दिल्ली हाईकोर्ट ने लिव-इन पार्टनर पर यौन शोषण का मामला मनमाने ढंग से दर्ज करने पर महिला पर 20,000 का जुर्माना लगाया

Update: 2025-07-17 07:01 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने महिला द्वारा अपने लिव-इन पार्टनर के खिलाफ यौन उत्पीड़न का मामला मनमाने और लापरवाह तरीके से दर्ज करने पर 20,000 का जुर्माना लगाया।

जस्टिस स्वरना कंता शर्मा ने अपने आदेश में कहा कि महिला ने खुद यह स्वीकार किया कि उसने यह शिकायत कुछ गलतफहमी के चलते दर्ज कराई थी, जबकि वह लंबे समय से आरोपी के साथ रिश्ते में थी।

कोर्ट ने कहा कि कानून की प्रक्रिया को इस तरह लापरवाही से या बिना गंभीर विचार किए नहीं चलाया जा सकता। कोर्ट ने आगे यह भी कहा कि महिला उस वक्त कुछ मेडिकल और भावनात्मक चुनौतियों से गुजर रही थी, जिस दौरान उसने यह शिकायत दर्ज कराई।

कोर्ट ने कहा,

"जब शिकायत भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 69 और 351(2) के तहत की गई हो, जिसमें गंभीर आरोप शामिल हैं तो उसे मनमाने या लापरवाह ढंग से दर्ज करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।"

कोर्ट ने FIR रद्द की, जो कि BNS की धारा 69 (छल से सहमति प्राप्त कर यौन संबंध बनाना) और 351(2) (आपराधिक भयादोहन) के तहत दर्ज की गई।

यह आदेश उस याचिका पर दिया गया, जो आरोपी पुरुष अनिल वर्मा ने एक आपसी समझौते के आधार पर FIR रद्द करने के लिए दाखिल की थी।

महिला का दावा था कि दोनों पिछले 15 वर्षों से रिश्ते में थे। जनवरी, 2019 से लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे थे। उसने कहा कि आरोपी ने अपनी पहली पत्नी से तलाक के बाद उससे विवाह का आश्वासन दिया था, जिस भरोसे पर वह उसके साथ रह रही थी।

तलाक की दूसरी प्रक्रिया शुरू होने से पहले दोनों के बीच गलतफहमियां और विवाद उत्पन्न हुए, जिसके बाद महिला ने शिकायत दर्ज करवाई।

कोर्ट में मौजूद महिला ने कहा कि उसने शिकायत गलतफहमी में दर्ज कराई और उस दौरान उसकी मानसिक और शारीरिक स्थिति ठीक नहीं थी। वह अब इस केस को आगे नहीं बढ़ाना चाहती।

कोर्ट ने कहा कि इस तरह के आरोप गंभीर प्रभाव डालते हैं, न सिर्फ आरोपी पर बल्कि न्याय व्यवस्था पर भी।

कोर्ट ने कहा,

"अगर कोई व्यक्ति झूठे आरोपों में फंसाया गया हो या अगर आरोप किसी वास्तविक गलतफहमी के चलते लगाए गए हों तो ऐसे व्यक्ति को मुकदमे का सामना करने के लिए बाध्य करना न्याय और निष्पक्षता के मूल सिद्धांतों के खिलाफ होगा।"

महिला पर 20,000 का जुर्माना इसलिए लगाया गया, क्योंकि उसने आपराधिक कानून की प्रक्रिया शुरू की, जबकि बाद में उसने स्वीकार किया कि मामला गलतफहमी पर आधारित था।

कोर्ट ने आदेश दिया,

"यह जुर्माना चार सप्ताह के भीतर दिल्ली हाईकोर्ट कानूनी सेवा समिति में जमा कराया जाए।"

केस टाइटल: अनिल वर्मा बनाम राज्य सरकार एनसीटी दिल्ली एवं अन्य

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