जब पति विलासितापूर्ण जीवन जीता है, तो पत्नी को बेसहारा नहीं छोड़ा जा सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट ने पूर्व जज की बेटी का भरण-पोषण को 1.5 लाख प्रति माह किया
कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में हाईकोर्ट के एक पूर्व जज की बेटी गुजाराभत्ता से जुड़े एक मामले में राहत दी। हाईकोर्ट ने महिल को पति की ओर से दिए जाने वाले मासिक गुजारा भत्ते को बढ़ाकर 1.5 लाख रुपये कर दिया।
शीर्ष अदालत के फैसले पर भरोसा करते हुए जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने कहा कि जब पति विलासितापूर्ण जीवन शैली जीता हो तो पत्नी और उनके बेटे को बेसहारा नहीं छोड़ा जा सकता है।
अदालत ने पति की उस अपील को खारिज कर दिया, जिसमें उसने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसे अपनी पत्नी को प्रति माह 75,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था। इसके अलावा, इसने गुजारा भत्ता बढ़ाने की मांग करने वाली पत्नी की याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया।
कोर्ट ने कहा,
“पति के पास पांच कंपनियों हैं और वह निस्संदेह अच्छा काम कर रहा है। पेश किए गए दस्तावेज दर्शाते हैं कि कंपनियां अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं और जो ऋण बताया गया है, वह पत्नी की ओर से गुजाराभत्ता के लिए कार्यवाही शुरू होने के बाद ही लिया गया है।
यदि मामले के तथ्यों पर विचार किया जाए, तो पत्नी भरण-पोषण में 2,00,000 रुपये प्रति माह की सीमा तक वृद्धि की नहीं, बल्कि 75,000 रुपये तक की वृद्धि की हकदार हो जाएगी, जो कि संबंधित न्यायालय द्वारा दी गई राशि से अधिक है।"
इस जोड़े ने 2001 में शादी की और उनका एक बच्चा है जो वर्तमान में 21 वर्ष का है। जैसे-जैसे उनका रिश्ता कमजोर होता गया, उन्होंने एक-दूसरे के खिलाफ कई कार्यवाही शुरू कीं। पत्नी ने भी हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत एक आवेदन दायर कर भरण-पोषण ओर बेटे की शिक्षा के खर्च के रूप में दो लाख रुपये की मांग की, जिसके बाद आक्षेपित आदेश पारित किया गया।
पति ने तर्क दिया 75,000 रुपये देने का फैसला खुद उसके लिए बहुत ज्यादा है, क्योंकि उसकी कंपनी पर ऋण है, जिसके कारण इतनी राशि का भुगतान करने की क्षमता नहीं है।
उसने एक हलफनामा दायर किया, जिसमें अपना मासिक खर्च 10 लाख रुपये से अधिक दिखाया। उन्होंने आगे तर्क दिया कि पत्नी ने खुद अपना व्यवसाय शुरू कर लिया है और अपना भरण-पोषण करने की स्थिति में है।
दूसरी ओर, पत्नी ने तर्क दिया कि गुजारा भत्ता उस जीवनशैली को बनाए रखने के लिए दिया जाना चाहिए जो पति ने उसे दिया था, जब वह उसके साथ रहती थी। उन्होंने कहा कि उनका बेटा अब 20 साल का है और पढ़ रहा है, इसलिए 75,000 रुपये अपर्याप्त हैं।
पति की आय के विवरण पर गौर करने पर हाईकोर्ट ने कहा, “यदि पति कारों का बेड़ा बनाए रख सकता है और व्यावसायिक उद्देश्य के लिए उसने लोन ले रखें हैं, हालांकि जिन्हें पत्नी की ओर से पति के खिलाफ कार्यवाही शुरू करने के बाद लिया गया है, इस न्यायालय के विचार में, यह पति को पत्नी और बेटे के भरण-पोषण से मुक्त नहीं करेगा। ”
कोर्ट ने दोहराया कि पत्नी को दिया जाने वाला गुजारा भत्ता केवल जीवनयापन के लिए नहीं है और यदि पति अच्छा जीवन जी रहा है, तो पत्नी को निम्नतर जीवन जीने के लिए नहीं कहा जा सकता है।
“कुछ प्रासंगिक कारकों पर उचित ध्यान दिया जाना चाहिए जैसे कि पक्षकारों की सामाजिक स्थिति और, जब दोनों पक्ष साथ रहे हे थे, तब पति और पत्नी जिस तरह का जीवन जी रहे थे..यह कोई विलासितापूर्ण जीवनशैली नहीं है जिसकी मांग पत्नी कर रही है।''
कोर्ट ने कहा कि बढ़े हुए भरण-पोषण के अलावा पत्नी बच्चे के शैक्षणिक खर्च और मुकदमेबाजी के खर्च की भी हकदार होगी।
केस टाइटल: एबीसी और एक्सवाईजेड