SBI की लापरवाही से एडवोकेट नहीं दे पाए A.P.O. परीक्षा; कानपुर उपभोक्ता आयोग ने बैंक को ₹7 लाख मुआवज़ा और ब्याज देने का आदेश दिया

Update: 2025-11-11 08:07 GMT

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, कानपुर नगर, ने राज्य बैंक ऑफ इंडिया (SBI) को अपनी लापरवाही के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए अधिवक्ता अवनीश वर्मा को ₹7,00,000 मुआवज़ा, 7% साधारण ब्याज और ₹10,000 मुकदमे का खर्च देने का आदेश दिया है। यह आदेश आयोग के अध्यक्ष विनोद कुमार और सदस्य नीलम यादव की पीठ ने पारित किया। मामला बैंक द्वारा शिकायतकर्ता की A.P.O. 2015 मुख्य परीक्षा की फीस जमा न करने से संबंधित था, जिसके कारण वह परीक्षा में सम्मिलित नहीं हो सके।

पूरा मामला:

शिकायतकर्ता अवनीश वर्मा, जो इलाहाबाद हाईकोर्ट में अधिवक्ता हैं, ने राज्य बैंक ऑफ इंडिया के खिलाफ जिला उपभोक्ता आयोग, कानपुर नगर में शिकायत दर्ज की। उन्होंने उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (UPPSC) द्वारा आयोजित सहायक अभियोजन अधिकारी (A.P.O.) परीक्षा 2015 की प्रारंभिक परीक्षा उत्तीर्ण की थी और 7 दिसंबर 2015 को SBI की कृष्णा नगर शाखा, कानपुर में ₹225 परीक्षा शुल्क के रूप में जमा किया।

हालांकि, बैंक कर्मचारी की लापरवाही के कारण यह राशि UPPSC खाते में जमा नहीं हुई, जबकि शिकायतकर्ता को रसीद जारी कर दी गई थी। जब उन्होंने ऑनलाइन भुगतान स्थिति अपडेट करने की कोशिश की, तो बैंक ने “तकनीकी समस्या” का हवाला दिया। 12–13 दिसंबर 2015 को सप्ताहांत की छुट्टी होने के कारण शिकायतकर्ता आवेदन प्रक्रिया पूरी नहीं कर सके और परीक्षा में शामिल होने से वंचित रह गए, जिससे उन्हें करियर और आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा।

उन्होंने बाद में भारतीय रिजर्व बैंक के बैंकिंग लोकपाल के समक्ष शिकायत की, जिसने SBI को दोषी पाया और ₹10,000 मुआवज़ा देने का निर्देश दिया। बैंक ने अपनी गलती मानते हुए माफी पत्र भी जारी किया। परंतु शिकायतकर्ता ने मुआवज़े को अपर्याप्त बताते हुए ₹20 लाख की क्षतिपूर्ति की मांग करते हुए वर्तमान उपभोक्ता शिकायत दायर की।

शिकायतकर्ता की दलीलें:

शिकायतकर्ता ने कहा कि उन्होंने 7 दिसंबर 2015 को SBI की कृष्णा नगर शाखा में परीक्षा शुल्क ₹225 जमा किया था, परंतु बैंक की लापरवाही से यह राशि UPPSC खाते में नहीं गई। इस कारण वे आवेदन प्रक्रिया पूरी नहीं कर सके और परीक्षा से वंचित रह गए। उन्होंने कहा कि इस घटना से उन्हें गंभीर करियर, मानसिक और आर्थिक नुकसान हुआ।

विपक्षी पक्ष की दलीलें:

राज्य बैंक ऑफ इंडिया और उसके अधिकारियों की ओर से कोई जवाब दाखिल नहीं किया गया और न ही कोई पेशी हुई, जिसके चलते मामला एकतरफा (ex-parte) सुना गया। बैंक द्वारा पूर्व में लोकपाल के समक्ष स्वीकार की गई गलती, माफी पत्र और ₹10,000 मुआवज़ा भुगतान के रिकॉर्ड को आयोग ने सबूत के रूप में माना, जो उनकी लापरवाही का अप्रत्यक्ष स्वीकृति थी।

आयोग के अवलोकन और निर्णय:

आयोग ने पाया कि राज्य बैंक ऑफ इंडिया ने शिकायतकर्ता की परीक्षा शुल्क जमा प्रक्रिया में गंभीर लापरवाही की, जिसके कारण वे A.P.O. मुख्य परीक्षा 2015 में शामिल नहीं हो सके और उन्हें करियर, मानसिक व आर्थिक नुकसान हुआ। आयोग ने यह भी उल्लेख किया कि बैंक ने अपनी गलती 8 अप्रैल 2016 के पत्र में स्वीकार की थी और बैंकिंग लोकपाल ने पहले ही बैंक को सेवा में कमी का दोषी ठहराया था।

आयोग ने कहा कि बैंक द्वारा दिया गया ₹10,000 का मुआवज़ा अपर्याप्त है और बैंक की गलती के कारण शिकायतकर्ता को हुआ नुकसान कहीं अधिक है। इसलिए, SBI और उसके अधिकारियों को संयुक्त रूप से जिम्मेदार (jointly and severally liable) ठहराते हुए आयोग ने आदेश दिया कि वे शिकायतकर्ता को ₹7,00,000 मुआवज़ा, 16 अक्टूबर 2018 से 7% साधारण ब्याज सहित, तथा ₹10,000 मुकदमे का खर्च 45 दिनों के भीतर अदा करें।

यह आदेश 3 अक्टूबर 2025 को पारित किया गया।

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