आरोपी के खुलासे पर हथियार की खोज अपराध साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हत्या-दोषी की उम्रकैद की सजा रद्द की
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पाया है कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के प्रयोजनों के लिए अभियुक्त के प्रकटीकरण पर भौतिक वस्तु/अपराध हथियार की खोज महत्वपूर्ण है, हालांकि केवल इसी तरह के प्रकटीकरण से यह निष्कर्ष नहीं निकलेगा कि आरोपी ने अपराध किया है।
इस प्रकार, हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक मामले में एक हत्या-दोषी की उम्रकैद की सजा को रद्द कर दिया। सजा वर्ष 2014 से पहले की थी। कोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि केवल अपराध हथियार की बरामदगी को अपीलकर्ता-अभियुक्त दोषसिद्धि का आधार नहीं बना सकता।
जस्टिस सुनीत कुमार और जस्टिस दिनेश पाठक की खंडपीठ ने निष्कर्ष निकाला, "वास्तव में (खोज के बाद) भौतिक वस्तुओं की खोज और अपराध में इनके उपयोग के बीच घनिष्ठ संबंध स्थापित करने का दायित्व अभियोजन पक्ष पर है। धारा 27 के तहत जो स्वीकार्य है वह खोज की ओर ले जाने वाली जानकारी है, न कि अभियोजन पक्ष द्वारा इस पर बनाई गई कोई राय।"
मामला
अभियोजन मामले के अनुसार अपीलकर्ता/शिकायतकर्ता ने धारा 302 आईपीसी के तहत 30 अप्रैल 2014 को सुबह 10.05 बजे अपनी पत्नी की हत्या के मामले में अज्ञात व्यक्ति (व्यक्तियों) के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी।
उन्होंने कहा कि रोजमर्रा की तरह उनकी पत्नी/मृतक सहित परिवार के सदस्य, रात का खाना खाने के बाद सोने के लिए चले गए और वह खुद घर के पीछे ढाबा में सोने चले गए। उन्होंने कहा कि सुबह उनके बेटे कमलेश ने अपनी मां (मृतक) को खाट पर मृत पड़ा देखा; चारों तरफ खून बिखरा हुआ था। उसने दौड़कर शिकायतकर्ता को घटना की सूचना दी।
पूछताछ में अपीलकर्ता/शिकायतकर्ता ने तड़के करीब तीन बजे कुल्हाड़ी द्वारा अपनी पत्नी की गर्दन काट कर अपराध करना स्वीकार किया।
आरोपी/शिकायतकर्ता ने जांच अधिकारी को बताया कि उसने घटना के बाद कुल्हाड़ी को पास में छिपा दिया था, तदनुसार, आरोपी/अपीलकर्ता को हिरासत में ले लिया गया और उसके कहने पर कुल्हाड़ी बरामद की गई।
फोरेंसिक लैब की रिपोर्ट में कहा गया कि कुल्हाड़ी, कथरी, खाट की रस्सी, ब्लाउज और कांच की चूड़ियों पर खून पाया गया था।
निचली अदालत ने गवाहों के बयान, दस्तावेजी साक्ष्य और अपीलकर्ता के करने पर अपराध हथियार की बरामदगी, कुल्हाड़ी, कपड़े और अन्य सामान पर खून की मौजूदगी पर विचार किया। कोर्ट की राय थी कि अभियोजन पक्ष ने आरोप को संदेह से परे साबित कर दिया था।
तदनुसार, आरोपी को दोषी ठहराया गया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई, उसी के खिलाफ आरोपी-अपीलकर्ता ने न्यायालय का रुख किया।
निष्कर्ष
शुरुआत में, अदालत ने यह पता लगाया कि क्या अभियोजन मामले को साबित करने में सक्षम था और क्या वह आरोपी को अपराध से जोड़ने में सक्षम था।
इसे देखते हुए, कोर्ट ने कहा कि अपराध स्थल के साइट प्लान के अनुसार, सड़क से लगा होने के कारण मृतक का कमरा किसी भी व्यक्ति के लिए सुलभ था और खुली जमीन से घिरा हुआ था और उन्हीं जमीन पर दरवाजा खुलता था।
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि आरोपी को मृतक के कमरे तक पहुंचने के लिए घर के बाहर से यानी खुली जमीन की दूरी तय करनी होती क्योंकि जिस कमरे में आरोपी सो रहा था और जिस कमरे में मृतक सो रही थी, वह आपस में जुड़ा नहीं था।
इस पृष्ठभूमि में न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि अभियोजन पक्ष मिसिंग लिंक को स्थापित करने में सक्षम नहीं था, यानी अपराध के होने के समय अपीलकर्ता की उपस्थिति को जोड़ना और यह साबित करने में विफल रहा कि आरोपी ने मृतक के कमरे में अकेले ही प्रवेश किया था।
"अभियोजन मामले के अनुसार अपीलकर्ता के साथ कई लोग घर में मौजूद थे। अपीलकर्ता को उसके इकबालिया बयान और उसके कहने पर हथियार की बरामदगी पर दोषी ठहराया गया था।"
अभियुक्त के कहने पर कुल्हाड़ी/कथित हतकी खोज के संबंध में, न्यायालय ने कहा कि यह तथ्य अकेले ही दोषसिद्धि का आधार नहीं बन सकता।
कोर्ट ने कहा, "साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के संबंध में महत्वपूर्ण यह है कि अभियुक्त के प्रकटीकरण पर भौतिक वस्तु की खोज, हालांकि केवल इस तरह के प्रकटीकरण से स्वतः यह निष्कर्ष नहीं निकलेगा कि अपराध भी अभियुक्त द्वारा ही किया गया था।"
अदालत ने यह भी नोट किया कि मामले के तथ्यों में अपराध हथियार की बरामदगी पांच दिनों के बाद की गई थी, हालांकि आरोपी शिकायतकर्ता था और पूरी जांच में मौजूद रहा। अपराध हथियार को अपराध से नहीं जोड़ा गया था।
नतीजतन, कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि ट्रायल कोर्ट का निष्कर्ष विकृत था और इस प्रकार, उसने जेल अपील की अनुमति दी और दोषसिद्धि और सजा के फैसले और आदेश को रद्द कर दिया गया। अपीलार्थी को तत्काल रिहा करने का निर्देश दिया गया।
केस शीर्षक - छट्टू चेरो बनाम यूपी राज्य [JAIL APPEAL No. - 116 of 2019]
केस सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (All) 166