दिल्ली हाईकोर्ट ने PMLA मामला ट्रांसफर करने का आदेश रद्द किया, जज ने कहा था- 'ED मामलों में कौन-सी बेल होती है'

Update: 2024-05-29 05:20 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को भूषण स्टील मनी लॉन्ड्रिंग मामला एक जज से दूसरे न्यायाधीश को ट्रांसफर करने का ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया, क्योंकि आरोपी ने आरोप लगाया था कि न्यायाधीश ने टिप्पणी की थी कि "ED मामलों में कौन सी बेल होती है?"

जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि कथित टिप्पणी में अभियुक्त के विरुद्ध पक्षपात या अभियोजन एजेंसी के पक्ष में किसी तरह की आशंका नहीं दिखाई देती।

अदालत ने मामले को प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश के पास वापस भेज दिया और अदालत से कहा कि वह संबंधित न्यायाधीश से टिप्पणियां प्राप्त करने और आज के आदेश में की गई टिप्पणियों पर विचार करने के बाद स्थानांतरण आवेदन पर नए सिरे से निर्णय ले।

यह देखते हुए कि जजों को भी अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा करने का अधिकार है, जस्टिस शर्मा ने इस बात पर जोर दिया कि जजों और न्यायालय कर्मचारियों के बीच बातचीत निजी प्रकृति की होती है।

अदालत ने कहा कि जज की प्रतिष्ठा वर्षों की समर्पित सेवा पर आधारित होती है और जज को अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा करनी चाहिए।

अदालत ने कहा कि वी.सी. तकनीक आजकल एक आम विशेषता है। हालांकि इसके व्यापक उपयोग से न्यायाधीशों के लिए दुरुपयोग की संभावनाएं खुलती हैं।

अदालत ने कहा कि इस सुविधा के दुष्प्रभाव हैं और सुनवाई में शामिल होने वाला कोई भी व्यक्ति सुनी हुई बातचीत के आधार पर जजों और न्यायालय कर्मचारियों के खिलाफ आरोप लगा सकता है।

जस्टिस शर्मा ने कहा कि सुनी-सुनाई बातों के आधार पर मामलों को स्थानांतरित करने से न्यायालय की गरिमा कम होगी और पूरी न्यायपालिका की अखंडता को खतरा होगा। उन्होंने कहा कि बिना किसी सबूत के ऐसी आशंकाओं पर विचार नहीं किया जाना चाहिए।

जस्टिस शर्मा ने ट्रांसफर आदेश के खिलाफ ED की याचिका का निपटारा किया। कार्यवाही ट्रांसफर की मांग करने वाला आवेदन आरोपी अजय एस. मित्तल ने दायर किया था। उन्होंने आरोप लगाया कि जब उनकी जमानत याचिका जज के समक्ष लंबित थी तो वकीलों के कोर्ट रूम से बाहर जाने के बाद उनकी पत्नी ने जज को यह कहते हुए सुना कि "लेने दो तारीखें, ED मामलों में कौन सी जमानत होती है।"

यह तब हुआ, जब न्यायालय के कर्मचारियों ने कुछ पूछा। ED का कहना था कि मामला ट्रांसफर करने में एकमात्र कारण यह है कि आरोपी की पत्नी ने जज को यह कहते हुए सुना कि "ED मामलों में जमानत नहीं मिलती।"

विशेष वकील जोहेब हुसैन द्वारा प्रस्तुत ED ने तर्क दिया कि पत्नी के कथन को निचली अदालत ने सत्य के रूप में स्वीकार कर लिया और न तो संबंधित जज से कोई रिपोर्ट मांगी गई और न ही कोई सत्यापन किया गया। यह भी कहा गया कि यह फोरम शॉपिंग का क्लासिक मामला है और अगर कोई पक्षकार जज पर केवल इसलिए आक्षेप लगाता है कि वह मामले की सुनवाई न करे तो इससे पूरी आपराधिक न्याय प्रणाली में समस्या पैदा होती है।

सीनियर एडवोकेट संदीप सेठी ने आरोपी की ओर से पेश होकर कहा कि आरोपित आदेश एक प्रशासनिक आदेश था, जो केवल एक मामले को एक जज से दूसरे जज को हस्तांतरित कर रहा था।

निचली अदालत के समक्ष आरोपी ने आरोप लगाया कि जज की टिप्पणियों से उसे झटका लगा और उसे उचित आशंका थी कि पीठासीन अधिकारी उसकी जमानत याचिका खारिज करने के लिए "पूर्व-निर्धारित और पूर्वाग्रही विवेक" के साथ बैठा है।

मामला ट्रांसफर करते समय निचली अदालत ने कहा था कि आरोपी की धारणा और दृष्टिकोण, जिसमें कहा गया कि उसे अदालत से निष्पक्ष सुनवाई की उम्मीद नहीं थी, उसको उचित ध्यान दिया जाना चाहिए।

केस टाइटल: ED बनाम अजय एस मित्तल

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