ट्रायल जज को डराने की कोशिश पर दिल्ली हाईकोर्ट की फटकार; कहा— “जज, जज होता है, चाहे कहीं भी बैठा हो”

Update: 2025-12-03 13:39 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अधिवक्ता को फटकार लगाई, जिस पर आरोप था कि उसने ट्रायल कोर्ट के जज को डराने-धमकाने की कोशिश की। अदालत ने वकील को याद दिलाया कि “जज, जज होता है—चाहे वह न्यायिक पदानुक्रम में कहीं भी क्यों न बैठा हो।”

जस्टिस गिरीश कथपालिया ने टिप्पणी की:

“हाल के दिनों में देखा जा रहा है कि जब किसी मामले में मेरिट नहीं होता या संबंधित जज लंबी सुनवाई की अनुमति नहीं देता और कार्यवाही खींचने नहीं देता, तो कुछ (सौभाग्य से सभी नहीं) वकील जज को प्रभावित या दबाव में लाने का प्रयास करते हैं, विशेषकर ज़िला अदालतों के जजों को।”

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता ने ट्रायल कोर्ट में प्रतिवादी के रूप में साक्ष्य प्रस्तुत करने का अधिकार बहाल करने की मांग की थी।
ट्रायल कोर्ट ने बार-बार स्थगन (adjournment) माँगने और झूठी समझौते की बात कहकर कार्यवाही टालने की वजह से याचिकाकर्ता का अधिकार बंद कर दिया था।

ट्रायल कोर्ट के आदेश में यह भी दर्ज था कि—

  • वकील उच्च स्वर (high pitch) में बात कर रहा था,
  • जज के शांत रहने और समझाने पर भी वह नहीं माना,
  • उसने ज़िद करते हुए कहा कि उसे स्थगन चाहिए और वह बहस नहीं करेगा,
  • वकील ने यह भी कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करता है जहाँ बहस का कई बार मौका दिया जाता है।

हाईकोर्ट में भी वकील ने दलील दी कि वह आदतन ऊँची आवाज़ में बोलता है

हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी

अदालत इस स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं हुई और बोली:

“यह अत्यंत निंदनीय है कि शांत रहने को कहने पर भी वकील ऊँची आवाज़ में बोलता रहा और सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने का हवाला देता रहा। इतना ही नहीं, उसे उसी दिन बहस सुनने के लिए 'पासओवर' भी दिया गया, लेकिन उसने बदतमीज़ी करते हुए कहा कि वह बहस नहीं करेगा और कोर्ट अपनी मर्ज़ी से आदेश दे दे।”

अदालत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत हाईकोर्ट का दायित्व है कि वह जिला अदालतों में शिष्टाचार और मर्यादा (decorum) सुनिश्चित करे।

“जज, जज होता है—चाहे न्यायिक संरचना में किसी भी स्तर पर क्यों न बैठा हो। उसके साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया जा सकता जैसा इस मामले में हुआ।”

माफी के बाद याचिका वापस लेने की अनुमति

अंततः जब वकील ने अपने व्यवहार पर खेद व्यक्त किया, तो हाईकोर्ट ने याचिका को गुण-दोष के आधार पर खारिज करने के बजाय वापस लेने की अनुमति दे दी।

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