"हम लिव-इन रिलेशनशिप के खिलाफ नहीं हैं": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने समलैंगिक कपल को पुलिस सुरक्षा प्रदान की
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक समलैंगिक जोड़े को यह कहते हुए पुलिस सुरक्षा प्रदान की कि अदालत लिव-इन रिलेशनशिप के खिलाफ नहीं है।
न्यायमूर्ति डॉ कौशल जयेंद्र ठाकर और न्यायमूर्ति अजय त्यागी की खंडपीठ अंजू सिंह और उसके लिव-इन पार्टनर की सुरक्षा याचिका पर विचार कर रही थी, जिसने दावा किया कि उन्हें परेशान किया जा रहा है और यदि उन्हें सुरक्षा प्रदान नहीं की जाती है तो निजी उत्तरदाताओं द्वारा उन्हें शांति से नहीं रहने दिया जाएगा।
याचिकाकर्ता ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि वे बालिग लड़कियां हैं जो लिव-इन रिलेशन में रहना चाहती हैं और समलैंगिक जोड़े हैं।
यह भी प्रस्तुत किया कि उनके माता-पिता ने याचिकाकर्ताओं को अपने रिश्ते को समाप्त नहीं करने पर जान से मारने की धमकी दी और उन्होंने याचिकाकर्ताओं को एक आपराधिक मामले में झूठा फंसाने की धमकी भी दी।
इस पृष्ठभूमि के खिलाफ इस बात पर जोर देते हुए कि अदालत लिव-इन रिलेशन के खिलाफ नहीं है, कोर्ट ने पुलिस को सभी दस्तावेजों की जांच करने के बाद उन्हें सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया।
अदालत ने जियान देवी बनाम अधीक्षक, नारी निकेतन, दिल्ली एंड अन्य (1976) 3 एससीसी 234; लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एंड अन्य, (2006) 5 एससीसी 475; और भगवान दास बनाम राज्य (दिल्ली का राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र), (2011) 6 एससीसी 396 के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों का भी उल्लेख किया।
इन टिप्पणियों के साथ इस याचिका को आंशिक रूप से अनुमति दी गई।
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गौरतलब है कि यह देखते हुए कि लिव-इन-रिलेशनशिप इस देश के सामाजिक ताने-बाने की कीमत पर नहीं हो सकती है, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अगस्त 2021 में अपने साथी के साथ रहने वाली एक विवाहित महिला की सुरक्षा याचिका को खारिज करते हुए 5,000 रुपए का जुर्माना लगाया।
न्यायमूर्ति डॉ कौशल जयेंद्र ठाकर (तत्काल मामले का भी हिस्सा) और न्यायमूर्ति सुभाष चंद की खंडपीठ ने अपने साथी के साथ उसके लिव-इन संबंध को अवैध संबंध बताते हुए कहा,
"पुलिस को उन्हें सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश देना अप्रत्यक्ष रूप से ऐसे अवैध संबंधों को हमारी सहमति मानी जा सकती है।"
इलाहाबाद उच्च न्यायालय में इस साल जून में इसी प्रार्थना के साथ एक याचिका खारिज कर दी थी। कोर्ट ने देखा कि महिला पहले से ही शादीशुदा है और किसी अन्य पुरुष के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सुरक्षा याचिका खारिज कर दी और याचिकाकर्ता पर पांच हजार रूपये का जुर्माना लगाया था।
हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने देखा कि लिव-इन रिलेशनशिप को सामाजिक नैतिकता की धारणा के बजाय व्यक्तिगत स्वायत्तता के लेंस से देखा जाना चाहिए।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने संबंध में रहने की इच्छा रखने वाले युवा जोड़े के मामले में कहा था कि यह लिव इन रिलेशनशिप के खिलाफ नहीं है और लेकिन एक जोड़े द्वारा दायर सुरक्षा याचिका को खारिज कर दिया था। याचिकाकर्ताओं में से एक के विवाह के निर्वाह के दौरान दायर किया गया था।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक अन्य मामले में जून 2021 में लिव-इन रिलेशनशिप में एक महिला की सुरक्षा याचिका खारिज कर दी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसने अपने पति की असामाजिक गतिविधियों को देखते हुए अपना वैवाहिक घर छोड़ दिया और अब लिव-इन रिलेशनशिप में मोहित के साथ रह रही है।
गौरतलब है कि एक समलैंगिक जोड़े द्वारा दायर एक सुरक्षा याचिका पर सुनवाई करते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने सोमवार (22 मार्च) को मामले में शामिल संवेदनशीलता को देखते हुए पक्षकारों को कैमरे में सुनने की इच्छा व्यक्त की और इस तरह मामले को 29 मार्च को सुनवाई के लिए स्थगित कर दिया।
न्यायमूर्ति एन आनंद वेंकटेश की पीठ ने कहा था,
"मामले में अधिक संवेदनशीलता और सहानुभूति के साथ निपटने की आवश्यकता है और यह एक मामला है कि कैसे समाज अब भी समलैंगिक जोडें के साथ रहने के खिलाफ जूझ रहा है। इसमें शामिल मुद्दे की संवेदनशीलता को देखते हुए यह न्यायालय कैमरे के सामने सुनवाई करना चाहता है।"
एक बार फिर, एक समलैंगिक जोड़े द्वारा दायर एक संरक्षण याचिका से निपटने के लिए, मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एन आनंद वेंकटेश ने सोमवार (29 मार्च) को कहा कि वह इस मुद्दे के बारे में अपनी पूर्वकल्पित धारणाओं को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।
न्यायमूर्ति वेंकटेश की खंडपीठ ने पिछले हफ्ते मामले में शामिल संवेदनशीलता को देखते हुए समलैंगिक जोड़े को कैमरे में सुनने की इच्छा व्यक्त की।
हाल ही में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने 30 नवंबर को अंतिम सुनवाई के लिए कानून के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता और पंजीकरण की मांग करने वाली याचिकाओं के एक बैच को सूचीबद्ध किया है।
मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने इस बीच सभी पक्षकारों को अपनी दलीलें पूरी करने के लिए समय दिया है।
पीठ अभिजीत अय्यर मित्रा, वैभव जैन, डॉ कविता अरोड़ा, ओसीआई कार्डधारक जॉयदीप सेनगुप्ता और उनके साथी रसेल ब्लेन स्टीफेंस द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि 'पति/पत्नी' का अर्थ पति और पत्नी है, 'विवाह' विषम लैंगिक जोड़ों से जुड़ा एक शब्द है और इस प्रकार नागरिकता अधिनियम के संबंध में एक विशेष जवाब दाखिल करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
उन्होंने कहा,
"कानून जैसा भी है। जैविक पुरुष और महिला के बीच विवाह की अनुमति है।"
एसजी ने आगे दावा किया कि नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ के मामले के बारे में याचिकाकर्ताओं की गलत धारणा है, जिसने निजी तौर पर वयस्कों के बीच समलैंगिक कृत्यों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है।
आगे कहा,
"यहां मुद्दा यह है कि क्या समलैंगिक जोड़ों के बीच विवाह की अनुमति है। यौर लॉर्डशिप यह आपको तय करना है। नवतेज सिंह जौहर मामले के बारे में कुछ गलत धारणा है। यह केवल गैर-अपराधीकरण करता है। यह शादी के बारे में बात नहीं करता है।"
केस का शीर्षक - अंजू सिंह @ अंजू एंड अन्य बनाम स्टेट ऑफ यू.पी. और 6 अन्य
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