छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य के कॉलेजों के स्टूडेंट्स और पुराने स्टूडेंट्स को प्राथमिकता देने वाले पीजी एडमिशन नियम को खारिज किया
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने छत्तीसगढ़ मेडिकल पोस्ट ग्रेजुएट एडमिशन रूल्स, 2025 (2025 रूल्स) के रूल 11(a) और (b) को भारत के संविधान के खिलाफ बताते हुए खारिज कर दिया। यह रूल राज्य के संस्थानों के पुराने स्टूडेंट्स को संस्थान के आधार पर प्राथमिकता देता था, जो असल में आरक्षण के बराबर था।
2025 रूल्स के रूल 11(a) में यह प्रावधान था कि राज्य कोटे में उपलब्ध सीटों पर एडमिशन सबसे पहले उन कैंडिडेट्स को दिया जाएगा, जिन्होंने या तो छत्तीसगढ़ में मौजूद किसी मेडिकल कॉलेज से MBBS की डिग्री ली है या जो अभी काम कर रहे कैंडिडेट्स हैं। रूल 11(b) में यह भी प्रावधान था कि अगर सब-रूल (a) में बताए गए सभी योग्य कैंडिडेट्स को एडमिशन देने के बाद भी सीटें खाली रह जाती हैं तो ऐसी सीटों पर उन कैंडिडेट्स को एडमिशन दिया जाएगा, जिन्होंने छत्तीसगढ़ के बाहर मौजूद किसी मेडिकल कॉलेज से MBBS की डिग्री ली है, लेकिन वे छत्तीसगढ़ के मूल निवासी हैं।
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बिभू दत्ता गुरु की डिवीजन बेंच ने कहा,
“छत्तीसगढ़ मेडिकल पोस्ट ग्रेजुएट एडमिशन रूल्स, 2025 के रूल 11(a) और (b) को रद्द किया जाता है, क्योंकि वे भारत के संविधान के आर्टिकल 14 के खिलाफ हैं और उनका उल्लंघन करते हैं। राज्य छत्तीसगढ़ मेडिकल पोस्ट ग्रेजुएट एडमिशन रूल्स, 2025 के रूल 11(a) और (b) में बताई गई कैटेगरी के कैंडिडेट के बीच कोई भेदभाव नहीं करेगा।”
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता छत्तीसगढ़ की स्थायी निवासी है। उन्होंने 2023 में VMKV मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, सेलम से अपना MBBS कोर्स पूरा किया था। उसके बाद 2024 में ज़रूरी रोटेटिंग मेडिकल इंटर्नशिप भी की थी। इसके बाद उसने तमिलनाडु मेडिकल काउंसिल और छत्तीसगढ़ मेडिकल काउंसिल से अपना मेडिकल रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट हासिल किया। इसके बाद याचिकाकर्ता ने NEET (PG)-2025 एग्जाम दिया और क्वालिफाई किया।
अपनी रिट याचिका के ज़रिए उन्होंने रूल 11(a) और (b) को इस आधार पर चुनौती दी कि यह छत्तीसगढ़ में मौजूद मेडिकल कॉलेजों से पास हुए कैंडिडेट्स और छत्तीसगढ़ के बाहर के मेडिकल कॉलेजों से पास हुए कैंडिडेट्स के बीच भेदभाव करता है। यह कहा गया कि यह रूल यूनिवर्सिटी-बेस्ड रिज़र्वेशन पर आधारित है, जो एक गलत क्लासिफिकेशन बनाता है और इस तरह आर्टिकल 14 के मैंडेट के खिलाफ है।
इसके विपरीत, राज्य ने कहा कि किसी भी एक्ट के अधिकारों को तभी चुनौती दी जा सकती है, जब रूल बनाने वाले के पास लेजिस्लेटिव क्षमता न हो, जब इसे पेरेंट एक्ट द्वारा दी गई पावर से ज़्यादा बनाया गया हो, जब डेलीगेट किया गया लेजिस्लेशन पेरेंट एक्ट के खिलाफ हो, जब पूरा लेजिस्लेशन या उसका कोई हिस्सा संविधान या किसी दूसरे मौजूदा कानून के खिलाफ हो। साथ ही याचिकाकर्ता के पास उस रूल को चुनौती देने के लिए बताई गई कोई भी कंडीशन मौजूद न हो।
यह भी कहा गया कि जिस रूल पर सवाल उठाया गया, उसमें डोमिसाइल-बेस्ड प्रेफरेंस का कोई प्रोविज़न नहीं है। 2025 के रूल्स PG कोर्स में 50% स्टेट-कोटा सीटों के एडमिशन से पूरी तरह जुड़े हैं। राज्य ने यह साफ़ करने की कोशिश की कि जिन कैंडिडेट्स को रूल 11(a) के तहत इंस्टीट्यूशनल प्रिफरेंस दी गई, ज़रूरी नहीं कि वे छत्तीसगढ़ के रहने वाले हों, और इसलिए यह कहा गया कि कोई भेदभाव नहीं हुआ।
कोर्ट ने डॉ. तन्वी बहल बनाम श्रेय गोयल और अन्य (2025) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का ज़िक्र किया, जिसमें यह माना गया कि पोस्टग्रेजुएट (PG) मेडिकल कोर्स में रहने/घर के आधार पर रिज़र्वेशन गैर-संवैधानिक है और इसकी इजाज़त नहीं है। इस फैसले को देखते हुए डिवीज़न बेंच ने रूल 11(a) और (b) को इस आधार पर रद्द कर दिया कि यह MBBS डिग्री पाने वाले इंस्टीट्यूशन के आधार पर कैंडिडेट्स के बीच भेदभाव करता है।
Case Title: Dr. Samriddhi Dubey v. The State Of Chhattisgarh and Ors