आवश्यक और ठोस साक्ष्यों को अनुचित रूप से नज़रअंदाज करने पर अपीलीय न्यायालय के हस्तक्षेप का उचित कारण बनता है: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने यह माना कि जब किसी फैसले में स्पष्ट रूप से अनुचित निर्णय लिया गया हो और आवश्यक व ठोस साक्ष्यों को बिना किसी उचित कारण के नजरअंदाज कर दिया गया हो तो अपीलीय न्यायालय के हस्तक्षेप के लिए एक मजबूत और न्यायसंगत आधार उत्पन्न होता है।
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविंद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने गलत तरीके से बरी किए गए निर्णय को पलटते हुए यह टिप्पणी की,
"जब हाईकोर्ट या अपीलीय कोर्ट आरोप-मुक्ति के निर्णय के खिलाफ अपीलीय अधिकार क्षेत्र का उपयोग करते हैं तो वे पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों की पुनः समीक्षा और पुनर्मूल्यांकन करने के लिए पूर्ण रूप से सक्षम होते हैं। अपीलीय न्यायालय को ट्रायल कोर्ट द्वारा आरोपी को बरी किए जाने के कारणों पर विचार करना होता है और उन कारणों को खंडित करना होता है।”
मामला
यह मामला दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 378(1) के तहत दायर एक अपील से संबंधित है, जिसमें राज्य (अपीलकर्ता) ने उत्तर बस्तर कांकेर (छ.ग.) के एडिशनल सेशन जज द्वारा दिए गए आरोप-मुक्ति के आदेश को चुनौती दी।
शुरुआत में एक व्यक्ति लछूराम शिकायतकर्ता ने FIR दर्ज करवाई, जिसमें उसने अपने पिता रघुनाथ (मृतक) की हत्या की रिपोर्ट दी। आरोपियों को नक्सली बताया गया, जिन्होंने मृतक के घर में घुसकर उन्हें और शिकायतकर्ता को नदी के किनारे ले जाकर बांध दिया और मृतक की बांस की छड़ी व घूंसे मारकर हत्या कर दी।
FIR दर्ज होने के बाद आरोपियों पर IPC की धारा 147, 148, 302/149 तथा आर्म्स एक्ट की धारा 25/27 के तहत आरोप लगाए गए। पोस्टमार्टम के दौरान डॉक्टर ने पुष्टि की कि चोटें पूर्व-मरणकालीन थीं और मृत्यु का कारण महत्वपूर्ण अंगों को लगी चोटें थीं, जो कि हत्या को दर्शाती हैं।
निष्कर्ष
मृतक की मृत्यु हत्या थी या नहीं, इस पर न्यायालय ने माना कि ट्रायल कोर्ट द्वारा पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर दिया गया निष्कर्ष उचित था और वह साक्ष्य के अनुरूप था।
यह विचार करते हुए कि क्या आरोपी ने हत्या की थी, न्यायालय ने देखा कि PW-1 जो घायल प्रत्यक्षदर्शी था, ने FIR में चार आरोपियों का नाम स्पष्ट रूप से लिया और बाकी के नाम धारा 161 CrPC के तहत दिए गए बयान में जो उसी दिन लिया गया। इसके आधार पर न्यायालय ने माना कि आरोपियों की संलिप्तता संदेह से परे सिद्ध होती है।
धारा 149 IPC के संदर्भ में न्यायालय ने समझाया कि अगर कोई अपराध एक अवैध सभा के सदस्य द्वारा उस सभा के सामान्य उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाता है तो उस सभा का हर सदस्य उस अपराध के लिए दोषी होता है।
PW-1 के बयान के आधार पर न्यायालय ने यह निष्कर्ष निकाला कि सभी आरोपी अवैध सभा का हिस्सा थे, जिन्होंने घायल प्रत्यक्षदर्शी पर हमला किया और मृतक की हत्या की।
न्यायालय ने कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य आरोपी की दोषिता सिद्ध करने के लिए पर्याप्त थे। ट्रायल कोर्ट ने भारी साक्ष्यों के बावजूद आरोपियों को बरी कर दिया, जो कि गंभीर त्रुटि थी।
सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णयों जैसे C Antony बनाम राघवन नायर रमाकांत यादव बनाम प्रभुनाथ झा टोटा सिंह बनाम पंजाब राज्य का हवाला देते हुए अपील स्वीकार की गई और ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया गया।
अंततः सभी आरोपियों को धारा 302/149 IPC के तहत दोषी ठहराया गया और उन्हें आजीवन कारावास तथा 1000 जुर्माने की सजा सुनाई गई। साथ ही धारा 307/149 के तहत भी दोषी पाते हुए पांच वर्ष के कठोर कारावास और 200 के जुर्माने की सजा दी गई।