जटिल विवादित तथ्यात्मक मुद्दों को सुलझाने के लिए अवमानना ​​कार्यवाही अनुपयुक्त: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2024-09-12 09:56 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस धर्मेश शर्मा की पीठ ने माना है कि अवमानना ​​कार्यवाही विवादित तथ्यात्मक मुद्दों को हल करने के लिए उपयुक्त मंच नहीं है, जैसे कि लेखांकन प्रथाओं की निष्पक्षता या औचित्य निर्धारित करने के लिए विस्तृत लेखांकन विश्लेषण करना।

मामले में हाईकोर्ट ने 10 नवंबर, 2016 के अपने पहले के आदेश का हवाला दिया। इस आदेश का उद्देश्य अंतरिम राहत प्रदान करना और संबंधित कंपनियों की अचल संपत्ति के संबंध में यथास्थिति बनाए रखना था।

10 नवंबर, 2016 के आदेश में यह अनिवार्य किया गया था कि मध्यस्थता अधिनियम की धारा 34 के तहत याचिका का समाधान होने तक कुछ वित्तीय शर्तों का पालन किया जाए। प्रतिवादियों को निर्देश दिया गया था कि वे अपनी अचल संपत्ति में किसी तीसरे पक्ष के हित न बनाएं और देनदारों से वसूली गई राशि सुरक्षित करें। यह निर्देश मध्यस्थता अधिनियम की धारा 34 के तहत याचिका के निपटारे के बाद चार सप्ताह तक प्रभावी रहना था।

हाईकोर्ट ने तब उल्लेख किया कि विवाद इस बात पर केंद्रित था कि क्या प्रतिवादियों, विशेष रूप से प्रतिवादी संख्या एक ने अनुचित रूप से 25 लाख रुपये की राशि का विनियोजन किया था। वित्तीय वर्ष 2016-17 और 2017-18 के दौरान न्यायालय की अनुमति के बिना 40.65 करोड़ रुपये का ऋण लिया। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि प्रतिवादियों ने बिना उचित प्राधिकरण के इन ऋणों को वसूल किया।

हालांकि, हाईकोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता अपने दावे का समर्थन करने के लिए पर्याप्त सबूत देने में विफल रहे। उन्होंने प्रत्यक्ष लेखांकन प्रविष्टियों या अन्य ठोस सबूतों के माध्यम से यह प्रदर्शित नहीं किया है कि प्रतिवादी नंबर 1 ने संबंधित ऋणों या प्रतिभूतियों को वसूल किया है।

हाईकोर्ट ने लेखा परीक्षक ए. नागेश्वरन द्वारा प्रदान किए गए एक विस्तृत प्रमाण पत्र की जांच की। प्रमाण पत्र ने अप्राप्य ऋणों और गैर-भुगतान योग्य लेनदारों के बट्टे खाते में डालने सहित संबंधित वर्षों के लिए बैलेंस शीट में परिवर्तनों को स्पष्ट किया। लेखा परीक्षक के प्रमाण पत्र ने पुष्टि की कि ये बट्टे खाते में डालना मानक लेखांकन प्रथाएँ थीं, जो लेखांकन मानकों के तहत अनुमेय थीं। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इन बट्टे खाते में डालने के कारण नकदी का कोई वास्तविक प्रवाह या बहिर्वाह नहीं हुआ, और कंपनी की वित्तीय स्थिति स्थिर रही।

हाईकोर्ट ने नोट किया कि प्रतिवादियों के चार्टर्ड अकाउंटेंट द्वारा दिए गए स्पष्टीकरणों का किसी अन्य वित्तीय विशेषज्ञ या चार्टर्ड अकाउंटेंट द्वारा प्रतिवाद नहीं किया गया है। इस प्रकार, हाईकोर्ट ने माना कि 40.65 करोड़ रुपये वसूले जाने या ऋणों को अनुचित तरीके से संभालने के दावों में कोई दम नहीं है।

हाईकोर्ट ने स्वीकार किया कि खराब ऋणों को बट्टे खाते में डालने के लिए मानक प्रक्रियाएं हैं, खासकर जब ऋण समय-सीमा पार कर चुके हों या देनदार दिवालिया हो। हाईकोर्ट को यह सुझाव देने के लिए कोई सबूत नहीं मिला कि इस्तेमाल की गई लेखांकन प्रथाएं अनुचित या गैर-मानक थीं।

इसलिए, हाईकोर्ट ने लेखांकन प्रथाओं की विस्तृत जांच में शामिल न होने का फैसला किया। कोर्ट ने माना कि जटिल तथ्यात्मक विवादों को हल करने के लिए अवमानना ​​कार्यवाही उपयुक्त नहीं है। न्यायालय के आदेशों की जानबूझकर या जानबूझकर अवज्ञा के स्पष्ट सबूतों के अभाव को देखते हुए, अवमानना ​​याचिकाएं खारिज की जाती हैं।

केस टाइटल: मॉर्गन वेंचर्स लिमिटेड बनाम नेपसी इंडिया लिमिटेड और अन्य और अन्य और संबंधित मामले

केस संख्या: CONT.CAS(C) 585/2020 और CM APPL. 14357/2021 और इससे जुड़े मामले

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