दिल्ली हाईकोर्ट ने बेटी की मौत के मामले में केजरीवाल की कथित राजनीतिक साजिश के तहत FIR दर्ज करने की महिला की याचिका खारिज की
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में मां द्वारा दायर याचिका खारिज की, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, कुमार विश्वास और आम आदमी पार्टी (AAP) के अन्य कार्यकर्ताओं से जुड़ी कथित राजनीतिक साजिश के तहत 2013 में अपनी बेटी की मौत के मामले में एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई थी।
जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने कलावती द्वारा दायर याचिका खारिज की, जिन्होंने पिछले साल पारित ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। इसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (SC/ST Act) के तहत एफआईआर दर्ज करने की उनकी याचिका खारिज की गई।
2022 में दायर अपनी शिकायत में कलावती ने आरोप लगाया कि उनका मानना था कि उनकी बेटी की हत्या अरविंद केजरीवाल, कुमार विश्वास, वंदना, कुलदीप पवार, गौरव, पंकज आदि जैसे लोगों ने की थी, क्योंकि वह पिछड़े वर्ग से थी। उन्होंने आगे आरोप लगाया कि अरविंद केजरीवाल जैसे लोगों को उनकी बेटी की मौत से राजनीतिक लाभ मिला। उनका कहना था कि उनकी बेटी अरविंद केजरीवाल के साथ परिवर्तन संस्था में काम कर रही थी। 2013 में पार्टी मीटिंग में भाग लेने जाते समय उनकी बेटी का एक्सीडेंट हो गया।
उन्होंने आरोप लगाया कि परिवार के सदस्यों को केवल दिन के समय अस्पताल में रहने की अनुमति दी गई। डॉक्टर केवल अरविंद केजरीवाल से ही बात कर रहे थे, जो बदले में उन्हें और उनके परिवार के सदस्यों को बेटी की चिकित्सा स्थिति के बारे में सूचित करते थे।
उन्होंने कहा कि उनकी बेटी एक महीने तक वेंटिलेटर पर रही और उसकी मृत्यु से चार दिन पहले उसे आईसीयू से सामान्य वार्ड में ट्रांसफर कर दिया गया। अगस्त 2013 में उसकी मृत्यु हो गई।
उन्होंने आगे आरोप लगाया कि जब वह अरविंद केजरीवाल से मिलने गईं तो उन्होंने उन पर चिल्लाया और कहा कि वह अपनी बेटी का नाम न लें, क्योंकि उन्होंने केस फाइल बंद करवा दी है और कोई एफआईआर दर्ज नहीं की।
आक्षेपित आदेश के अनुसार, ट्रायल कोर्ट ने पाया कि SC/ST Act के तहत कोई अपराध नहीं किया गया। केवल इसलिए कि मृतक अनुसूचित जाति समुदाय से था, इस मामले को अधिनियम के दायरे में लाने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।
याचिका खारिज करते हुए जस्टिस कृष्णा ने कहा कि वर्ष 2013 में एफआईआर दर्ज की गई तथा उचित जांच के बाद अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की गई, जिसे एसीजेएम ने स्वीकार कर लिया था।
अदालत ने यह भी कहा कि एसीजेएम के समक्ष मां की विरोध याचिका स्वीकार कर ली गई तथा आगे की जांच करने का निर्देश दिया गया।
जस्टिस कृष्णा ने कहा कि एक बार घटना के बारे में एफआईआर दर्ज हो जाने तथा जांच शुरू हो जाने के बाद कानून उसी घटना पर दूसरी प्राथमिकी दर्ज करने की अनुमति नहीं देता।
अदालत ने कहा,
"यह भी ध्यान देने योग्य है कि पूरी घटना जिसमें संतोष कोली को गंभीर चोटें आईं, जो अंततः घातक साबित हुईं, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश में हुई थी। उक्त घटना का कोई भी हिस्सा दिल्ली के अधिकार क्षेत्र में नहीं हुआ था।"
इसने कहा कि कोई नई एफआईआर दर्ज करने का निर्देश नहीं दिया जा सकता है, जैसा कि ट्रायल कोर्ट ने अपने आदेश में सही कहा था।
अदालत ने आगे कहा कि इस मामले में न तो जाति-आधारित गाली दी गई और न ही अपमान या अपमानित करने वाली कोई टिप्पणी की गई, जो कि SC/ST Act, 1989 के तहत पीड़ितों के खिलाफ आम तौर पर किया जाने वाला सबसे आम अपराध है।
अदालत ने कहा,
“यद्यपि शिकायत में याचिकाकर्ता-कलावती द्वारा किए गए सभी कथनों को स्वीकार कर लिया जाता है, फिर भी कोई जाति-आधारित गाली या अपमान, गाली या अपमानित करने वाली कोई टिप्पणी नहीं है, जिसे समझा जा सके, सिवाय इसके कि याचिकाकर्ता-कलावती ने कथित तौर पर अपनी बेटी की हत्या उनकी जाति के कारण करने का आरोप लगाया है, जो कि अनिवार्य रूप से उसके अनुमान पर आधारित है और इसका कोई आधार नहीं है।”
केस टाइटल: कलावती बनाम दिल्ली राज्य सरकार