मोटर दुर्घटना मुआवजे के दावों में घरेलू महिलाओं की सराहनीय सेवाओं पर विचार किया जाएगा: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2023-09-09 05:06 GMT

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि हालांकि घरों और परिवारों के प्रबंधन में महिलाओं द्वारा प्रदान की गई नि:शुल्क सेवाओं को पैसे के बराबर नहीं किया जा सकता है, मगर मोटर वाहन अधिनियम के तहत मुआवजे के दावे पर निर्णय लेते समय ऐसी सेवाओं पर उचित रूप से विचार किया जाना चाहिए।

जस्टिस वीरेंद्र सिंह ने कहा कि महिलाएं घर में विभिन्न गतिविधियां करती हैं। इसलिए मोटर वाहन दुर्घटना के कारण उनकी असामयिक मृत्यु उनके परिवारों को मुआवजे का अधिकार देती है।

पीठ ने कहा,

“महिलाएं घर में विविध काम कर रही हैं। महिलाओं द्वारा प्रदान की गई निःशुल्क सेवाओं की तुलना पैसे से नहीं की जा सकती।”

ये टिप्पणियां 16 जून, 2007 को विजयपुर में हुई मोटर वाहन दुर्घटना से संबंधित दायर अपील पर सुनवाई के दौरान की गई। गृहिणी तृप्ता देवी की दुर्घटना में जान चली गई और उनके पति ने उनकी असामयिक मृत्यु के लिए मुआवजे की मांग करते हुए मोटर वाहन अधिनियम की धारा 163-ए के तहत याचिका दायर की।

ट्रिब्यूनल ने आंशिक रूप से याचिका स्वीकार कर ली और 6% प्रति वर्ष ब्याज सहित 15,000/- रुपये का मुआवजा दिया।

उक्त फैसले से व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने इस आधार पर अपील दायर की कि ट्रिब्यूनल ने कानून की गलत व्याख्या की है और मुआवजा देते समय मृतक की आय पर विचार नहीं किया गया।

दूसरी ओर, प्रतिवादी का प्रतिनिधित्व एस.डी. गिल ने किया। गिल ने दावे का विरोध करते हुए कहा कि मृतक कोई आय अर्जित नहीं कर रही थी और याचिका में विशिष्टता का अभाव है। उन्होंने दावे की वैधता को लेकर भी आपत्ति जताई।

अपने घरों के भीतर महिलाओं द्वारा उठाई जाने वाली विविध और आवश्यक जिम्मेदारियों को पहचानने के महत्व पर जोर देते हुए पीठ ने लता वाधवा और अन्य बनाम बिहार राज्य और अन्य मामले का हवाला दिया। इस मामले में स्वीकार किया गया कि गृहिणियां घरों और परिवारों के प्रबंधन में सक्रिय रूप से लगी हुई हैं।

पीठ ने दोहराया,

“...महिलाएं घर में विविध काम कर रही हैं, जैसे वे पूरे परिवार का प्रबंधन कर रही हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक घर में काम करने वाली महिला भी मुआवजे की हकदार है।'

इस संदर्भ में हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता की पत्नी का अपने व्यक्तिगत खर्चों के लिए परिवार को 24,000 रुपये अनुमानित वार्षिक योगदान था। इसे देखते हुए न्यायालय ने मुआवजे की राशि की गणना के लिए मोटर वाहन अधिनियम की दूसरी अनुसूची के अनुसार 13 का गुणक लागू किया।

पीठ ने याचिका स्वीकार करते हुए निष्कर्ष निकाला,

“इस प्रकार, वर्तमान अपील की अनुमति दी जाती है और ट्रिब्यूनल द्वारा पारित अवार्ड, जैसा कि ऊपर बताया गया है, उपरोक्त शर्तों में संशोधित किया गया है। ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए मुआवजे की राशि को याचिका दायर करने की तारीख से लेकर पूरी राशि की वसूली तक, 6% प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ 15,000 रुपये से बढ़ाकर 3,21,500/- रुपये किया जाता है।”

केस टाइटल: दिलबाग सिंह बनाम विपन कुमार और अन्य

केस नंबर: एफएओ (एमवीए) नंबर 169/2013

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