"एनआईसीयू में इंजेक्शन प्रक्रिया के समय बिना इरादे या ज्ञान के डॉक्टर की अनुपस्थिति 'सदोष मानव वध' का मामला नहीं है": बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने उस जूनियर डॉक्टर के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द किया, जिस पर कथित तौर पर लापरवाही बरतने के चलते हत्या की कोटि में न आने वाले सदोष मानव वध (Culpable Homicide) का आरोप था, क्योंकि इस डॉक्टर की लापरवाही के कारण एक अस्पताल में चार शिशुओं की मौत हो गई थी।
शिशुओं के लिए निर्धारित इंजेक्शन "कैल्शियम ग्लूकोनेट" के बजाय लापरवाही के चलते "पोटेशियम क्लोराइड" दिया गया था।
न्यायमूर्ति अविनाश जी. गरोठ और सुनील बी. शुक्रे की खंडपीठ ने पाया कि तथ्यों के आधार पर जूनियर डॉक्टर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 304 के तहत दंडनीय सदोष मानव वध का चार्ज नहीं लगाया गया है। बेंच ने आईपीसी की धारा 299 के तहत परिभाषित सदोष मानव वध (Culpable Homicide) पर कहा कि सदोष मानव वध का मामला बनाने के लिए इरादा या ज्ञान का उपस्थित होना अनिवार्य है।
पीठ ने कहा कि,
"आईपीसी की धारा 299 के तहत मामला तभी बनेगा जब यह दिखाने के पर्याप्त सबूत हों कि यह कृत्य किसी व्यक्ति द्वारा इरादे या ज्ञान के साथ किया गया है। यदि ऐसा कुछ भी नहीं पाया जाता है तो सदोष मानव वध के तहत अपराध नहीं माना जाएगा। अगर सदोष मानव वध का कोई अपराध नहीं है तो आगे सवाल यह है कि क्या यह आईपीसी की धारा 300 के तहत परिभाषित हत्या का मामला है या आईपीसी की धारा 304 में परिकल्पना के अनुसार हत्या का मामला नहीं है।"
याचिकाकर्ता (डॉक्टर) ने उच्च न्यायालय से गुहार लगाई कि उन्हें महाराष्ट्र के अमरावती में पुलिस द्वारा दायर चार्जशीट में शिशुओं की मौत का कारण माना गया है।
शिशुओं को अमरावती के डॉ. पंजाबराव देशमुख मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग के नवजात इंटेसिव केयर यूनिट (एनआईसीयू) में भर्ती कराया गया था। एनआईसीयू के नर्स द्वारा दवाई शिशुओं के लिए निर्धारित इंजेक्शन "कैल्शियम ग्लूकोनेट" के बजाय लापरवाही बरतने के चलते "पोटेशियम क्लोराइड" दिया गया जिससे शिशुओं की मौत हो गई। यह पाया गया कि याचिकाकर्ता (जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर) उस दिन अनुपस्थित था। महत्वपूर्ण समय पर उनकी अनुपस्थिति का हवाला देते हुए, उन्हें इस आधार पर अभियुक्त बनाया गया था कि उन्होंने शिशुओं की उचित देखभाल नहीं की और इसलिए उन्हें मौतों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया।
कोर्ट में याचिकाकर्ता के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल मर्डीकर ने तर्क दिया कि
"कथित तौर पर लापरवाही बरतने के चलते हत्या की कोटि में न आने वाले सदोष मानव वध के आरोप में हत्या के इरादे को उचित नहीं ठहराया जा सकता है। उन्होंने दावा किया कि याचिकाकर्ता ने स्वीकार किया है कि याचिकाकर्ता सही समय पर उपस्थित नहीं था और इसके साथ ही डॉक्टर ने जो इंजेक्शन शिशुओं को दिया जाना था उसे भी निर्धारित नहीं किया था। ड्यूटी पर मौजूद नर्स ने अपनी गलती स्वीकार कर ली है।"
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि याचिकाकर्ता का हत्या करने का इरादा नहीं था इसलिए यह मामला नहीं बनता है जैसा कि आईपीसी की धारा 304 के तहत अपराध दंडनीय होने के लिए इस कृत्य में इरादा और ज्ञान का होना आवश्यक है।
वरिष्ठ अधिवक्ता ने आगे कहा कि डॉक्टर की अनुपस्थिति के लिए एक विभागीय जांच शुरू की जा सकती है।
एपीपी एस.एम. घोडेस्वर ने प्रस्तुत किया कि एनआईसीयू में अधिकारी-ऑन-ड्यूटी के रूप में याचिकाकर्ता का उपस्थित रहना उनका कर्तव्य था, यह सुनिश्चित करने के लिए कि शिशुओं को उचित दवाई दी जाए। याचिकाकर्ता के कृत्य को आपराधिक लापरवाही मानते हुए प्रार्थना की कि कोर्ट याचिका को खारिज कर दें।
न्यायालय ने सबूत पेश होने के बाद निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता की दवा निर्धारित करने में और इंजेक्शन देने में कोई भूमिका नहीं है।
कोर्ट ने सदोष मानव वध के आरोप पर कहा कि,
" याचिकाकर्ता इंजेक्शन देने के समय एनआईसीयू में उपस्थित नहीं था और इसलिए याचिकाकर्ता का कृत्य किसी भी इरादे या ज्ञान के साथ करने का कोई सवाल ही नहीं उठता है। इसलिए याचिकाकर्ता पर आईपीसी की धारा 299 के तहत इरादे या ज्ञान के कृत्य के आधार पर कोई भी सवाल नहीं उठाया जाएगा।"
आगे कहा कि कि कोर्ट के समक्ष ऐसा कोई भी सबूत नहीं पेश किया गया है जिससे यह साबित हो सके कि याचिकाकर्ता संबंधिक समय पर जानबूझकर एनआईसीयू में नहीं आया था।
कोर्ट ने विशेष रूप से इस तथ्य पर ध्यान दिया कि अस्पताल ने ऐसा कोई भी अपनी मानक संचालन प्रक्रिया को रिकॉर्ड पर नहीं रखा, जो एनआईसीयू में नवजात शिशुओं को इंजेक्शन लगाने के लिए निर्धारित की गई हो।
कोर्ट ने यह देखा कि अस्पताल का ऐसा कोई एसओपी नहीं है, निष्कर्ष निकाला कि डॉक्टर पर शिशुओं की देखभाल करने की कोई जिम्मेदारी नहीं थी, इसलिए इंजेक्शन लगाते समय व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना जरूरी नहीं था।
बेंच ने कहा कि,
"यह एक ऐसा मामला है, जिसमें याचिकाकर्ता की अनुपस्थिति के अलावा कोई भी आरोप लगाने लायक कार्य नहीं किया है। इसके साथ ही याचिकाकर्ता की ओर से आपराधिक चूक का तत्व भी गायब है और याचिकाकर्ता ऐसे किसी भी कर्तव्य के लिए उत्तरदायी नहीं है कि व्यक्तिगत रूप से एक प्रशिक्षित नर्स द्वारा इंजेक्शन के देते समय उनकी निगरानी रखे। इसलिए ड्यूटी की अनुपस्थिति को याचिकाकर्ता द्वारा कर्तव्य का उल्लंघन नहीं माना जा सकता है।"
कोर्ट ने जैकब मैथ्यू बनाम पंजाब राज्य मामले के निर्णय पर भरोसा जताया। इसी आधार पर कोर्ट ने फैसला सुनाया कि (i) देखभाल करने का कर्तव्य, (ii) कर्तव्य का उल्लंघन और (iii) मामले में परिणामी नुकसान नहीं दिखाया गया।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द किया और कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही जारी रखने की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
पीठ ने स्पष्ट किया कि कोर्ट के निर्देश केवल आपराधिक कार्यवाही के संदर्भ में है।
कोर्ट ने कहा कि,
"चार्जशीट में दर्ज हर बात को सच नहीं माना जा सकता है। उस पर सही से ड्यूटी नहीं करने का आरोप कभी भी लगाया जा सकता है, जिसके लिए अधिकारियों द्वारा विभागीय कार्रवाई हमेशा की जा सकती है।"