ऋण स्थगन पर रिजर्व बैंक की ओर से जारी परिपत्र के प्रवर्तन के लिए निजी बैंक के खिलाफ रिट याचिका सुनवाई योग्य: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने बुधवार को फैसला दिया कि लॉकडाउन के मद्देनजर भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से घोषित ऋण अधिस्थगन के मामले में संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत निजी बैंकों के खिलाफ एक रिट याचिका सुनवाई योग्य है।
उल्लेखनीय है कि लॉकडाउन-1 के तुरंत बाद, RBI ने 27 मार्च को एक परिपत्र जारी किया था, और सभी ऋणदायी संस्थानों - वाणिज्यिक बैंकों (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, छोटे वित्त बैंकों, स्थानीय क्षेत्र बैंकों सहित), सहकारी बैंकों, अखिल भारतीय वित्तीय संस्थानों और NBFC (आवास वित्त कंपनियों और माइक्रो फिनैंस इंस्टीट्यूशंस सहित) को एक मार्च से 31 मई के बीच सभी टर्म लोन की किस्तों के भुगतान पर तीन महीने की मोहलत देने की अनुमति दी थी।
जस्टिस सूरज गोविंदराज की पीठ ने कहा, "यहां जो देखा जाना है वह यह है कि क्या आरबीआई की ओर से जारी परिपत्र के कार्यान्वयन के लिए याचिकाकर्ता की ओर से की गई प्रार्थनाएं, प्रतिवादी बैंकों पर किन्हीं वैधानिक दायित्वों को लागू करने या सार्वजनिक प्रकृति के दायित्वों, एक सकारात्मक दायित्व डालने के बराबर है।"
एकल पीठ का विचार था कि उक्त सर्कुलर को "COVID 19 के कारण, देश की अर्थव्यवस्था की रक्षा और संरक्षण के लिए जारी किया गया था। सर्कुलर जारी करना जनहित में और देश की अर्थव्यवस्था के हित में था।"
तथ्य
याचिकाकर्ता के सूचना प्रौद्योगिकी पार्क (प्रौद्योगिकी पार्क या टेक पार्क) और 5 सितारा होटल के व्यवसाय हैं। दोनों का निर्माण याचिकाकर्ता की भूमि पर किया गया है। याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी संख्या 5 से 7 तक से अर्थात, एचडीएफसी बैंक लिमिटेड, फेडरल बैंक और आदित्य बिड़ला फाइनेंस लिमिटेड से 475 करोड़ रुपये तक का टर्म लोन ले रखा है।
लॉकडाउन और भारत सरकार और राज्य सरकार की ओर से घोषित किए गए अन्य उपायों के मद्देनजर, याचिकाकर्ता को होटल व्यवसाय बंद करना पड़ा, क्योंकि सोशल डिस्टेंसिंग के मानकों का पालन करते हुए उन्हें चला पाना संभव नहीं था।
हालांकि, लागू कानूनों का पालन करते हुए टेक पार्क के किरायेदारों ने टेक पार्क का कार्य जारी रखा। होटल व्यवसाय को बंद करने के कारण याचिकाकर्ता के राजस्व पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा और, याचिकाकर्ता ने ऋण स्थगन के लिए उत्तरदाताओं के समक्ष आवेदन किया।
बेंच ने रिकॉर्ड किया, "हालांकि, 6 अप्रैल 2020 को एक पत्र के जरिए उत्तरदाता नंबर 5-एचडीएफसी बैंक ने याचिकाकर्ता को बताया कि याचिकाकर्ता द्वारा टेक पार्क से किराया प्राप्त किया जा रहा है, इसलिए याचिकाकर्ता को मोहलत नहीं दी जा सकती है और इसलिए उक्त आवेदन को खारिज कर दिया गया।"
फैसले में आगे बताया गया है कि याचिकाकर्ता के ऋण स्थगन आवेदन को खारिज करने के बाद उत्तरदाता नंबर 5 ने याचिकाकर्ता के एस्क्रो अकाउंट से राशि निकाल ली, उक्त आकउंट में संबंधित किरायेदारों की ओर से लीज रेंट की राशि जमा की जाती थी। उत्तरदाता नंबर 6 ने भी ऐसा ही किया, उसने मार्च और अप्रैल, 2020 के लिए देय ईएमआई की राशि निकाल ली।
इसके बाद, उत्तरदाता नंबर 7 ने याचिकाकर्ता को सूचित किया कि उसका ऋण समरूप प्रभार के माध्यम से सुरक्षित किया गया है, हालांकि याचिकाकर्ता द्वारा तीनों उधारदाताओं से एक अनुरोध किया गया था, उत्तरदाता नंबर 5 और 6 ने टेक पार्क से प्राप्त किराए से देय राशि का एकतरफा विनियोजन किया, जबकि रिस्पोंडेंट नंबर 7 के साथ कैश फ्लो के किसी भी हिस्से को साझा नहीं किया गया।
उन्होंने सुझाव दिया कि वे अन्य उधारदाताओं के साथ याचिकाकर्ता के स्थगन के अनुरोध पर विचार कर सकते हैं, बशर्ते उत्तरदाता नंबर 5 एस्क्रो खाते में नकदी प्रवाह को आनुपातिक रूप से साझा करें।
याचिकाकर्ता की ओर से दायर शिकायत को जब बैंकिंग लोकपाल के समक्ष उठाया गया, तो प्रतिवादी नंबर 6 फेडरल बैंक ने कहा कि सिद्धांत रूप में उसे याचिकाकर्ता को ऋण अधिस्थगन देने में कोई आपत्ति नहीं है, हालांकि प्रतिवादी संख्या 5 को अधिस्थगन का विस्तार करना है। उपरोक्त के मद्देनजर, याचिकाकर्ता ने एक बार फिर स्थगन के अनुरोध पर विचार करने के लिए प्रतिवादी संख्या 5 से संपर्क किया, जिसने उसने माना नहीं।
एकल पीठ ने बताया, "इस पृष्ठभूमि में और प्रतिवादी संख्या 5, 6 और 7 के कृत्यों से दुखी होकर याचिकाकर्ता ने अदालत का दरवाजा खटखटाया है।"
पीठ ने स्वीकार किया कि आपदा प्रबंधन अधिनियम लागू होने के बाद, देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव को स्वीकार करते हुए, भारतीय रिजर्व बैंक ने उपर्युक्त दायित्व और कर्तव्य का निर्वहन करने के लिए 27 मार्च को एक परिपत्र जारी किया था। "उक्त परिपत्र का लक्ष्य, उद्देश्य, और इरादा, COVID-19 के कारण पैदा हुए व्यवधानों कर्ज के बोझ को कम करना और एक व्यवहार्य व्यवसाय की निरंतरता सुनिश्चित करना है, जो देश और जनता के हित में है।"
यह देखते हुए कि आरबीआई ने अपने सर्कुलर में सभी कर्जदारों को मोहलत देने की अनुमति दी है, ताकि व्यवहार्य उधारकर्ताओं/ व्यवसायों को चालू रखा जा सके, न्यायालय को यह स्पष्ट था कि परिपत्र जनता के हित में जारी किया गया है और इसके साथ संबंधित कोई भी पहलू एक सार्वजनिक कानूनी तत्व को आकर्षित करेगा।
बेंच ने कहा, "इसका प्रवर्तन, सार्वजनिक कर्तव्य को लागू करने के दायरे में आएगा।"
पीठ का विचार था कि वैधानिक दायित्वों या सार्वजनिक प्रकृति के दायित्वों के प्रवर्तन से संबंधित होने के कारण, यह उत्तरदाताओं पर इसे लागू करने के लिए एक सकारात्मक दायित्व डालता है- "आरबीआई परिपत्र के संदर्भ में, याचिकाकर्ता का, एक उधारकर्ता के रूप में अधिकार है कि वह बैंक से अधिस्थगन का लाभ उठाए, जिसे उत्तरदाता संख्या 5 ने खारिज कर दिया है और परिणामस्वरूप उत्तरदाता 6 और 7 ने भी खारिज किया है, जो कि याचिकाकर्ता के अनुसार उक्त परिपत्र का उल्लंघन है "
इसलिए, न्यायालय ने कहा कि कि मौजूदा तथ्यों और परिस्थितियों में उत्तरदाताओं के खिलाफ, 27 मार्च को आरबीआई की ओर से जारी सर्कुलर के तहत तय सार्वजनिक कर्तव्य के प्रवर्तन के लिए रिट याचिका सुनवाई योग्य है।
केस टाइटल: वेलंकानी इंफॉर्मेशन सिस्टम्स लिमिटेड बनाम भारत सरकार और अन्य।
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