जब पति या पत्नी उचित कारण के बिना सहवास की पेशकश से इनकार करते हैं, तो यह 'रचनात्मक परित्याग' के समान हैः केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने माना है कि जब अपीलकर्ता-पति वैवाहिक संबंधों को फिर से शुरू करने का प्रस्ताव देता है, और प्रतिवादी-पत्नी बिना किसी उचित कारण के इसका विरोध करती है,सहवास फिर से शुरू करने में विफल रहती है, तो यह ''रचनात्मक परित्याग'' के समान है।
जस्टिस ए मोहम्मद मुस्तक और कौसर एडप्पागथ की खंडपीठ ने विवाह को खत्म करने की मांग करते हुए दायर एक आवेदन को अनुमति देते हुए सावित्री पांडे बनाम प्रेम चंद पांडे (2002) मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का हवाला दिया, जहां यह माना गया है कि परित्याग रचनात्मक भी हो सकता है और इसका वर्तमान परिस्थितियों से अनुमान लगाया जाना चाहिए।
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(बी) में कहा गया है कि परित्याग याचिका की प्रस्तुति से ठीक पहले कम से कम दो साल की निरंतर अवधि के लिए होना चाहिए। उक्त प्रावधान के स्पष्टीकरण में, शब्द 'परित्याग' को दूसरे पक्ष द्वारा याचिकाकर्ता का बिना उचित कारण और सहमति के या ऐसे पक्ष की इच्छा के विरुद्ध विवाह के लिए परित्याग के रूप में परिभाषित किया गया है। इसमें दूसरे पक्ष द्वारा याचिकाकर्ता की जानबूझकर उपेक्षा शामिल है, और इसकी व्याकरणिक भिन्नता और सजातीय अभिव्यक्ति को तदनुसार समझा जाना चाहिए।
मामले के तथ्य
1991 में शादी करने के बाद पति-पत्नी 1996 तक साथ रहे और उसके बाद अलग रहने लग गए। 1996 में जब वे अलग रहने लगे, उस समय प्रतिवादी-पत्नी दूसरे बच्चे की डिलीवरी के लिए अपने माता-पिता के घर गई थी और तब से वापस नहीं लौटी।
अपीलकर्ता-पति का मामला यह है कि प्रतिवादी-पत्नी बिना किसी उचित कारण के उसे छोड़ गई थी और जानबूझकर वैवाहिक घर नहीं लौटी। इस प्रकार, उसे छोड़ दिया गया। दूसरी ओर, प्रतिवादी-पत्नी का आरोप है कि जब वे एक साथ रह रहे थे, तब अपीलकर्ता द्वारा उसके साथ क्रूरता का व्यवहार किया गया और बाद में अपीलकर्ता ने दूसरी शादी कर ली।
यह देखते हुए कि प्रतिवादी-पत्नी ने अलग रहने के लिए उचित कारण का अनुमान लगाया है, परित्याग के आधार पर विवाह के विघटन के लिए दायर पहली याचिका (2002) को खारिज कर दिया गया था। याचिका को खारिज करते हुए कहा गया था कि प्रतिवादी-पत्नी अपनी दूसरी डिलीवरी के लिए अपने घर गई थी; इसलिए, यह नहीं कहा जा सकता है कि उसने उसे छोड़ दिया है।
वर्तमान मामले में परित्याग का आधार फिर से उठाया गया है, क्योंकि पिछले पच्चीस वर्षों से दंपत्ति एक भी दिन सहवास में नहीं रहे हैं। आरोप पूरी तरह से पहली याचिका के समान ही हैं। प्रतिवादी-पत्नी का कहना है कि क्रूर व्यवहार और अपीलकर्ता-पति के दूसरे विवाह के कारण, उसके पास अलग रहने का एक उचित कारण है।
निष्कर्ष
प्रतिवादी-पत्नी द्वारा बताए गए दोनों आधारों को खारिज करते हुए, कोर्ट ने कहा कि केवल आरोप के अलावा, इस मामले या पहले के मुकदमों में कोई ऐसा सबूत पेश नहीं किया गया है कि अपीलकर्ता-पति ने प्रतिवादी के साथ कोई क्रूरता की थी। दूसरी शादी करने के आरोप के बारे में कोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ता-पति को आईपीसी की धारा 494 के तहत द्विविवाह के आरोपों से बरी कर दिया गया है। यह भी नोट किया गया कि अपीलकर्ता-पति के खिलाफ प्रतिवादी पत्नी के माता-पिता के घर में जबरन प्रवेश करने और उसके साथ मारपीट करने का एक आपराधिक मामला भी अपीलीय स्तर पर बरी होने के साथ समाप्त हो गया है।
न्यायालय ने यह भी कहा कि विवाह विच्छेद के लिए दायर पहली याचिका खारिज होने के बाद, अपीलकर्ता-पति ने दाम्पत्य अधिकारों की बहाली की मांग की थी, जिसका प्रतिवादी-पत्नी ने पूरी तरह से विरोध किया और अंततः खारिज कर दिया गया। मामले में पेश किए गए तथ्यों के अनुसार न्यायालय ने माना कि प्रतिवादी-पत्नी ने अपीलकर्ता-पति के फिर से साथ रहना शुरू करने के प्रस्ताव का विरोध किया था; यह रचनात्मक परित्याग के समान है।
कोर्ट ने कहा कि,
''निश्चित रूप से दोनों पक्ष पिछले 25 से अधिक वर्षों से अलग रह रहे हैं। चूंकि प्रतिवादी ने मूल याचिका में अपीलकर्ता द्वारा पेश गए उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया है,जिसमें वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए वैवाहिक संबंधों को फिर से शुरू की पेशकश की गई थी, इसलिए यह माना जाता है कि प्रतिवादी ने तब से बिना किसी उचित कारण के अपीलकर्ता को रचनात्मक रूप से त्याग दिया है।''
कोर्ट ने बिपिनचंद्र जयसिंहबाई शाह बनाम प्रभावथी (1957) मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मार्गदर्शन लिया और परित्याग के घटकों को इस प्रकार समझायाः (ए) अलगाव के तथ्य और (बी) स्थायी रूप से सहवास को समाप्त करने का इरादा। परित्यक्त पति या पत्नी के लिए, आवश्यक तत्वः (ए) सहमति की अनुपस्थिति और (बी) पूर्वोक्त आवश्यक इरादा बनाने के लिए पति या पत्नी को वैवाहिक घर छोड़ने के लिए उचित कारण देने वाले आचरण की अनुपस्थिति।
कोर्ट ने यह भी कहा कि परित्याग तथ्यों और परिस्थितियों से निकाले गए अनुमान का विषय है।
कोर्ट ने कहा कि,''अनुमान कुछ तथ्यों से निकाला जा सकता है, जो किसी अन्य मामले में उसी अनुमान को आगे बढ़ाने में सक्षम नहीं हो सकते हैं। यदि, वास्तव में, अलगाव हो गया है, तो आवश्यक प्रश्न हमेशा यह है कि क्या वह कृत्य एनिमस(वैर-भाव) डेसेरेन्डी के कारण हो सकता है? चूंकि तथ्य और वैर-भाव दोनों को कम से कम दो वर्षों की अवधि के लिए सह-अस्तित्व में होना चाहिए।''
केस का शीर्षकः पी.सी.कुंहिनारायणन बनाम विजयकुमारी
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