छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बजट स्वीकृति के बावजूद मेडिकल इंस्टीट्यूट को आधुनिक डिवाइस की आपूर्ति में देरी पर निराशा व्यक्त की
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने मीडिया रिपोर्ट पर स्वतः संज्ञान लिया, जिसमें बताया गया कि छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान संस्थान (CIMS), बिलासपुर के डॉक्टरों को नए और आधुनिक मेडिकल डिवाइस की खरीद के लिए सरकार द्वारा 15 करोड़ रुपये के प्रस्ताव को मंजूरी दिए जाने के चार महीने बाद भी पुराने उपकरणों से ही ऑपरेशन करना पड़ रहा है।
इस संबंध में चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने कहा,
"उपरोक्त रिपोर्ट से यह पता चलता है कि पर्याप्त धनराशि उपलब्ध होने के बावजूद, CIMS को मशीनें/उपकरण उपलब्ध नहीं कराए जा रहे हैं, जिससे न केवल मरीजों को बल्कि डॉक्टरों को भी परेशानी हो रही है, जबकि इससे उनका कीमती समय और ऊर्जा बच सकती थी और अधिक संख्या में मरीजों का इलाज किया जा सकता था।"
मामले की पृष्ठभूमि
रिपोर्ट में खुलासा किया गया कि 15 करोड़ रुपये के प्रस्ताव को मंजूरी दिए चार महीने बीत चुके हैं। हालांकि, CIMS तक एक भी मशीन नहीं पहुंची है, जिससे डॉक्टरों के पास पुराने डिवाइस का उपयोग करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। इस बीच सिम्स ने 66 लाख रुपये में सोनोग्राफी और डायलिसिस सहित कुछ मशीनें खरीदीं। हालांकि, यह संख्या आवश्यकता की तुलना में बहुत कम बताई गई। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि सिम्स के डॉक्टरों का अनुमान है कि नई मशीनों की उपलब्धता से कम समय में अधिक रोगियों की जांच संभव होगी और उपचार की गुणवत्ता में भी सुधार होगा।
रिपोर्ट में मेडिकलक अधीक्षक का पक्ष भी प्रकाशित किया गया, जिन्होंने कहा कि उपकरणों/मशीनों की आपूर्ति शासन स्तर पर की जानी है। सिम्स में जल्द से जल्द उपकरण स्थापित करने के लिए उनकी ओर से प्रयास किए जाने चाहिए।
इस पृष्ठभूमि में खंडपीठ ने स्वास्थ्य विभाग के सचिव और छत्तीसगढ़ मेडिकल सेवा निगम लिमिटेड के प्रबंध निदेशक को अपने-अपने व्यक्तिगत हलफनामे दाखिल करने का निर्देश दिया।
मामले की अगली सुनवाई 18 सितंबर को होगी।