छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता के 24 सप्ताह से अधिक पुराने भ्रूण को गिराने की अनुमति दी; कहा- पीड़िता को बलात्कारी के बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता

Update: 2025-01-03 06:44 GMT

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने गुरुवार को नाबालिग बलात्कार पीड़िता के 24 सप्ताह 6 दिन के भ्रूण को समाप्त करने की अनुमति प्रदान की। हाईकोर्ट ने फैसले में कहा कि पीड़िता/अभियोक्ता को बलात्कारी के बच्चे को जन्म देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।

पीड़िता/याचिकाकर्ता के शारीरिक स्वायत्तता के अधिकार पर जोर देते हुए जस्टिस बिभु दत्ता गुरु की एकल पीठ ने कहा -

“बलात्कार की पीड़िता को यह तय करने की स्वतंत्रता और अधिकार दिया जाना चाहिए कि उसे गर्भावस्था जारी रखनी चाहिए या उसे गर्भपात की अनुमति दी जानी चाहिए।”

पृष्ठभूमि

मामले में याचिकाकर्ता एक नाबालिग लड़की है। उसके साथ आरोपी ने जबरन यौन संबंध बनाए थे, जिसके परिणामस्वरूप वह गर्भवती हो गई। चूंकि याचिकाकर्ता बलात्कार से पैदा हुए बच्चे को जन्म देने के लिए तैयार नहीं थी, जिससे उसे बहुत पीड़ा हुई, इसलिए उसने भ्रूण के चिकित्सीय गर्भपात की मांग करते हुए यह याचिका दायर की।

कोर्ट ने 31 दिसंबर 2024 के आदेश के जर‌िए मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी/सिविल सर्जन, रायगढ़ से रिपोर्ट मांगी थी। उक्त आदेश के अनुपालन में संबंधित प्राधिकारी ने पीड़िता की चिकित्सकीय जांच की तथा न्यायालय के समक्ष रिपोर्ट प्रस्तुत की।

आदेश

कोर्ट ने आदेश में सबसे पहले प्रासंगिक कानूनी प्रावधान यानी गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम, 1971 की धारा 3 की जांच की, जिसके तहत पंजीकृत चिकित्सकों द्वारा गर्भ का समापन करने का प्रावधान किया गया है। कोर्ट ने विषय वस्तु में सुप्रीम कोर्ट की कई मिसालों का भी हवाला दिया, जिसमें सुचिता श्रीवास्तव एवं अन्य बनाम चंडीगढ़ प्रशासन शामिल है।

कोर्ट ने श्रीमती ए बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एवं अन्य पर भी भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने 22 वर्ष की आयु की एक महिला को उसके 25वें से 26वें सप्ताह में गर्भ समाप्त करने की अनुमति दी थी, जिसमें कहा गया था कि गर्भ जारी रखने से उसे गंभीर मानसिक क्षति हो सकती है तथा यदि उसे गर्भपात की अनुमति दी जाती है तो उसके जीवन को कोई अतिरिक्त जोखिम नहीं होगा।

इन सबसे ऊपर, जस्टिस गुरु ने एक्स बनाम प्रमुख सचिव, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, एनसीटी दिल्ली सरकार एवं अन्य के ऐतिहासिक मामले पर भी भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से माना कि अनुच्छेद 21 के तहत प्रजनन स्वायत्तता, गरिमा और निजता के अधिकार एक अविवाहित महिला को एक विवाहित महिला के समान ही बच्चा पैदा करने या न करने का विकल्प चुनने का अधिकार देते हैं।

ऐसी मिसाल को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने मामले के तथ्यों का विश्लेषण किया। मेडिकल रिपोर्ट से पता चला कि याचिकाकर्ता के गर्भ में 24 सप्ताह और 6 दिन का भ्रूण है। इसके अलावा, यह कहा गया कि अगर उसे गर्भावस्था जारी रखने की अनुमति दी जाती है, तो उसका मानसिक स्वास्थ्य खराब हो सकता है और प्रसवपूर्व/प्रसवोत्तर मानसिक बीमारी विकसित होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।

इसलिए, पीड़िता-याचिकाकर्ता के हित में और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत उसकी शारीरिक स्वायत्तता को ध्यान में रखते हुए, जैसा कि कई निर्णयों द्वारा समर्थित किया गया है, न्यायालय ने माना कि उसे यह निर्णय लेने की स्वतंत्रता और अधिकार दिया जाना चाहिए कि उसे गर्भावस्था जारी रखनी चाहिए या नहीं।

कोर्ट ने आदेश में कहा, "इस मामले के तथ्यों में, यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता की गर्भावस्था 24 सप्ताह से अधिक हो चुकी है और जब तक गर्भपात का निर्देश देने वाला न्यायिक आदेश उपलब्ध नहीं होता, तब तक डॉक्टरों के लिए गर्भावस्था को समाप्त करना भी संभव नहीं हो सकता है।"

तदनुसार, पीड़िता द्वारा बताई गई परिस्थितियों, उसकी गर्भकालीन आयु और न्यायिक उदाहरणों सहित तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने आदेश दिया कि उसे किरोड़ीमल सरकारी जिला अस्पताल, रायगढ़/मेडिकल कॉलेज अस्पताल (आईसीयू सुविधाओं के साथ) में भर्ती कराया जाए और संबंधित प्राधिकारी को याचिकाकर्ता की गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए विशेषज्ञ पंजीकृत चिकित्सकों को नियुक्त करने का निर्देश दिया गया।

केस टाइटल: एबीसी (नाबालिग) प्राकृतिक अभिभावक XYZ के माध्यम से बनाम छत्तीसगढ़ राज्य और अन्य।

केस नंबर: डब्ल्यूपीसी नंबर 6513 ऑफ 2024

आदेश की तिथि: 02 जनवरी, 2025

याचिकाकर्ता के वकील: श्री बसंत देवांगन, अधिवक्ता

राज्य के वकील: श्री प्रवीण दास, उप महाधिवक्ता

साइटेशन: 2025 लाइव लॉ (छत्तीसगढ़) 1


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