वैवाहिक विवादों में याचिका ट्रांसफर करते समय पत्नी की सहूलियत देखनी होगी: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2022-10-27 11:10 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि वैवाहिक विवादों में याचिका को दूसरी अदालत में ट्रांसफर करते समय पत्नी की सुविधा को अधिक देखा जाना चाहिए।

जस्टिस दिनेश कुमार शर्मा ने कहा कि ट्रांसफर क्षेत्राधिकार का प्रयोग इस तरह से किया जाना चाहिए कि किसी भी पक्षकार को कोई असुविधा न हो।

अदालत 68 वर्षीय पत्नी द्वारा दायर याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें फैमिली कोर्ट के द्वारका न्यायालयों (दक्षिण पश्चिम जिला) के प्रधान न्यायाधीश के समक्ष लंबित वैवाहिक मामले को कड़कड़डूमा न्यायालय (पूर्वी जिला) के परिवार न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश को ट्रांसफर करने की मांग की गई।

स्थानांतरण याचिका इस आधार पर दायर की गई कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 और आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की मांग वाली दो याचिकाएं पहले से ही कड़कड़डूमा कोर्ट में लंबित हैं। इसलिए यह प्रार्थना की गई कि द्वारका कोर्ट के समक्ष लंबित वाद को भी दूसरी अदालत में ट्रांसफर किया जाए।

हालांकि, 72 वर्षीय पति ने इस दलील का विरोध किया कि पत्नी सभी लाभों का आनंद ले रही है और ट्रांसफर याचिका केवल उसे परेशान करने के लिए दायर की गई। उसने यह भी तर्क दिया कि अदालत के समक्ष हलफनामे में भी पत्नी द्वारा गलत पता दिया गया।

अदालत का विचार था कि मामले को ट्रांसफर करने के लिए पत्नी के अनुरोध को केवल तभी अस्वीकार किया जा सकता है जब इसके पीछे वजनदार कारण हों, यह कहते हुए कि उसे उक्त अनुरोध को अस्वीकार करने का कोई कारण नहीं मिला।

पत्नी की याचिका को स्वीकार करते हुए अदालत ने आदेश दिया,

"ट्रांसफर कोर्ट को पूरा रिकॉर्ड भेजने का निर्देश दिया जाता है। पक्षकारों को 27 अक्टूबर, 2022 को कड़कड़डूमा कोर्ट के पूर्वी जिले के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश के समक्ष पेश होने का निर्देश दिया जाता है।"

केस टाइटल: सरिता जोशी बनाम रवींद्र भूषण जोशी

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