"एक युवा लड़की का पूरा जीवन बर्बाद हो गया": ठाणे कोर्ट ने समलैंगिकता छुपाने के आरोपी पति को अग्रिम जमानत देने से इनकार किया
ठाणे के एक सत्र न्यायालय ने अग्रिम जमानत की एक याचिका को खारिज़ कर दिया है। मामले में आरोप था कि पति ने कथित तौर पर अपनी नौकरी की स्थिति और अपनी कामुकता को पत्नी ने छुपाया था, जिसके बाद उस पर धोखाधड़ी और जालसाजी का मामला दर्ज किया गया था।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश राजेश गुप्ता ने 5 अप्रैल को अपने आदेश में कहा कि प्रथम दृष्टया यह प्रतीत होता है कि शादी से पहले पति का अपने जीवन के भौतिक तथ्यों को छिपाने और "इस प्रकार एक युवा लड़की के भविष्य को खराब करने का कपटपूर्ण इरादा था।"
जज ने कहा, "उल्लेखनीय है कि यह न केवल आर्थिक नुकसान है, बल्कि एक युवा लड़की का पूरा जीवन भौतिक दबाव के कारण खराब हो गया है। अगर शादी से पहले खुलकर (तथ्यों को) साझा किया गया होता तो परिणाम अलग होता।"
शिकायतकर्ता पत्नी और आरोपी पति ने कुछ मुलाकातों के बाद पिछले साल नवंबर में शादी की थी। हालांकि वे तीन महीने बाद ही अलग रहने लगे। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि पति ने एक या दूसरे बहाने से संबंध बनाने से इनकार करता रहा।
पत्नी ने यह भी आरोप लगाया कि जब वे एक साथ रह रहे थे तब उसने अपने पति के मोबाइल की व्हाट्सएप चैट में पाया था कि उसका पति अपने मित्रों के साथ यौन जीवन के बारे में चर्चा करता था।
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया, "मोबाइल फोन में कुछ तस्वीरें और वीडियो मौजूद थे, जिनमें आवेदक/आरोपी अपने पुरुष मित्रों के साथ टेलीफोनिक सेक्स करता पाया गया। बाद में पता चला कि आवेदक/आरोपी समलैंगिक थे..", शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया।
इसके अलावा आरोप लगाया गया कि शादी से पहले आरोपी पति ने महिला को एक फर्जी नौकरी का ऑफर लेटर दिखाया था, जिसमें उसका वार्षिक वेतन 14 लाख रुपये था। इसके बाद उसने इस साल रबाले पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धारा 420, 465, 467, 468, 506 के तहत शिकायत दर्ज कराई।
अग्रिम जमानत याचिका में अपने बचाव में पति के वकील ने तर्क दिया कि शादी के बाद जब दोनों साथ थे, अवधि में आरोपी काम कर रहा था और लगभग 8 लाख रुपये सालाना कमा रहा था। निकट भविष्य में वेतन वृद्धि की उज्ज्वल संभावनाएं थीं।
यह तर्क दिया गया कि आरोप अस्पष्ट हैं, और केवल आरोपी को परेशान करने और समाज में उसे बदनाम करने के इरादे से लगाए गए हैं।
आवेदन का पुलिस के साथ-साथ शिकायतकर्ता ने भी विरोध किया था। पुलिस ने कोर्ट के सामने केस डायरी पेश की, जिसमें आरोपी और उसके पुरुष साथियों के बीच हुई चैट को दिखाया गया था, जिससे संकेत मिलता था कि वह समान लिंग में रुचि रखता है। यह भी तर्क दिया गया कि फर्जी जॉब ऑफर लेटर के पहलू पर जांच अभी बाकी है और अगर अग्रिम जमानत पर रिहा किया जाताहै, तो आरोपी जांच के लिए उपलब्ध नहीं हो सकता है और गवाहों को धमकी दे सकता है, इसलिए फिजिकल पूछताछ आवश्यक थी।
शिकायतकर्ता के वकील ने अदालत को बताया कि आवेदक ने शादी से पहले तथ्यों को छिपाकर शिकायतकर्ता के माता-पिता से वित्तीय सहायता पाने में रुचि रखी और लाखों रुपये का नुकसान कराया।
कोर्ट ने कहा,
"निःसंदेह प्रत्येक व्यक्ति को समाज में रहने की गरिमा है। कोई किसी अन्य व्यक्ति के जीवन शैली में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि एक व्यक्ति को पति या पत्नी में से किसी एक का जीवन बर्बाद करने की स्वतंत्रता मिल जाती है। जो नुकसान हुआ है वह निश्चित रूप से अपूरणीय है और इसे पैसे के से नहीं भरा जा सकता है।"
अदालत ने यह भी देखा कि अग्रिम जमानत एक व्यक्ति की स्वतंत्रता को सुरक्षित करने के लिए एक उपकरण है।
अग्रिम जमानत अर्जी को खारिज करते हुए अदालत ने कहा, "संभावना है कि अगर जमानत पर रिहा किया गया तो सबूतों से छेड़छाड़ होगी। इसलिए, आवेदक/आरोपी ने गिरफ्तारी से पहले जमानत का मामला नहीं बनाया है। उसकी फिजिकल पूछताछ आवश्यक है।"