पत्नी द्वारा पति के खिलाफ आपराधिक आचरण के गंभीर अप्रमाणित आरोप लगाना 'क्रूरता' हैः दिल्ली हाईकोर्ट ने तलाक की डिक्री बरकरार रखी

Update: 2021-11-12 12:55 GMT

Delhi High Court

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है किपत्नी द्वारा अपने पति और उसके माता-पिता के खिलाफ आपराधिक आचरण के ऐसे गंभीर आरोप लगाना, जिसे वह ट्रायल कोर्ट में साबित करने में असमर्थ रही, ''क्रूरता'' का कृत्य है।

जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस जसमीत सिंह की डिवीजन बेंच ने फैमिली कोर्ट द्वारा पति के पक्ष में दी गई तलाक की डिक्री बरकरार रखते हुए पत्नी की तरफ से फैमिली कोर्ट एक्ट की धारा 19 के तहत दायर अपील को खारिज कर दिया।

फैमिली कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला था कि पति को मानसिक क्रूरता झेलनी पड़ी है क्योंकि उसकी पत्नी की शिकायत पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत दर्ज एक मामले में अदालत ने उसे और उसके माता-पिता को बरी कर दिया है। उक्त बरी करने के आदेश के खिलाफ दायर एक अपील को भी खारिज कर दिया गया था।

हालांकि अपीलकर्ता-पत्नी का मामला यह है कि जब उसके पति और ससुराल वालों ने जमानत के लिए आवेदन किया था, तो उसने उसका विरोध नहीं किया था और उसने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए एक याचिका भी दायर की थी।

हाईकोर्ट ने कहा कि,

''हमारे विचार में केवल इसलिए कि अपीलकर्ता ने प्रतिवादी और उसके माता-पिता द्वारा दायर की गई जमानत याचिका का विरोध नहीं है, अपीलकर्ता के गैर-जिम्मेदाराना आचरण को भूल जाने के लिए पर्याप्त नहीं है। सच यह है कि उसने प्रतिवादी और उसके माता-पिता के खिलाफ आपराधिक आचरण के गंभीर आरोप लगाए हैं - जिन्हें वह अदालत के समक्ष साबित नहीं कर पाई। यह तथ्य प्रतिवादी के खिलाफ क्रूरता के कृत्यों का गठन करने के लिए पर्याप्त हैं।''

यह भी कहा कि,

''इन परिस्थितियों में प्रतिवादी से यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि वह अपीलकर्ता को अपने जीवन में आने की अनुमति देगा? भरोसा और विश्वास - जो वैवाहिक बंधन की नींव है, अपीलकर्ता के पूर्वाेक्त आचरण से पूरी तरह से ध्वस्त हो गए हैं। एक आदमी के लिए अपने माता-पिता को हिरासत में जाते हुए देखना,उसे बहुत ज्यादा पीड़ा व कष्ट पहुंचाता है,भले ही उनको एक दिन ही कैद में क्यों न रखा गया हो। इतना ही नहीं, अपीलकर्ता ने अपील में भी प्रतिवादी और उसके माता-पिता के खिलाफ लगाए अपने आरोपों को सही ठहराने की कोशिश की। क्या वह नहीं जानती थी कि उनके दोष सिद्ध होने पर उन्हें कारावास की सजा दी जाएगी? इसलिए जमानत अर्जी का विरोध न करने के उसके आचरण का कोई महत्व नहीं है।''

अपील में कोई योग्यता न पाते हुए, न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया।

हालांकि अपीलकर्ता पत्नी की तरफ से दलील दी गई कि वह स्थायी गुजारा भत्ता पाने की हकदार है और पति उनके नाबालिग बच्चे का खर्च उठाने के लिए भी बाध्य है,जो इस समय अपीलकर्ता की कस्टडी में है। इसलिए अदालत ने पत्नी को स्थायी गुजारा भत्ता देने और बच्चे को भरण-पोषण प्रदान करने के पहलू पर पति को नोटिस जारी किया है।

केस का शीर्षकः नीलम बनाम जय सिंह

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