वित्तीय आपत्तियों के कारण सशर्त पदोन्नति राज्य हित में: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बिभु दत्ता गुरु की छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि राज्य के हितों की रक्षा के लिए कुछ शर्तों के अधीन पदोन्नति वैध रूप से दी जा सकती है, जैसे कि गंभीर वित्तीय आपत्तियों से संबंधित लंबित जांचों के परिणाम पर निर्भर होना।
मामले की पृष्ठभूमि के तथ्य
अपीलकर्ता/रिट याचिकाकर्ता विधि एवं विधायी कार्य विभाग में अवर सचिव के पद पर कार्यरत है। वह अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणी से आते हैं। उप-सचिव के पद पर उनकी पदोन्नति के मामले पर वर्ष 2012 में विभागीय पदोन्नति समिति (DPC) द्वारा विचार किया गया। DPC ने उनकी पांच वर्षों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (ACR) का मूल्यांकन किया। वर्ष 2007-2012 के लिए उनकी ACR ग्रेडिंग 'बहुत अच्छी' है, सिवाय इसके कि 2011 की ACR समिति के समक्ष प्रस्तुत नहीं की गई। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि ग्रेडिंग शेड्यूल के अनुसार, उसे 13 अंक दिए जाने चाहिए थे, लेकिन DPC ने उसे केवल 11 अंक दिए और उसे पदोन्नति के लिए अयोग्य पाया।
याचिकाकर्ता ने समीक्षा DPC का अनुरोध करते हुए अभ्यावेदन दिया, जिस पर कार्रवाई नहीं की गई। इसके बाद उसने याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने प्रतिवादियों को 90 दिनों के भीतर उसके अभ्यावेदन पर निर्णय लेने का निर्देश दिया। इसलिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में समीक्षा DPC बुलाई गई। समिति ने वार्षिक गोपनीय रिपोर्टों का पुनर्मूल्यांकन करने के बाद याचिकाकर्ता को 13 अंक दिए। समिति ने उसे उपयुक्त पाया और उप सचिव के पद पर उसकी पदोन्नति की सिफारिश की। इस सिफारिश को कानून मंत्री ने 12.05.2021 को मंजूरी दी। पदोन्नति आदेश जारी करने की मंजूरी 13.05.2021 को दी गई।
हालांकि, पदोन्नति आदेश 17.05.2021 को दो शर्तों के साथ जारी किया गया, अर्थात शर्त नंबर 2, जहां पदोन्नति उसकी पिछली पदोन्नति के संबंध में आपत्ति पर अंतिम निर्णय के अधीन थी। यदि आपत्ति का निर्णय उसके विरुद्ध होता है तो यह पदोन्नति स्वतः ही रद्द हो जाएगी। शर्त नंबर 3 में कहा गया कि उसकी वार्षिक वेतन वृद्धि देने का निर्णय महालेखाकार कार्यालय द्वारा उसे किए गए कथित 10,84,868/- रुपये के अधिक भुगतान के मुद्दे पर निर्णय लेने के बाद ही लिया जाएगा। याचिकाकर्ता ने इन शर्तों को हटाने के लिए अभ्यावेदन प्रस्तुत किया, जिसे राज्य ने अस्वीकार कर दिया। व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने नई रिट याचिका दायर की। सिंगल जज ने याचिका खारिज कर दी।
निर्णय से व्यथित होकर अपीलकर्ता ने वर्तमान अपील दायर की।
याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत किया गया कि 17.05.2021 के पदोन्नति आदेश में शर्तें नंबर 2 और 3 को लागू करना मनमाना था। यह भी प्रस्तुत किया गया कि समीक्षा DPC ने उचित मूल्यांकन के बाद याचिकाकर्ता की बिना शर्त पदोन्नति की सिफारिश की। इस सिफारिश को विधि मंत्री द्वारा विधिवत अनुमोदित किया गया। इस प्रकार, सचिव (विधि) द्वारा बाद में शर्तें जोड़ना प्रारंभ से ही अमान्य था। याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि विभाग को DPC के विचार-विमर्श के समय लंबित कार्यवाही और महालेखाकार कार्यालय द्वारा उठाई गई आपत्तियों की जानकारी थी। इसके बावजूद, DPC ने पदोन्नति की अनुशंसा की। इसलिए बाद में शर्तें जोड़ना अनुचित था।
दूसरी ओर, प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि समीक्षा DPC की बैठक के दौरान, महालेखाकार कार्यालय द्वारा आपत्तियां उठाई गईं। आपत्तियां यह थीं कि याचिकाकर्ता को गलत तरीके से अवर सचिव के पद पर पदोन्नत किया गया और ₹10,84,868/- की वसूली का आदेश दिया गया। यह भी तर्क दिया गया कि वित्तीय अनियमितताओं सहित इन गंभीर आरोपों के मद्देनजर, अधिकारियों ने पदोन्नति आदेश में शर्तें नंबर 2 और 3 जोड़ने का निर्णय लिया।
अदालत का निष्कर्ष
अदालत ने पाया कि महालेखाकार कार्यालय द्वारा गंभीर वित्तीय आपत्तियां उठाई गईं। ये आपत्तियां अपीलकर्ता की पूर्व में गलत पदोन्नति और 10,84,868/- रुपये के लंबित वसूली आदेश से संबंधित थीं। अदालत ने यह भी कहा कि शुरुआत में आपत्तियों को जिला नियोजन समिति या विभाग के समक्ष नहीं लाया गया। तदनुसार, जिला नियोजन समिति द्वारा याचिकाकर्ता को पदोन्नति देने की सिफ़ारिश की गई।
अदालत ने यह माना कि जब समिति को इस तथ्य की जानकारी हुई कि महालेखाकार द्वारा गंभीर आपत्तियां उठाई गईं तो राज्य के हितों की रक्षा और भविष्य में किसी भी प्रकार की जटिलता से बचने के लिए शर्तें नंबर 2 और 3 विधिसम्मत रूप से जोड़ी गईं।
अदालत ने यह भी माना कि इस तर्क में कोई दम नहीं है कि सचिव (विधि) के पास शर्तें जोड़ने का अधिकार नहीं था। यह भी कहा गया कि आरोपों की गंभीरता और प्रशासनिक औचित्य के हित में सर्वोच्च स्तर पर यह निर्णय लिया गया। इसके अलावा, सिंगल जज का निर्णय अदालत ने बरकरार रखा और कहा कि अपीलकर्ता, पदोन्नति आदेश को स्वीकार कर चुका है और लाभ प्राप्त करने के बाद उसकी शर्तों को चुनौती नहीं दे सकता।
अतः, यह निष्कर्ष निकाला गया कि गंभीर वित्तीय आपत्तियों से संबंधित लंबित जांचों के दौरान सशर्त पदोन्नति राज्य के हितों की रक्षा के लिए वैध है। सिंगल जज के आदेश में कोई कमी न पाते हुए अपीलकर्ता/रिट याचिकाकर्ता द्वारा दायर रिट अपील अदालत ने बिना किसी खर्चे के आदेश दिए खारिज की।
Case Name : Anil Sinha vs State of Chhattisgarh