'न्यायिक अधिकारियों के ट्रांसफर में वकील की क्या दिलचस्पी?': केरल हाईकोर्ट ने महामारी के दौरान न्यायाधीशों के ट्रांसफर के खिलाफ दायर जनहित याचिका खारिज की
केरल हाईकोर्ट ने शुक्रवार को महामारी के दौरान अधीनस्थ अदालतों के न्यायिक अधिकारियों के ट्रांसफर को चुनौती देने वाली एक वकील की तरफ से दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) याचिका को खारिज कर दिया है।
जस्टिस ए मोहम्मद मुस्तक और जस्टिस डॉ कौसर एडप्पागथ की खंडपीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि याचिका नेक इरादों के साथ दायर की नहीं की गई है। पीठ ने कहा कि यह भारी जुर्माना लगाने के लिए एक उपयुक्त मामला था लेकिन ऐसा करने से परहेज कर रहे हैं।
पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा कि,''न्यायिक अधिकारी के ट्रांसफर में एक वकील का क्या हित है?'',साथ ही कहा कि किसी भी न्यायिक अधिकारी ने तबादले के संबंध में कोई शिकायत नहीं की है।
पीठ ने याचिकाकर्ता-वकील शीजा एम.एस के अधिवक्ता डी जयकृष्णन से पूछा,''वास्तव में उनमें से कई ट्रांसफर चाहते थे। ये न्यायिक अधिकारियों और अदालत के बीच के मामले हैं। इसमें जनहित क्या है?''
वकील ने प्रस्तुत किया कि न्यायपालिका को न्यायिक अधिकारियों को लाॅकडाउन के दौरान ट्रांसफर के कारण यात्रा करने के लिए मजबूर न करके कार्यपालिका के लिए एक उदाहरण स्थापित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि महामारी की स्थिति के कारण पुलिस में भी सामान्य ट्रांसफर को रोक दिया गया है। वकील ने तर्क दिया कि इस समय सुनवाई वुर्चअल मोड के माध्यम से हो रही है और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है अगर न्यायिक अधिकारी वर्तमान स्टेशन पर ही रहता है।
हालांकि, पीठ ने वकील से कहा कि कई न्यायिक अधिकारियों को पहले ही रिलीव किया जा चुका है और वे अपनी नियुक्ति की नई जगह पर ज्वाइन कर चुके हैं।
पीठ ने पूछा कि,'' कोरोना प्रतिबंधों के किसी भी उल्लंघन के अभाव में, आप कैसे व्यथित हैं? ऐसे कई अधिकारी हैं जिन्होंने अपने बच्चों के दाखिले करवा दिए हैं। उन अधिकारियों के बारे में क्या? आप उनके हितों के खिलाफ काम कर रहे हैं। मान लीजिए कि हम एक आदेश पारित करते हैं और वे हमारे समक्ष आ जाते हैं,तो फिर क्या किया जा सकता है?''
जब पीठ ने पूछा कि क्या किसी न्यायिक अधिकारी ने याचिकाकर्ता को ट्रांसफर के संबंध में कोई कठिनाई बताई है, तो वकील ने जवाब दिया ''यह सामान्य ज्ञान है।''
जनहित याचिका खारिज करने के आदेश में पीठ ने कहा किः
''एक वकील ने न्यायिक अधिकारियों के मामले में अनुचित रुचि दिखाई है ....एक न्यायिक अधिकारी द्वारा की जा रही किसी भी तरह की शिकायत के संबंध में किए गए एक विशिष्ट प्रश्न पर ... वकील इस तरह के प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थ था ... याचिकाकर्ता सामान्य ट्रांसफर आदेश के अनुसार न्यायिक अधिकारी की आवाजाही के संबंध में मौजूदा कानून के किसी भी उल्लंघन को इंगित करने में असमर्थ था।
ट्रांसफर आदेश की एकरूपता संस्थागत हित पर केंद्रित है न कि व्यक्तिगत हित पर। यदि कोई व्यक्तिगत शिकायत की जाती है, तो निश्चित रूप से प्रशासन द्वारा उस पर ध्यान दिया जाएगा।
इस प्रकार की जनहित याचिका, संभवतः बिना किसी वास्तविक मंशा के दायर की गई प्रतीत होती है। यह भारी जुर्माने के साथ खारिज करने का मामला हो सकता है। लेकिन हम जुर्माना लगाने से बच रहे हैं, क्योंकि हम स्वीकार करने के इच्छुक नहीं हैं।''