पेट्रोल और डीजल जीएसटी से बाहर क्यों? केरल हाईकोर्ट ने जीएसटी काउंसिल से मांगा जवाब

Update: 2021-11-09 04:14 GMT

केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को जीएसटी काउंसिल को यह बताने का निर्देश दिया कि पेट्रोल और डीजल को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के दायरे में क्यों नहीं शामिल किया गया।

मुख्य न्यायाधीश एस मणिकुमार और न्यायमूर्ति शाजी पी शैली की खंडपीठ ने जीएसटी काउंसिल को इस संबंध में दस दिनों के भीतर एक बयान दाखिल करने को कहा।

कोर्ट केरल प्रदेश गांधी दर्शनवेधि द्वारा जीएसटी काउंसिल के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था।

याचिकाकर्ता का अधिवक्ता अरुण वर्गीस द्वारा प्रतिनिधित्व किया गया। उन्होंने कहा कि राज्य सरकारों द्वारा उनकी फ्रेगमेंट टेस्टिंग पॉलिसी के तहत लगाए गए टेक्स की अलग-अलग दरों के कारण वर्तमान में देश भर में पेट्रोल और डीजल पर अलग-अलग शुल्क लिया जाता है।

याचिकाकर्ता के अनुसार, यह एक सुसंगत राष्ट्रीय बाजार को प्राप्त करने के रास्ते में एक बाधा है जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 279 के तहत विचार किया गया है।

याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि पेट्रोल और डीजल की कीमतों में वृद्धि के कारण वाहनों के किराये में वृद्धि हुई है। इससे आम आदमी को काफी परेशानी हो रही है।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि इस स्थिति से आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में और वृद्धि होगी, जिससे जीवन यापन की लागत में उच्च वृद्धि होगी।

याचिका में कहा गया,

'पेट्रोल और डीजल की कीमतों में अभूतपूर्व बढ़ोतरी ने जनता को भारी कठिनाई में डाल दिया है। इससे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके जीवन के अधिकार का उल्लंघन होता है।

कोर्ट ने याचिका पर विचार किया और जीएसटी काउंसिल द्वारा उस पर कार्रवाई नहीं करने के कारण मांगे।

याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अरुण बी वर्गीज पेश हुए, जबकि मामले में प्रतिवादियों की ओर से केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड के सरकारी वकील पीआर श्रीजीत और एएसजीआई पी. विजयकुमार पेश हुए।

केस शीर्षक: केरल प्रदेश गांधी दर्शनवेधि बनाम भारत संघ।

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