सीमा अवधि की गणना करते समय दोनों पक्ष धारा 34(3) के उत्तरार्द्ध भाग का लाभ पाने के हकदार: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2024-09-19 09:39 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने धारा 34 के तहत एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि कोई भी पक्ष सीमा अवधि की गणना करते समय धारा 34(3) के दूसरे भाग से लाभ उठा सकता है। कानून की भाषा यह निर्दिष्ट नहीं करती है कि धारा 33 के तहत किसे अनुरोध करना चाहिए। इसलिए, धारा 33 के तहत आवेदन के निपटान की तिथि से सीमा अवधि की गणना करने का लाभ दोनों पक्षों को उपलब्ध है।

जस्टिस सी हरि शंकर की पीठ ने कहा, मध्यस्थता अधिनियम की धारा 33 में अवॉर्ड के सुधार और व्याख्या तथा अतिरिक्त अवॉर्ड देने का प्रावधान है।

अधिनियम की धारा 34(3) में सीमा अवधि निर्धारित की गई है, जिसके भीतर मध्यस्थ अवॉर्ड को रद्द करने के लिए आवेदन दायर किया जाना है। ऐसा आवेदन अवॉर्ड की सेवा की तिथि से तीन महीने के भीतर या, यदि धारा 33 के तहत आवेदन किया जाता है, तो आवेदन के निपटान की तिथि से किया जाना चाहिए।

पीठ ने कहा कि धारा 33 के तहत याचिका दायर करने के लिए सीमा अवधि की गणना धारा 33 के आवेदन के निपटान की तिथि से करने का लाभ उस पक्ष के लिए विशिष्ट नहीं है जिसने उक्त आवेदन दायर किया था। उस दृष्टिकोण से, धारा 34(3) को भी दो अलग-अलग भागों में विभाजित किया जा सकता है।

धारा 34(3) के पहले भाग का सीधा सा अर्थ है कि यदि कोई पक्ष मध्यस्थता अवॉर्ड को चुनौती देना चाहता है, तो उसे अवॉर्ड प्राप्त करने की तिथि से तीन महीने के भीतर धारा 34 याचिका दायर करनी होगी। धारा 34(3) का दूसरा भाग यह मानता है कि धारा 33 के तहत एक आवेदन पेश किया गया है। यह नहीं कहता कि आवेदन किसे दायर करना चाहिए।

इस प्रकार, धारा 33, धारा 34(3) के तहत आवेदन दायर करने से उक्त आवेदन के निपटान की तिथि से तीन महीने की अवधि के भीतर धारा 34 के तहत याचिका दायर करने की अनुमति मिलती है।

पीठ ने आगे कहा कि धारा 34(3) के तहत सीमा अवधि की गणना करते समय, यह मायने नहीं रखता कि अवॉर्डों को स्वतंत्र रूप से चुनौती दी जा सकती है या नहीं। न्यायालय के लिए धारा 34(3) के तहत लाभकारी वैधानिक छूट को इस आधार पर कम करना उचित नहीं है कि दोनों अवॉर्डों को स्वतंत्र रूप से चुनौती दी जा सकती है या नहीं।

पीठ ने यह भी कहा कि धारा 33 के आवेदन के निपटान की तिथि से सीमा अवधि की गणना उक्त धारा की उप-धारा या खंड पर निर्भर नहीं करती है। इसलिए, यह प्रासंगिक नहीं है कि आवेदन धारा 33 की उप-धारा के तहत दायर किया गया था या नहीं; धारा 34 याचिका आवेदन के निपटान की तिथि से तीन महीने बाद दायर की जा सकती है।

केस टाइटलः प्राइम इंटरग्लोब प्राइवेट लिमिटेड बनाम सुपर मिल्क प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड

केस नंबर: ओ.एम.पी. (कॉम) 368/2023

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