पीड़िता की गवाही अविश्वसनीय, बयान में काफी सुधार किए गएः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाबालिग से बलात्कार करने के मामले में कांस्टेबल को बरी किया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक पुलिस कांस्टेबल को बरी कर दिया है, जिसे 2018 में एक ट्रायल कोर्ट ने 16 वर्षीय नाबालिग लड़की से कथित रूप से बलात्कार करने का दोषी ठहराया था। हाईकोर्ट ने आरोपी कांस्टेबल को बरी करते हुए कहा कि चिकित्सा साक्ष्य अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन नहीं करते हैं।
जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा और जस्टिस शिव शंकर प्रसाद की पीठ ने यह भी कहा कि पीड़िता की गवाही में काफी सुधार हुआ है और इसलिए, आरोपी-अपीलकर्ता को अपराध का दोषी ठहराने में निचली अदालत सही नहीं थी।
हाईकोर्ट ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश-VIII, फतेहपुर द्वारा वर्ष 2018 में पारित फैसले और सजा के आदेश को रद्द करते हुए कहा कि,
‘‘निचली अदालत का यह निष्कर्ष कि अभियुक्त-अपीलकर्ता का दोष एक उचित संदेह से परे साबित हो गया है, इस प्रकार अरक्षणीय है। हम मानते हैं कि अभियोजन पक्ष एक उचित संदेह से परे अभियुक्त-अपीलकर्ता के अपराध को साबित करने में विफल रहा है।”
आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 376 व अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 3 (ii) (v)/3 (i) (xii) और पॉक्सो एक्ट की धारा 5/6 के तहत दोषी ठहराया गया था और इसके परिणामस्वरूप कठोर आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। बरी होने से पहले, उसने लगभग चार साल और दो महीने कैद में बिताए हैं।
मामला संक्षेप में
अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार 9 सितंबर 2015 को सुबह करीब 4ः30 बजे शिकायतकर्ता की बेटी (16 वर्षीय पीड़िता) शौच करने के लिए घर के पीछे गई थी और तभी आरोपी अजीत सिंह (एक स्थानीय थाने में तैनात कांस्टेबल) ने पीड़िता का मुंह बंद कर उसे खेत में खींच लिया और उसके साथ दुष्कर्म किया।
गौरतलब है कि पीड़िता ने सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दर्ज कराए गए अपने बयान में आरोपी के खिलाफ दुष्कर्म का कोई आरोप नहीं लगाया था बल्कि उसने कहा था कि वह आरोपी को पहचानती भी नहीं है।
हालांकि, सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज कराए अपने बयान में, उसने सुधार किया और कहा कि जब वह अपने घर के पीछे शौच करने गई, तो उसके पास एक टार्च थी और उसी के प्रकाश में, उसने आरोपी-अपीलकर्ता अजीत सिंह सिपाही को पहचान लिया था जिसने पीछे से पकड़ कर उसका मुंह बंद कर दिया और धान के खेत में ले जाकर उसके साथ दुष्कर्म किया।
उसके बयानों की विसंगति को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने निम्नलिखित टिप्पणियां कीः
“... सीआरपीसी की धारा 161 और 164 के तहत दर्ज पीड़िता के बयान के गहन मूल्यांकन पर और निचली अदालत के समक्ष दिए गए बयान को देखने के बाद हम पाते हैं कि सीआरपीसी की धारा 161 के तहत पीड़िता के बयान दर्ज किए जाने के बाद उसके बयानों में सुधार हुआ है। उसी दिन यानी घटना की तारीख और पीड़िता के बयान में इस तरह का सुधार एक बड़े सुधार के समान है, जो पीडब्ल्यू-1/पीड़ित की गवाही को अविश्वसनीय बनाता है।’’
इस संबंध में, हाईकोर्ट ने डोला उर्फ डोलागोबिंदा प्रधान बनाम ओडिशा राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर भी भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने पीड़िता के बयानों में विसंगतियां पाने के बाद एक बलात्कार के आरोपी को बरी कर दिया था।
इसके अलावा, अदालत ने इस तथ्य को भी ध्यान में रखा कि चिकित्सा साक्ष्य अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन नहीं करते हैं क्योंकि पीड़िता की जांच करने वाले डॉक्टर को पीड़िता के शरीर पर कोई चोट नहीं मिली और उसने यौन हमले से संबंधित कोई राय नहीं दी।
न्यायालय ने यह भी अवलोकन किया कि वर्तमान मामले में आरोपी को झूठा फंसाना भी संभव है क्योंकि शिकायतकर्ता एक हत्या के मामले में शामिल था और उसी के संबंध में आरोपी ने उसे फटकार लगाई थी और इस कारण से, आरोपी ने दलील दी थी कि उसे वर्तमान दुष्कर्म के मामले में झूठा फंसाया गया है।
नतीजतन, यह देखते हुए कि आरोपी स्पष्ट रूप से संदेह का लाभ पाने का हकदार है, अदालत ने उसे बलात्कार के आरोपों से बरी कर दिया।
प्रतिनिधत्वः
अपीलकर्ता के वकील- राजेश कुमार सिंह, राजीव लोचन शुक्ला, वरिष्ठ एडवोकेट, तरुण कुमार श्रीवास्तव
प्रतिवादी के वकील- जी.ए., पवन कुमार श्रीवास्तव, आर.बी. सहाय, संजय श्रीवास्तव, शैलेंद्र कुमार द्विवेदी
केस टाइटल - अजीत सिंह कांस्टेबल बनाम स्टेट ऑफ यूपी व अन्य,आपराधिक अपील संख्या - 7478/2018
साइटेशन-2023 लाइव लॉ (एबी) 4
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