पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हिंसा: कलकत्ता हाईकोर्ट ने पीड़ितों के पुनर्वास के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया
कलकत्ता हाईकोर्ट की पांच न्यायाधीशों की खंडपीठ ने तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है ताकि पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद की हिंसा के दौरान डर से घर छोड़ने पर मजबूर पीड़ितों को उनके घरों में शांतिपूर्वक लौटने में सक्षम बनाया जा सके।
कोर्ट ने कहा कि,
"कानून और व्यवस्था राज्य का विषय है और पीड़ितों के पुनर्वास को सुनिश्चित करना राज्या का कर्तव्य है। यह सरकार की सर्वोपरि भूमिका है। राज्य को कानून के शासन के संबंध में पीड़ितों को घर लौटने में मदद करनी होगी।"
कोर्ट के आदेश के अनुसार समिति में निम्न शामिल होंगे;
(i) राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष द्वारा नियुक्त किया जाने वाला एक सदस्य
(ii) राज्य मानवाधिकार आयोग द्वारा नामित किया जाने वाला सदस्य
(iii) सदस्य सचिव, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण।
कोर्ट ने आदेश दिया कि पीड़ित व्यक्ति पश्चिम बंगाल राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण की आधिकारिक ईमेल आईडी पर अपनी शिकायत दर्ज कराएंगे। उक्त व्यक्तियों का विवरण प्राप्त होने के बाद समिति स्थानीय पुलिस थानों के साथ समन्वय करेगी और सुनिश्चित करेगी कि पीड़ितों का पुनर्वास हो सके।
पीठ ने आदेश दिया कि,
"हिंसा के दौरान घर छोड़ने पर मजबूर व्यक्ति अपने घरों में शांति से लौटने और रहने के हकदार हैं। सभी संबंधित पुलिस स्टेशन समिति के साथ समन्वय करेंगे जो उपरोक्त प्रक्रिया के लिए उठाए गए कदमों के बारे में अपनी रिपोर्ट इस अदालत को सौंपेगी।"
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल, जस्टिस आईपी मुखर्जी, जस्टिस हरीश टंडन, जस्टिस सौमेन सेन और जस्टिस सुब्रत तालुकदार की पीठ ने अधिवक्ता प्रियंका टिबरेवाल द्वारा दायर एक याचिका पर यह आदेश पारित किया है। याचिका में आरोप लगाया गया था कि हिंसा के कारण 200 से अधिक लोग लोग अपने घरों से बाहर हैं और डर के कारण वापस नहीं आ सके हैं।
याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर हलफनामों में दावा किया कि पीड़ितों को वापस आने की अनुमति नहीं दी जा रही है। इस पर महाधिवक्ता किशोर दत्ता ने सुनवाई के दौरान कहा कि राज्य में 9 मई के बाद कोई हिंसा नहीं हुई है। उन्होंने दावा किया कि कई लोग अपने कार्यस्थल पर लौट आए हैं और कुछ लॉकडाउन लागू होने के कारण नहीं लौटे हैं।
महाधिवक्ता किशोर दत्ता ने सवाल किया कि एक ही दिन में 100 से अधिक लोगों ने हलफनामा कैसे दायर किया और आग्रह किया कि शपथ आयुक्त को बुलाया जाए।
बेंच ने एजी से इस समय तकनीकी मुद्दों को छोड़ने और बड़े प्रश्न पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा।
बेंच ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि,
"क्या आप इससे चिंतित नहीं हैं कि जो लोग अपने घरों से बाहर हैं? 9 मई के बाद हिंसा न हुई हो लेकिन लोग अपने घरों को नहीं लौट पाए हैं। लोगों में सुरक्षा की भावना होनी चाहिए ताकि वे शांति से लौट सकें। आपके पास एक मजबूत प्रशासन है। सभी पुलिस स्टेशनों से डेटा एकत्र करें और हमारे सामने पेश करें।"
कोर्ट से एजी ने आग्रह किया कि याचिकाकर्ता टिबरेवाल को उनके राजनीतिक जुड़ाव के कारण पुनर्वास प्रक्रिया में अनुमति नहीं दी जाए।
याचिकाकर्ता टिबरेवाल ने दलील दी कि वह पीड़ितों को उनके घर लौटने में मदद करने के लिए तैयार हैं और उन्होंने कहा कि यह कार्य शांतिपूर्ण ढंग से हो यह सुनिश्चित करने के लिए वह केवल एक पुलिस अधिकारी का समर्थन चाहती हैं।
पीठ ने एक स्वतंत्र समिति बनाने को ध्यान में रखते हुए कहा कि,
"इस मामले का फैसला हलफनामा बनाम हलफनामा के आधार पर नहीं किया जा सकता है। लोगों को अपने घरों में वापस लौटने और वहां शांति से रहने का अधिकार है।"
कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे लोग भी हो सकते हैं जो स्थिति का फायदा उठाने की कोशिश कर सकते हैं और उन संपत्तियों पर कब्जा करने की कोशिश कर सकते हैं जिन पर उनका कोई अधिकार नहीं है। इसलिए इसने विस्थापित व्यक्तियों को अपने पहचान प्रमाण के साथ आने के लिए कहा है और समिति को मामले के आधार पर स्थिति से निपटने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने अब यह मामला सुनवाई के लिए 4 जून को सूचीबद्ध किया है। इस बीच राज्य को अन्य लंबित याचिकाओं के विरोध में हलफनामा दाखिल करने की स्वतंत्रता दी गई है।
खंडपीठ ने नागरिकों के जीवन और स्वतंत्रता से संबंधित मुद्दों के महत्व के संबंध में मामले को पांच न्यायाधीशों की पीठ के पास भेज दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते 2 मई को विधानसभा चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद पश्चिम बंगाल में हुई कथित हिंसा के पीड़ितों के मुआवजे और पुनर्वास की मांग करने वाली एक जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया था। बंगाल सरकार उस याचिका पर जवाबी हलफनामा दाखिल करेगी जिसमें कथित तौर पर तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के इशारे पर दो भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या की सीबीआई/एसआईटी जांच की मांग की गई है।