ऐसा अपराध जिसमें क़ैद की सज़ा हो सकती है और जिसमें तीन साल के लिये सज़ा बढ़ाई जा सकती है, संज्ञेय है या असंज्ञेय, बड़ी पीठ करेगी फैसला

Update: 2020-04-13 10:36 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट की बड़ी पीठ इस मुद्दे पर ग़ौर करने वाली है कि ऐसा अपराध जिसमें तीन साल तक की क़ैद की सज़ा हो सकती है, उसकी प्रकृति (संज्ञेय या असंज्ञेय) क्या है?

एकल पीठ ने इस मामले को एक बड़ी पीठ को सौंपने का फ़ैसला किया। इस पीठ को यह निर्णय करना है कि भूमि राजस्व अधिनियम की धारा 91(6)(a) (बिना किसी क़ानूनी अधिकार के भूमि पर क़ब्ज़ा करना) और कॉपीराइट अधिनियम की धारा 63 और 68A के तहत होने वाला अपराध दोनों ही संज्ञेय हैं या असंज्ञेय?

न्यायाधीश ने कहा कि पिंटू देवी बनाम राजस्थान राज्य मामले में एक अन्य एकल पीठ ने जो फ़ैसला सुनाया वह क़ानून की दृष्टि से सही नहीं है और हमारी राय इससे अलग है।

पीठ ने कहा,

"इस प्रावधान के अध्ययन से मालूम होता है कि भूमि राजस्व अधिनियम की धारा 91(6)(a) के तहत तीन माह तक की सज़ा का प्रावधान है। इस तरह, इस धारा के तहत आने वाले अपराध के लिए तीन साल की क़ैद की सज़ा दी जा सकती है…सुप्रीम कोर्ट ने राजीव चौधरी के मामले में सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत कारावास की विभिन्न अवधि की व्याख्या की…इस धारा के तहत तीसरी श्रेणी के अपराध जिसे असंज्ञेय बताया जाता है वे हैं जिसमें तीन साल से कम अवधि की क़ैद की सज़ा मिलती है या सिर्फ़ जुर्माना लगाए जाते हैं …इसलिए (…) 'तीन साल की वास्तविक क़ैद की सज़ा' ऐसे अपराध के लिए देना जो कि इस क्लाज़ के तहत संज्ञेय नहीं है, इसकी अनुमति का विकल्प उपलब्ध नहीं है।…"

अदालत ने कहा कि अधिनियम की धारा 91(6)(a) के तहत अपराध निश्चित रूप से असंज्ञेय अपराध होगा क्योंकि 91(6)(a) के तहत अधिनियम के अनुसार अपराधी को तीन साल तक की क़ैद की सज़ा दी जा सकती है। इस तरह इस प्रावधान के तहत सज़ा तीन सालों तक जारी रहेगी और इस अपराध के लिए तीन साल की क़ैद की सजा की अनुमति है।

अदालत ने कहा,

"इस प्रावधान का क़ानूनी उद्देश्य इसे संज्ञेय बनाना है। यह इसकी धारा 91 के प्रावधानों से स्पष्ट है, अदालत ने कहा क्योंकि इस धारा 91का दूसरा प्रावधान कहता है कि इस क्लाज़ के तहत हुए अपराध की जांच डीएसपी से निचली रैंक का अधिकारी नहीं करेगा। चूंकी जांच सिर्फ़ संज्ञेय अपराधों की होती है और असंज्ञेय अपराधों के लिए इस तारा की कार्रवाई की अनुमति नहीं है, क्योंकि असंज्ञेय अपराध की स्थिति में कोई एफआईआर दर्ज कराए जाने की अनुमति नहीं है।

जान बूझकर पुलिस को जांच का अधिकार दिया गया है और क्लाज़ (a) के लिए यह प्रावधान नहीं किया गया है, जबकि क्लाज़ (b) जिसमें क़ैद की सजा का प्रावधान है और जिसे एक माह तक बढ़ाया जा सकता है, इस तरह का अधिकार नहीं है।"

आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




Tags:    

Similar News