उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम केवल 'व्यवसाय से उपभोक्ता' विवादों पर लागू, 'व्यवसाय से व्यवसाय' मामलों पर नहीं – जिला आयोग, त्रिशूर

जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, त्रिशूर ने एस्ट्रा बायो साइंस लिमिटेड द्वारा दायर एक शिकायत को खारिज कर दिया। यह शिकायत M/S रीटा पैड प्रिंटिंग सिस्टम्स के खिलाफ थी, जिसमें कंपनी ने एक मशीन की डिलीवरी न होने पर धनवापसी की मांग की थी, जबकि अनुबंध की शर्तों के अनुसार डिलीवरी का समय 70 दिन निर्धारित था।
आयोग ने फैसला सुनाया कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 'व्यवसाय से उपभोक्ता' विवादों से संबंधित मामलों के समाधान के लिए है। हालांकि, इस मामले में शिकायतकर्ता और प्रतिवादी के बीच का लेन-देन 'व्यवसाय से व्यवसाय' श्रेणी में आता है। इसलिए, शिकायतकर्ता 'उपभोक्ता' की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत उसे कोई राहत नहीं दी जा सकती।
पुरा मामला:
शिकायतकर्ता, जो चिकित्सा उपकरणों और सहायक उपकरणों के व्यवसाय में संलग्न एक कंपनी है, ने 24/09/2024 को M/S रीटा पैड प्रिंटिंग सिस्टम्स से 'Moelock Special Pad Printing System' के निर्माण और आपूर्ति के लिए एक खरीद आर्डर दिया था। इस मशीनरी में MRV 100 डबल कलर मशीन, एक फ्लेम ट्रीटमेंट यूनिट, ऑटो लोडिंग और अनलोडिंग सिस्टम, और 15 मिलीलीटर सेंट्रीफ्यूज ट्यूब पर प्रिंट करने की क्षमता शामिल थी, साथ ही बदलने योग्य भागों को जोड़ने का विकल्प भी था।
शिकायतकर्ता और प्रतिवादी ने ₹28,32,000 (GST और डिलीवरी चार्ज सहित) की कुल राशि पर सहमति जताई थी, और डिलीवरी 70 दिनों के भीतर पूरी होनी थी। शिकायतकर्ता के अनुसार, ₹10 लाख अग्रिम भुगतान कर दिया गया था। हालांकि, सितंबर 2021 तक, प्रतिवादी ने यह जानकारी नहीं दी कि मशीनरी तैयार है या नहीं।
21/09/2021 को, शिकायतकर्ता को कुछ प्रिंट किए गए नमूने प्राप्त हुए, जिनमें प्रिंटिंग कमियां थी। इसके बाद, शिकायतकर्ता ने अपने तकनीशियनों को प्रतिवादी के परिसर में मशीनों का निरीक्षण करने और प्रशिक्षण लेने के लिए भेजा। शिकायतकर्ता के अनुसार, मशीन से अत्यधिक शोर हो रहा था और प्रतिवादी द्वारा दोष सुधारने का प्रयास विफल रहा।
मशीन की डिलीवरी न होने के कारण, शिकायतकर्ता को भारी नुकसान हुआ। उसके अनुसार, इस अवधि में ₹3 करोड़ के वर्क ऑर्डर मिले थे, लेकिन आवश्यक मशीनरी न होने के कारण वे पूरे नहीं किए जा सके।
प्रतिवादी की विफलता को सेवा में कमी और असमान व्यापार प्रथा मानते हुए, शिकायतकर्ता ने जिला आयोग में शिकायत दर्ज कर ₹30 लाख मुआवजे की मांग की। साथ ही, दोषपूर्ण मशीन लेने से इनकार करते हुए, शिकायतकर्ता ने ₹10 लाख अग्रिम राशि की वापसी की भी मांग की।
प्रतिवादी पक्ष समय पर आयोग के समक्ष लिखित उत्तर दाखिल करने में विफल रहा, जिसके कारण एकतरफा कार्यवाही की गई।
आयोग का निर्णय:
आयोग ने साक्ष्यों की जांच करने के बाद पाया कि शिकायतकर्ता पहले से ही चिकित्सा उपकरणों के व्यवसाय में संलग्न था, और यह खरीद आदेश व्यावसायिक लाभ कमाने के उद्देश्य से दिया गया था। इसलिए, यह स्पष्ट था कि मशीनरी की खरीद व्यावसायिक उद्देश्य के लिए की गई थी।
बाद में, संशोधित शिकायत में, शिकायतकर्ता ने दावा किया कि यह व्यवसाय जीविकोपार्जन के लिए चलाया जा रहा था। हालांकि, आयोग ने कहा कि यदि किसी लेन-देन का व्यावसायिक स्वरूप स्पष्ट है, तो यह साबित करने का दायित्व शिकायतकर्ता पर था कि उसका व्यवसाय केवल जीविका चलाने के लिए है। लेकिन शिकायतकर्ता इस दावे को साबित करने में असफल रहा।
आयोग ने स्पष्ट किया कि शिकायतकर्ता ने प्रतिवादी से मशीनरी का खरीद आदेश अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए दिया था, न कि व्यक्तिगत उपभोग के लिए। इसलिए, यह माना गया कि शिकायतकर्ता उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत 'उपभोक्ता' की परिभाषा में नहीं आता।
इसके अलावा, आयोग ने कहा कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 2(7)(a) केवल उन लोगों को अपवाद के रूप में मान्यता देती है, जो स्वरोजगार के लिए वस्तुओं की खरीद और उपयोग करते हैं। लेकिन जो लोग व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए सेवाओं का उपयोग करते हैं, वे इस अपवाद में शामिल नहीं होते। इस मामले में, शिकायत सेवाओं से संबंधित थी, इसलिए शिकायतकर्ता को कोई कानूनी संरक्षण नहीं दिया जा सकता।
आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले श्रीकांत जी मांतड़ी बनाम पंजाब नेशनल बैंक का हवाला देते हुए कहा कि उपभोक्ता संरक्षण केवल 'व्यवसाय से उपभोक्ता' विवादों को कवर करता है, न कि 'व्यवसाय से व्यवसाय' विवादों या बड़े पैमाने पर लाभ कमाने के उद्देश्य से किए गए लेन-देन को।
इन निष्कर्षों के आधार पर, आयोग ने शिकायत को खारिज कर दिया और कहा कि शिकायतकर्ता उचित समाधान के लिए किसी अन्य सक्षम फोरम का रुख करने के लिए स्वतंत्र है।