आरोपी को अनिश्चित काल तक जेल में नहीं रखा जा सकता; जघन्य मामलों में ट्रायल कोर्ट में गवाहों को पेश नहीं किया जा रहा: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी DGP से हलफनामा मांगा
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में अभियोजन पक्ष द्वारा ट्रायल कोर्ट के समक्ष गवाहों को पेश न करने पर चिंता व्यक्त की यहां तक कि जघन्य अपराध के मामलों में भी, जिसके कारण बिना सुनवाई के अनिश्चित काल तक हिरासत में रखा जाता है।
कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि यदि अभियोजन पक्ष ट्रायल कोर्ट के समक्ष अभियोजन पक्ष के गवाहों को पेश करने के लिए ईमानदारी से प्रयास नहीं कर रहा है तो किसी व्यक्ति को अनिश्चित काल तक हिरासत में नहीं रखा जा सकता।
जस्टिस संजय कुमार सिंह की पीठ ने यह भी कहा कि न्यायालय में अक्सर ऐसे कई मामले आते हैं, जहां अभियोजन पक्ष समय पर अभियोजन पक्ष के गवाहों को पेश नहीं करता, यहां तक कि जघन्य मामलों में भी।
न्यायालय ने आगे कहा कि ऐसे कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने उन अभियुक्तों को जमानत दी, जो लंबे समय से जेल में बंद थे और अभियोजन पक्ष अपराध की गंभीरता के बावजूद उनके मुकदमे को समाप्त करने के लिए ईमानदारी से प्रयास नहीं कर रहा था, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
इसके मद्देनजर न्यायालय ने यूपी के पुलिस महानिदेशक से व्यक्तिगत हलफनामा भी मांगा, जिसमें यह स्पष्ट किया गया हो कि अभियोजन पक्ष जघन्य मामलों में भी अभियोजन पक्ष के गवाहों को ट्रायल कोर्ट के समक्ष क्यों नहीं पेश कर रहा है।
न्यायालय ने यह भी जानना चाहा कि उत्तर प्रदेश राज्य में पुलिस विभाग के प्रमुख के रूप में उन्होंने अभियोजन पक्ष के गवाहों को ट्रायल कोर्ट के समक्ष निर्धारित तिथियों पर पेश करने के लिए क्या कदम उठाए हैं।
अदालत ने आगे निर्देश दिया कि यदि उन्होंने किसी मामले में संबंधित अधिकारी/व्यक्ति की जिम्मेदारी तय की तो उसका विवरण भी हलफनामे के माध्यम से रिकॉर्ड पर लाया जाना चाहिए।
अदालत मुख्य रूप से आरोपी की चौथी जमानत याचिका पर विचार कर रही थी, जो फरवरी 2017 से जेल में है। उसने मुख्य रूप से लंबी हिरासत के आधार पर तत्काल जमानत याचिका दायर की थी।
न्यायालय के समक्ष उनके वकील ने तर्क दिया कि 13 फरवरी, 2017 से जेल में रहने के बावजूद उनका मुकदमा समाप्त नहीं हुआ।
यह भी बताया गया कि पिछले साढ़े सात वर्षों से अधिक समय में अभियोजन पक्ष ने ट्रायल कोर्ट के समक्ष केवल तीन अभियोजन गवाहों को पेश किया, जो इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है।
मामले के तथ्यों के तहत अंतिम आदेश पारित करने से पहले न्यायालय ने संबंधित पीठासीन अधिकारी से आवेदक के मुकदमे की वर्तमान स्थिति पर रिपोर्ट मांगना उचित समझा।
न्यायालय ने कहा कि रिपोर्ट में मामले की कार्यवाही का भी विस्तार से उल्लेख किया जाना चाहिए, जिसमें यह उल्लेख किया जाना चाहिए कि मुकदमा अभी तक समाप्त क्यों नहीं हुआ है। आरोपी आवेदक के मुकदमे में देरी के लिए कौन जिम्मेदार है।
इसे देखते हुए न्यायालय ने अब मामले की सुनवाई 17 अक्टूबर के लिए स्थगित की। इस बीच डीजीपी को पूर्वोक्त रूप से अपना हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा गया।
केस टाइटल - मनोज बनाम उत्तर प्रदेश राज्य।