यक्ति को ऐसे आरोपों के अवशेषों से पीड़ित होने दिया जाए, जो जनता के लिए आसानी से सुलभ हों। ऐसा करना व्यक्ति के निजता के अधिकार के विपरीत होगा, जिसमें भूल जाने का अधिकार और भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत सम्मान के साथ जीने का अधिकार शामिल है।”
न्यायालय ने कहा कि निजता के अधिकार की अवधारणा में भूल जाने का अधिकार शामिल है। इंटरनेट के युग में इंटरनेट पर आने वाली हर सूचना स्थायी हो जाती है।
कोर्ट ने कहा,
"किसी अपराध से बरी किए गए व्यक्तियों या ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द किए जाने पर उनके नाम छिपाने की अनुमति देने की आवश्यकता, आनुपातिकता और निष्पक्षता की सबसे बुनियादी धारणाओं से उत्पन्न होती है।"
न्यायालय ने कहा कि सूचना तक पहुँच लोकतंत्र का मूलभूत पहलू है, लेकिन इसे जनता के सूचना के अधिकार और व्यक्ति के निजता के अधिकार के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता से अलग नहीं किया जा सकता।
न्यायालय ने कहा कि यह विशेष रूप से तब है, जब कार्यवाही रद्द किए जाने के बाद इंटरनेट पर सूचना को जीवित रखने से कोई जनहित नहीं सधता।
जस्टिस महाजन एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर विचार कर रहे थे जिसमें न्यायालय रजिस्ट्री को आपराधिक मामले में दायर आदेशों और दलीलों से अपना नाम छिपाने के निर्देश देने की मांग की गई थी।
उसके वकील ने प्रस्तुत किया कि यदि उसके खिलाफ मामला रद्द किए जाने के बावजूद उसका नाम आपराधिक मामले में शामिल व्यक्ति के रूप में दर्शाया जाता है तो उसे उसके सामाजिक जीवन और उसके कैरियर की संभावनाओं को अपूरणीय क्षति होगी।
यह तर्क दिया गया कि वह गोपनीयता के अधिकार' और भूल जाने के अधिकार के तहत संरक्षण का हकदार है, जिसे अच्छी तरह से परिभाषित किया गया और मौलिक अधिकार के रूप में भी मान्यता दी गई।
व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही रद्द कर दी गई थी, इसलिए अदालत ने उसके वकील की दलीलों में योग्यता पाई और रजिस्ट्री को मामले के रिकॉर्ड और उसके खोज परिणामों से उसका नाम और साथ ही शिकायतकर्ता का नाम हटाने का निर्देश दिया।
अदालत ने उसे फैसले को छिपाने के लिए सभी संबंधित पोर्टल, पब्लिक सर्च इंजनों से संपर्क करने की भी अनुमति दी, जो केवल पक्षों के छिपे हुए नामों को इंगित करेंगे।
जस्टिस महाजन ने यह भी कहा कि जब भी व्यक्ति या शिकायतकर्ता किसी भी सोशल मीडिया या सर्च इंजन से संपर्क करेगा या आवेदन करेगा तो यह उम्मीद की जाती है कि वे निजता के अधिकार' और 'भूल जाने के अधिकार' के सिद्धांत का भी पालन करेंगे और आपराधिक मामले से संबंधित रिकॉर्ड पर मौजूद किसी भी अन्य सामग्री को हटा देंगे।
केस टाइटल: एबीसी बनाम राज्य और अन्य।