कटक जिला आयोग ने अपोलो अस्पताल को अनुमानित उपचार खर्च का खुलासा नहीं करने के लिए जिम्मेदार ठहराया

Update: 2023-12-15 15:55 GMT

जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, कटक (ओडिशा) के अध्यक्ष श्री देबाशीष नायक और श्री सिबानंद मोहंती (सदस्य) की खंडपीठ ने अपोलो हॉस्पिटल्स एंटरप्राइज लिमिटेड को मरीज के परिवार के सदस्यों को अनुमानित लागत का खुलासा नहीं करने के लिए उत्तरदायी ठहराया। जिला आयोग ने भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 के अनुरूप रोगियों और उनके परिवारों को अनुमानित उपचार व्यय का ब्योरा देने में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए चिकित्सा संस्थानों के कर्तव्य को दोहराया।

पूरा मामला:

श्री रमेश चंद्र पटनायक (शिकायतकर्ता) की पत्नी को पैर में चोट लगी और अंततः 2 अस्पतालों को बदलने के बाद उन्हें भुवनेश्वर के अपोलो अस्पताल (अस्पताल) में भर्ती कर दिया गया। अस्पताल ने शिकायतकर्ता से प्रवेश शुल्क के रूप में 10,000 रुपये लिए। इसके बाद शिकायतकर्ता की पत्नी को आईसीयू में ले जाया गया और छह दिनों तक वहां रखा गया। उन्हें अस्पताल के भीतर कई बार वार्ड बदलना पड़ा। अस्पताल ने शिकायतकर्ता से कमरे के किराए के रूप में कुल 87,050 रुपये लिए। इसके अलावा, उपचार के दौरान, शिकायतकर्ता के पास इलाज करने वाले डॉक्टर के साथ पत्नी की स्थिति पर चर्चा करने के सीमित अवसर थे। कई अनुरोधों के बावजूद, अस्पताल ने फ़ी स्ट्रक्चर का खुलासा नहीं किया, और शिकायतकर्ताओं को बाद में सूचित किया गया कि उच्च टीएलसी के कारण ऑपरेशन नहीं किया जा सकता , और वे इसके सामान्य होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। शिकायतकर्ताओं ने अपनी वित्तीय बाधाओं को व्यक्त किया, और अस्पताल के साथ चर्चा के बाद, उनकी पत्नी को कहीं और स्थानांतरित करने का सुझाव दिया गया। इलाज करने वाले डॉक्टर सात दिनों के लिए पत्नी का निरीक्षण करना चाहते थे ताकि यह देखा जा सके कि टीएलसी दर कम हो जाएगी या नहीं।

बाद में, शिकायतकर्ता की पत्नी को आईसीयू से केबिन में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां उसे खुजली की समस्या हुई। एक डॉक्टर ने नर्सिंग स्टाफ को "स्पेक्ट्रा" दवा देने का निर्देश दिया, लेकिन शिकायतकर्ता की पत्नी इसके बाद बेहोश हो गई। जब यह मामला डॉक्टर के संज्ञान में लाया गया, तो उन्होंने शिकायतकर्ता को उसे कहीं और ले जाने की सलाह दी। तीन दिन बाद, शिकायतकर्ता के संज्ञान में आया कि सभी उपचार बंद कर दिए गए थे, नर्सिंग सेवाओं को निलंबित कर दिया गया था, और उसकी पत्नी को कोई दवा नहीं दी गई थी, जो एक दर्दनाक स्थिति में थी। बाद में, उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई और पुरी के एक अन्य ई -24 अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां अंततः उनकी मृत्यु हो गई। इन सब से परेशान होकर, शिकायतकर्ता ने जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, कटक, ओडिशा में उपभोक्ता शिकायत दर्ज कराई।

शिकायतकर्ता ने विशेष रूप से 782 दस्ताने(Gloves) की आवश्यकता पर सवाल उठाया, जिसमें 4,681 रुपये के शुल्क का दावा किया गया, जो कथित तौर पर अस्पताल के कर्मचारियों द्वारा उपयोग किया जाता है। उनके अनुसार, डॉक्टर/स्टाफ के दौरे के लिए शुल्क लगाए जाने के बावजूद, डॉक्टर नियमित रूप से दौरे पर नही आते थे। इसके अलावा, शिकायतकर्ताओं ने आरोप लगाया कि बिना दौरा किए मरीज का इलाज रिकॉर्ड तैयार किया गया और शुल्क लिए गए।

जवाब में, अस्पताल ने तर्क दिया कि शिकायतकर्ता सही तथ्यों के साथ जिला आयोग में पेश नहीं हुआ और अस्पताल ने दावा किया कि सर्जरी की आवश्यकता के बावजूद, उन्होंने आईसीयू में हेमोडायलिसिस, एंटीबायोटिकदवाओं और अन्य उपचारों के माध्यम से शिकायतकर्ता की पत्नी कि हालात को स्थिर किया। अस्पताल ने दलील दी कि डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ नियमित रूप से दिन में लगभग दो बार मरीज का दौरा करते थे, प्रोग्रेस शीट नियमित रूप से तैयार किया गया जिसमे कहा गया है कि परिचारकों के साथ परामर्श सत्र नियमित रूप से हुए, जिसमें पत्नी की स्थिति, अगले कदम और दो मौकों पर वित्तीय खर्चों को संबोधित किया गया।

आयोग की टिप्पणियां:

जिला आयोग ने कहा कि फैमिली मीटिंग रिकॉर्ड में पत्नी की स्थिति और दूसरे अस्पताल में संभावित बदलाव के बारे में बताया गया है, लेकिन इसमें स्पष्ट रूप से वित्तीय पहलुओं का उल्लेख नहीं किया गया या नैदानिक सर्जरी में शामिल खर्चों का स्पष्ट अनुमान प्रदान नहीं किया गया। शिकायतकर्ता की पत्नी की बीमारी का निदान करने की अस्पताल की क्षमता को स्वीकार करते हुए, जिला आयोग ने सवाल किया कि अस्पताल ने उसके इलाज के लिए अनुमानित खर्च क्यों नहीं दिया।

जिला आयोग ने स्वास्थ्य सेवा देने वालों, विशेष रूप से अच्छी प्रतिष्ठा वाले लोगों की जिम्मेदारी पर जोर दिया, जो अनुमानित व्यय विवरण प्रस्तुत करते हैं, जिससे रोगी के परिवार को प्रत्याशित खर्चों के बारे में स्पष्टता मिलती है। इसलिए, जिला आयोग ने कहा कि शिकायतकर्ता को खर्च के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी का खुलासा नहीं करते हुए, अपोलो अस्पताल ने भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 के प्रावधानों का उल्लंघन किया है।

जिला आयोग ने आगे कहा कि अनुमानित उपचार व्यय प्रदान करने में पारदर्शिता की कमी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और रोगियों के परिवारों के बीच विश्वास को कम करती है। इसलिए, जिला आयोग ने अस्पताल को अनुचित व्यापार प्रथाओं और सेवाओं में कमी के लिए जिम्मेदार ठहराया और अस्पताल को निर्देश दिया कि वह शिकायतकर्ताओं को उनकी मानसिक पीड़ा और उत्पीड़न के लिए 13,00,000 रुपये का मुआवजा और शिकायतकर्ता द्वारा किए गए मुकदमे की लागत के लिए 30,000 रुपये की राशि का भुगतान करे।

केस का शीर्षक: रमेश चंद्र पटनायक और अन्य और अपोलो हॉस्पिटल्स एंटरप्राइज लिमिटेड और अन्य।

केस नंबर: सी.सी.नंबर 96/2020

शिकायतकर्ता के वकील: बी.एस.

प्रतिवादी के वकील: एमके मोहंती

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