पत्नी का दिल की बीमारी का खुलासा किए बिना शादी के लिए पति की सहमति प्राप्त करना धोखाधड़ी से कम नहीं है: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने एक वैवाहिक विवाद में, जिसमें पत्नी ने अपनी हृदय संबंधी बीमारियों का खुलासा किए बिना, शादी के लिए पति की सहमति प्राप्त की थी, कहा कि यह भौतिक तथ्यों को छुपाने का मामला था और निस्संदेह बेईमानी थी और धोखा से कम नहीं था।
जस्टिस एएम शफीक़ और जस्टिस मैरी जोसेफ की खंडपीठ, फैमिली कोर्ट, इरिंजालाकुडा, के खिलाफ पत्नी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। परिवार न्यायालय ने अपने आदेश में विवाह को निरस्त घोषित कर दिया था और पत्नी को, पति की याचिका की तारीख से 12% की दर से ब्याज के साथ 10 हजार रुपए के सामान्य नुकसान का भुगतान करने का निर्देश दिया था। ( दोनों का विवाह 28.03.2008 को हुआ था।)
केस की पृष्ठभूमि
ओपी नंबर 1128 ऑफ 2012, पति द्वारा फैमिली कोर्ट, इरिंजालाकुडा में दायर किया गया था, जिसमें उसने स्वयं और प्रतिवादी (पत्नी) के बीच विवाह को निरस्त घोषित करने की मांग की। पति ने कहा था कि उसका विवाह पत्नी की स्वास्थ्य स्थिति की सही जानकारी दिए बिना हुआ था। पत्नी ने तथ्यों को छुपाकर विवाह के लिए सहमति प्राप्त की थी।
इसके साथ ही, पति ने 2012 की मूल याचिका संख्या 1126 भी दायर की थी, जिसमें उत्तरदाताओं और उनके आदमियों को याचिका अनुसूची संपत्ति में अतिक्रमण और नुकसान के लिए सामान्य क्षति से रोकने के लिए स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की थी।
पति का पक्ष
यह आरोप लगाया गया कि वैवाहिक जीवन के शुरुआती दिनों से ही पत्नी ने पति के साथ असाधारण व्यवहार किया। वह हमेशा दवा पर रहती थी और जिसका परिणाम उसके व्यवहार में परिलक्षित होता था। शक्तिशाली दवाओं की भारी खुराक के सेवन के कारण वह संभोग करने में असमर्थ थी।
पति-पत्नी को कार्मल अस्पताल, अलुवा के एक स्त्री रोग विशेषज्ञ के पास ले गया और परामर्श के दौरान उसने डॉक्टर को बताया कि वह दिल की किसी बीमारी से पीड़ित है।
डॉक्टर ने तब उसे बीमारी की बेहतर समझा के लिए कार्डियोलॉजिस्ट के पास भेजा। पति को वर्ष 2005 में स्त्री रोग विशेषज्ञ से परामर्श के समय ही पत्नी की बीमारी के बारे में पता चला।
पति को यह बताया गया कि पत्नी एक्यूट रूमेटिक हर्ट डिसिज से पीड़ित है।
उसे यह भी पता चला कि कि उसकी पत्नी संभोग करने और गर्भ धारण करने में अक्षम है। उसके द्वारा लिए ली जा रही दवाओं के बारण गर्भ में भ्रूण के विकृत होने की आशंका है।
चूंकि पति को 2005 तक अपनी पत्नी की स्वास्थ्य स्थिति के बारे में पता नहीं था, इसलिए उन्होंने इस धारणा को बनाए रखा कि वह एक सामान्य महिला है जो एक सामान्य विवाहित जीवन जीने में सक्षम है।
पति के अनुसार, यदि शादी से पहले उसे बीमारी का पता चला होता, तो उसने शादी के लिए सहमति नहीं दी होती।
इसलिए, यह आरोप लगाते हुए कि शादी के लिए उनकी सहमति धोखाधड़ी द्वारा प्राप्त की गई थी और महिला द्वारा बीमारियों से हुई अक्षमता के कारण शारीरिक संबंध स्थापित नहीं किया गया था, ओपी नंबर 1128/2012 विवाह को निरस्त घोषित करने के लिए दायर किया गया था।
पत्नी का पक्ष
अपनी आपत्ति में पत्नी ने विशेष रूप से दिए गए कथनों को छोड़कर, बाकी से इनकार कर दिया था। यह तर्क दिया गया कि बीमारी के बारे में विधिवत जानकारी देने के बाद शादी की व्यवस्था की गई थी।
शारीरिक संबंध स्थापित किया गया और उसकी बीमारी इसमें कभी बाधा नहीं बनी। पति ने गंभीर रूप से कहा था कि उसने अपनी वृद्ध मां की जरूरतों को पूरा करने और उसकी देखभाल करने के लिए ही उससे शादी की थी।
पत्नी ने अनुसार, इस विषय पर विशेषज्ञ चिकित्सकों ने यह नहीं कहा था कि महिला गर्भ धारण करने के लिए अक्षम है, उन्होंने केवल गर्भाधान में शामिल जोखिमों के बारे में बताया और इसलिए, फैमिली कोर्ट को यह पता नहीं लगना चाहिए कि शारीरिक संबंध स्थापित कर विवाह पूर्ण हुआ है या नहीं।
कोर्ट का विश्लेषण
अदालत ने इस तथ्य को ध्यान में रखा कि पति ने आरोप लगाया था कि शादी करते समय उसकी पत्नी और उसके रिश्तेदारों द्वारा उसके साथ धोखाधड़ी की गई थी। उसने कहा कि यह कारण था कि शादी को निरस्त कराने का आदेश प्राप्त किया गया।
अदालत में, यह स्थापित किया गया था कि वह शादी से पहले एक हृदय रोगी थी और 2005 से पीडब्लू 4 के तहत उसका इलाज चल रहा था।
PW1 का साक्ष्य था कि उन्हें सबसे पहले वर्ष 2005 में ही अपनी पत्नी के दिल की बीमारियों के बारे में बताया गया। पत्नी ने क्रॉस एग्जामिनेशन के दौरान भी इस पर आपत्ति नहीं की। उसने अदालत को यह समझाने का प्रयास भी नहीं किया कि विवाह से पहले पति को उसकी बीमारियों के बारे में बताया गया था।
उपरोक्त परिदृश्य में, अदालत को यह विचार करने के लिए विवश किया होना पड़ा कि पत्नी ने हृदय संबंधी बीमारियों का खुलासा किए बिना, विवाह के लिए पति की सहमति प्राप्त की थी ।
कोर्ट ने कहा, "भौतिक तथ्य को छुपाना, जैसा कि मौजूदा मामले में है, निस्संदेह बेईमानी है और धोखाधड़ी से कम नहीं है।"
इसलिए, अदालत ने कहा, उपलब्ध साक्ष्य इस बात पर विचार करने के लिए पर्याप्त है कि शादी के लिए पति की सहमति धोखाधड़ी से प्राप्त की गई थी।
कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के शादी के निरस्त करने के फैसले में गलती होने का कोई कारण नहीं देखा।
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