वालयार रेप-डेथ केस: केरल हाईकोर्ट ने तीनों आरोपियों की जमानत याचिका खारिज की, उन्हें ट्रायल कोर्ट जाने को कहा

Update: 2022-01-05 09:31 GMT

केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को कुख्यात वालयार मामले में मुख्य आरोपियों द्वारा दायर जमानत याचिकाएं खारिज कीं। इस केस के चलते राज्य में सार्वजनिक आक्रोश पैदा हो गया था।

न्यायमूर्ति पी. गोपीनाथ ने देखा कि कि निचली अदालत के समक्ष अंतिम रिपोर्ट पहले ही दायर की जा चुकी है। इसके साथ ही आवेदकों से कहा कि वे अपनी जमानत याचिकाओं के साथ निचली अदालत का रुख करें क्योंकि यह उस पर विचार करने के लिए उपयुक्त फोरम होगा।

बेंच ने कहा,

"इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि अंतिम रिपोर्ट पहले ही दायर की जा चुकी है और यह तथ्य कि जमानत आवेदनों में से एक में याचिकाकर्ता पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत अपराध करने के आरोप भी हैं। इसलिए मेरे मुताबित याचिकाकर्ताओं को जमानत के लिए अधिकार क्षेत्र की अदालत का दरवाजा खटखटाना चाहिए।"

मामले की पिछली सुनवाई में, कोर्ट ने सीबीआई को जांच के चरण और मामले में अंतिम रिपोर्ट जमा करने के लिए आवश्यक अनुमानित समय प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था।

सीबीआई ने भाई-बहनों की मौत के तरीके पर संदेह जताया है और संकेत दिया कि शायद उनकी हत्या की गई है, लेकिन इसे आत्महत्या के रूप में दिखाया गया। इसका आवेदकों द्वारा जोरदार खंडन किया गया और मेडिकल रिकॉर्ड द्वारा नकारात्मक में स्थापित किया गया।

क्या है वालयार केस?

इस मामले में केरल के वालयार जिले में क्रमशः 13 जनवरी और 4 मार्च, 2017 को 13 साल और नौ साल की दो नाबालिग दलित बहनों की अप्राकृतिक मौत हो गई थी।

घटना का पता तब चला जब वे संबंधित तारीखों को अपने एक कमरे के घर में पंखे से लटकी हुई पाई गई। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि मौत से पहले उनके साथ रेप किया गया था।

पुलिस मामले के अनुसार, आरोपियों द्वारा उनके साथ किए गए अप्राकृतिक यौन संबंध के कारण असहनीय दर्द और पीड़ा से लड़कियों की मौत हुई थी।

इस मामले में पांच आरोपी मधु उर्फ वालिया मधु, मधु एम उर्फ कुट्टी मधु, शिबू, प्रदीप कुमार एम और अपराध के समय 16 साल का एक नाबालिग शामिल हैं।

हालांकि, चौथे आरोपी प्रदीप कुमार ने कथित तौर पर नवंबर 2020 में आत्महत्या कर ली थी।

बाद में इस मामले में एक विशेष POCSO अदालत ने अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत एक कमजोर मामले का हवाला देते हुए तीन आरोपियों को बरी कर दिया। विशेष कोर्ट के इस फैसले ने राज्य में व्यापक जनाक्रोश को पैदा किया था। इसने राज्य में नागरिक समाज संगठनों और विपक्षी दलों के साथ पुलिस जांच और मामले में राजनीतिक हस्तक्षेप की निंदा करने के साथ विरोध प्रदर्शनों की आंधी चला दी थी।

मामले ने एक सनसनीखेज मोड़ तब आया जब शुरू में इसकी जांच करने वाले पुलिस अधिकारियों पर आरोपियों की मदद करने के आरोप लगे।

इसलिए, राज्य ने मामले में फिर से जांच की मांग करने वाली अपील के साथ हाईकोर्ट का रुख किया।

अदालत ने मामले में आगे की जांच की मांग करने के लिए अभियोजन पक्ष को दी गई स्वतंत्रता के साथ अभियुक्तों को बरी कर दिया।

इसके बाद हाईकोर्ट ने सीबीआई को वालयार बलात्कार और मौत के मामलों की जांच करने का आदेश दिया।

तदनुसार, इस साल अप्रैल में सीबीआई की तिरुवनंतपुरम इकाई ने इस मामले की जांच शुरू की। इस तरह सीबीआई ने एक विशेष अदालत के समक्ष यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम के तहत अपनी जांच के बाद मामले में दो अलग-अलग एफआईआर दर्ज की।

एफआईआर में आरोपी पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत भी मामला दर्ज किया गया। आरोपियों को जल्द ही फिर से गिरफ्तार कर लिया गया।

तीसरे आरोपी एम. मधु को हाईकोर्ट ने जमानत दे दी।

बाद में वालिया मधु और शिबू ने अतिरिक्त सत्र न्यायालय के समक्ष जमानत आवेदनों को प्राथमिकता देते हुए दावा किया कि उन्हें तीन महीने से अधिक समय तक जेल में रखा गया, लेकिन उनकी इस दलील को इस साल जून में खारिज कर दिया गया।

केस का शीर्षक: मधु उर्फ वलिया मधु बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो

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