'हम आधी रात के बाद वेकेशन जज नहीं रह जाएंगे': बॉम्बे हाईकोर्ट ने परमबीर सिंह की याचिका पर सुनवाई स्‍थगित की, गिरफ्तारी पर रोक

Update: 2021-05-22 09:03 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट की वेकेशन बेंच ने मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह की याचिका पर देर रात तक सुनवाई के बाद, उसे सोमवार के लिए स्‍थगित कर दिया।

परमबीर सिंह ने ठाणे पुलिस द्वारा उन पर और 32 अन्य के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट, नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम और आईपीसी के तहत दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने के लिए मामला दर्ज कराया था।

यह देखते हुए कि वे "आधी रात के बाद वे वेकेशन जज नहीं रह जाएंगे", जस्टिस एसजे कथावाला और जस्टिस एसपी तावड़े की खंडपीठ ने मामले को सोमवार तक के लिए स्थगित कर दिया, साथ ही महाराष्ट्र सरकार को तब तक परमबीर सिंह को गिरफ्तार ना करने का निर्देश दिया।

बेंच ने आदेश में कहा, "हमारे पास आज बोर्ड पर 60 मामले थे, जिसमें सीबीआई के खिलाफ महाराष्ट्र राज्य द्वारा दायर याचिका भी शामिल थी, जिसे आंशिक रूप से सुना गया ... हमने श्री जेठमलानी और श्री खंबाटा को सुना और चूंकि हम 12 बजे (आधी रात) के बाद वेकेशन जज नहीं रह जाएंगे , हम मामले की सुनवाई सोमवार के लिए स्थगित करते हैं। हालांकि, यह माननीय चीफ जस्टिस से अनुमति लेने वाली रजिस्ट्री के अधीन है। इस बीच महाराष्ट्र राज्य श्री परमबीर सिंह को गिरफ्तार नहीं कर सकता है।"

सप्ताह में यह दूसरा उदाहरण है, जब बेंच ने सुबह 10.30 बजे से देर रात तक, 12 घंटे से ज्यादा समय तक बैठक की। इससे पहले दिन में, बेंच ने राज्य की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट डेरियस खंबाटा से पूछा कि क्या वे सिंह को गिरफ्तार कराना चाहते हैं।

खंबाटा ने कहा कि वर्तमान मामला एससी / एसटी एक्ट के तहत बहुत गंभीर है, और जबकि वह यह नहीं कह रहा है कि वे उन्हें रात भर में गिरफ्तार कर लेंगे, वह भी जांच में कोई बाधा नहीं चाहते हैं।

सुप्रीम कोर्ट में परमबीर सिंह की याचिका का नॉन डिस्‍क्लोज़र दायर

खंबाटा ने तर्क दिया कि 13 मई को जब मामला जस्टिस एसएस शिंदे की अगुवाई वाली पिछली पीठ के सामने आया था, तो उन्होंने बयान दिया था कि वे उन्हें गिरफ्तार नहीं करेंगे, लेकिन याचिकाकर्ता द्वारा इसका दुरुपयोग सुप्रीम कोर्ट में, वर्तमान याचिका में जिसे चुनौती दी गई है, उसमें शामिल सब कुछ को चुनौती देने के लिए किया गया था।

खंबाटा ने आरोप लगाया कि दोपहर में जब मामला आया तो याचिका ने उच्च न्यायालय को इसकी जानकारी तक नहीं दी। बेंच ने ध्यान दिया, "यह वही मामला है, जहां जस्टिस गवई (सुप्रीम कोर्ट के बीआर गवई) ने खुद को अलग किया है।"

सीनियर एडवोकेट महेश जेठमलानी ने उच्च न्यायालय की वर्तमान पीठ के समक्ष उच्चतम न्यायालय की याचिका का खुलासा न करने के आरोपों पर आपत्ति जताई। हालांकि, खंडपीठ और श्री खंबाटा दोनों ने स्पष्ट किया कि गैर-प्रकटीकरण का आरोप उनके मुवक्किल के खिलाफ है, न कि श्री जेठमलानी के खिलाफ।

सिंह की ओर से पेश वकील की दलीलें

परमबीर सिंह की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट महेश जेठमलानी ने तर्क दिया कि प्राथमिकी पूरी तरह से गलत है, और इसलिए उन्होंने प्राथमिकी को रद्द करने के लिए याचिका दायर की है।

जेठमलानी ने तर्क दिया कि देशमुख के खिलाफ पत्र के बाद परमबीर के खिलाफ के हास्यास्पद मामले दर्ज किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्राथमिकी में कहा गया है कि शिकायतकर्ता के खिलाफ झूठे मामले दर्ज करने के लिए परमबीर सिंह और अन्य को गिरफ्तार करें। उन मामलों में से एक पूरा हो चुका है और अपील लंबित है, और अन्य मामलों में भी आरोप पत्र दायर किया गया है।

जेठमलानी ने दलील दी कि चूंकि शिकायतकर्ता ने अपने खिलाफ पुरानी प्राथमिकी को परमबीर के खिलाफ मौजूदा प्राथमिकी से जोड़ दिया है, इसलिए अब उन मामलों की जांच नहीं की जा सकती है।

जेठमलानी ने आगे तर्क दिया कि यह ताजा या नए सिरे से जांच का मामला है, और राज्य ने जो किया है वह स्पष्ट रूप से अवैध है। एक नई जांच या नए सिरे से जांच के मामले में, अदालत से स्पष्ट आदेश होना चाहिए। एफआईआर दर्ज करने में 5 साल की देरी हुई है, और यह परमबीर के पत्र के बाद ही आया है।

जेठमलानी ने दावा किया कि यह बदले की कवायद के अलावा और कुछ नहीं है। उन्होंने कहा कि घाडगे ने 28 अप्रैल, 2021 को प्राथमिकी दर्ज कराई थी। राज्य की प्रतिक्रिया इतना कह रही है कि उनके पास इसका जवाब नहीं है।

जेठमलानी ने कहा, "घाडगे ने 500 पेज का एक हलफनामा दायर किया है, जिसे मुझे कल तामील किया गया, जिसमें उनका बचाव है, लेकिन जब न्यायपालिका के समक्ष मामला लंबित है तो राज्य का हस्तक्षेप करना बहुत बड़ी अवमानना है।"

जेठमलानी ने कहा की, "अनिल देशमुख का बेटा पुलिस बल में दलाली करने वालों में से एक है। यह महाराष्ट्र राज्य में इस स्तर तक आ गया है।"

अनिल देशमुख के खिलाफ सीबीआई की प्राथमिकी का जिक्र करते हुए जेठमलानी ने कहा कि परमबीर का बयान दर्ज कर लिया गया है और वह उस मामले में गवाह भी हैं।

शिकायतकर्ता की ओर से पेश वकील तालेकर ने स्पष्ट किया कि तथ्यों से छेड़छाड़ की गई है। शिकायतकर्ता ने 2016 में प्राथमिकी के लिए अधिकारियों से संपर्क किया था और 110 से अधिक पत्र लिखे हैं।

राज्य के वकील की दलीलें

सीनियर एडवोकेट खंबाटा ने प्रस्तुत किया कि अदालत को जारी जांच में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और प्राथमिकी संज्ञेय अपराध का खुलासा करती है। उन्होंने कहा कि भजनलाल के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यदि संज्ञेय अपराध का खुलासा किया जाता है, तो इसे रद्द नहीं किया जा सकता क्योंकि यह दुर्भावना है।

खंबाटा ने यह भी स्पष्ट किया कि यह पूरी तरह से गलत बयान है कि शिकायतकर्ता ने प्राथमिकी में अपनी जाति का उल्लेख नहीं किया है, क्योंकि घडगे ने उल्लेख किया था कि वह महार समुदाय से हैं।

खंबाटा ने तर्क दिया कि जिस मामले में शिकायतकर्ता को परमबीर द्वारा नाम हटाने का निर्देश दिया गया था, वह कल्याण डोंबिवली नगर निगम के उच्च पदस्थ अधिकारियों द्वारा अनियमितताओं से संबंधित था।

खंबाटा ने कहा, "चूंकि वह (परमबीर) इस अधिकारी से अपना गंदा काम नहीं करवा सके, इसलिए उन्होंने उसे निलंबित कर दिया, एक अन्य अधिकारी नियुक्त किया और आरोप पत्र से आरोपियों के नाम हटा दिए।"

बेंच ने कहा, "परमबीर के सरकार के साथ मतभेद के बाद यह सब क्यों? हम दुर्भावना पर हैं।" खंबाटा ने तर्क दिया कि यदि इस जांच में संज्ञेय अपराध बनता है, तो इसे आगे बढ़ने दिया जाना चाहिए।

घडगे को किस हद तक परेशान किया गया था, यह दिखाने के लिए प्राथमिकी की सामग्री का उल्लेख करते हुए, खंबाटा ने कहा, "यदि यह संज्ञेय अपराध नहीं है तो क्या है?"

खंबाटा ने बताया कि कैसे घडगे ने ऐसे मामले में 14 महीने जेल में बिताए, जिसमें उन्हें अंततः बरी कर दिया गया। और कैसे घडगे ने सभी अधिकारियों को पत्र लिखकर उनसे अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों का संज्ञान लेने को कहा।

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