तलाक लिए बिना नए रिश्ते में प्रवेश करने वाली महिला को उसके बच्चे की कस्टडी प्राप्त करने से वंचित नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2021-01-04 05:06 GMT

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में यह तय किया है कि यदि एक माँ, अपने पति से तलाक लिए बिना, कथित रूप से एक नए रिश्ते में प्रवेश करती है, तो इसके चलते समाज उस पर भले ही सवाल उठाए, लेकिन यह तथ्य, उसे अपने नाबालिग बच्चे की कस्टडी प्राप्त करने से वंचित नहीं करेगा।

न्यायमूर्ति जे. जे. मुनीर की पीठ ने कहा कि

"नाबालिग को उसकी मां की कंपनी से वंचित करने से, उसके समग्र विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है और यह नाबालिग के कल्याण को प्रभावित करेगा।"

न्यायालय के समक्ष मामला

राम कुमार गुप्ता (पिता) द्वारा अपने बेटे अनमोल शिवहरे के नाम पर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की गई थी, जिसमें यह शिकायत की गई कि वह संयोगिता (नाबालिग की मां और राम कुमार गुप्ता की पत्नी) की गैरकानूनी हिरासत में है।

गुप्ता (पिता) ने प्रार्थना की कि नाबालिग को अदालत के समक्ष पेश करने का आदेश दिया जाए और उसकी कस्टडी उसे सौंपी जाए और नाबालिग को उसकी माता (संयोगिता) की अवैध हिरासत से मुक्त कर दिया जाए।

राम कुमार गुप्ता (पिता) और संयोगिता (माँ) का विवाह 8 दिसंबर, 2009 को कानपुर नगर में हिंदू संस्कारों के अनुसार हुआ था, और अनमोल शिवहरे (नाबालिग) का जन्म 07 अगस्त 2015 को हुआ था।

कथित तौर पर 03 अक्टूबर 2019 को संयोगिता (नाबालिग की माँ) नाबालिग बेटे अनमोल को साथ लेकर कहीं चली गई।

गुप्ता ने 04.10.2019 को पुलिस स्टेशन सेक्टर 37, गुरुग्राम में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराई, जिसे धारा 346 I.P.C के तहत 2019 के केस क्राइम नंबर 295 के रूप में दर्ज किया गया था।

संयोगिता का बयान, पहले धारा 161 सीआरपी के तहत और उसके बाद धारा 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज किया गया, जिसमें उसने कहा कि उसने एक बलराम चौधरी से शादी की है और उसने 22 मई 2018 को अपने विवाह प्रमाणपत्र को भी पेश किया।

गुप्ता ने हालांकि यह आरोप लगाया कि संयोगिता का बलराम से विवाह करना कानून के अंतर्गत मान्य नहीं है क्योंकि यह उसके पति के जीवनकाल में दूसरी शादी है और इस वजह से, उसने अनमोल की कस्टडी का अपना अधिकार खो दिया है।

एक अजनबी के घर में संयोगिता के साथ नाबालिग की कस्टडी को गुप्ता ने गैरकानूनी करार दिया, दूसरी ओर, न्यायालय के समक्ष, संयोगिता ने आरोप लगाया कि गुप्ता एक निर्दयी पिता है।

उसने यह भी आरोप लगाया कि गुप्ता द्वारा उसके साथ क्रूरतापूर्वक व्यवहार किया गया था।

न्यायालय का अवलोकन

यह देखते हुए कि बच्चे का कल्याण सर्वोपरि है, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला,

"अपने माता-पिता के प्रति नाबालिग के समग्र व्यवहार को देखते हुए, इस न्यायालय को लगता है कि इस उम्र में, अपनी माँ की कंपनी से नाबालिग को वंचित करने से, उसके समग्र विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।"

कोर्ट ने आगे कहा कि नाबालिग, हालांकि पांच साल से अधिक उम्र का है, लेकिन वह अभी भी एक बच्चा है और भले ही वह एक शिशु नहीं है, लेकिन उसे अभी भी देखभाल की आवश्यकता है जो अकेले माँ प्रदान कर सकती है।

महत्वपूर्ण रूप से, कोर्ट ने कहा,

"तथ्य यह है कि माँ बिना तलाक के अपने पति के घर से चली गई और बलराम चौधरी के साथ एक नए रिश्ते में प्रवेश कर गई, लेकिन यह तथ्य, अपने आप में, कुछ ऐसा नहीं है, जो माँ के जीवन में नाबालिग की विशेष जगह से उसे वंचित कर दे।"

संयोगिता (मां) ने जिस तरह से बलराम के घर में अपनी परिस्थितियों को विस्तार से बताया, उसे ध्यान में रखते हुए, अदालत ने पाया कि नाबालिग को "उसकी माँ के नए परिवार में अच्छी तरह से अनुकूलित किया गया था।"

न्यायालय की राय में, बलराम, संयोगिता और दो बच्चे, जो उसके सौतेले भाई हैं, "उचित रूप से अच्छे बॉन्ड वाले परिवार हैं, जिनपर नाबालिग के कल्याण को सुरक्षित करने के लिए भरोसा किया जा सकता है।"

दूसरी ओर, न्यायालय ने उल्लेख किया कि गुप्ता अपनी आजीविका कमाने में लगे हुए हैं और नाबालिग की देखभाल करने में सक्षम नहीं है।"

न्यायालय ने टिप्पणी की,

"जहां तक नाबालिग की हिरासत और देखभाल का संबंध है, इस न्यायालय का मत है कि ये पिता के मुकाबले माँ के हाथों में बेहतर होगा।"

अंत में, न्यायालय ने मानवीय व्यवहार के सूक्ष्म पहलुओं को ध्यान में रखते हुए पिता के मुलाक़ात के अधिकार भी सुनिश्चित किए।

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