उत्पीड़न के संबंध में अस्पष्ट आरोप प्रथम दृष्टया आईपीसी धारा 498ए के तहत अपराध नहीं बनता: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2022-03-25 08:31 GMT

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट (Andhra Pradesh High Court) ने हाल ही में फैसला सुनाया कि जब दहेज उत्पीड़न के मामले में पति के रिश्तेदारों के खिलाफ कोई विशेष आरोप नहीं लगाया जाता है, तो यह प्रथम दृष्टया भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए के तहत अपराध नहीं बनता है।

क्या है पूरा मामला?

याचिकाकर्ताओं के खिलाफ भारतीय दंड संहिता यानी 498A (पति या पति के रिश्तेदार को क्रूरता के अधीन करने के लिए सजा), 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना), 34 (सामान्य इरादा) के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था।

याचिकाकर्ताओं को उनकी गिरफ्तारी की स्थिति में जमानत के लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 के तहत आपराधिक याचिका दायर की गई थी।

पहला आरोपी मृतका का पति है। याचिकाकर्ता जो दूसरे और तीसरे आरोपी हैं, वे पहले आरोपी के माता-पिता हैं। यह तर्क दिया गया कि पति के साथ-साथ माता-पिता ने भी अवैध मांगों के साथ मृतक के साथ क्रूरता की थी। प्रताड़ना सहन न कर पाने के कारण उसने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।

याचिकाकर्ताओं/अभियुक्तों के वकील यह प्रस्तुत करेंगे कि उनके खिलाफ कोई विशेष आरोप नहीं लगाया गया है जो आरोपी पति के माता-पिता हैं।

यह प्रस्तुत किया गया कि उनके खिलाफ केवल अस्पष्ट आरोप लगाए गए हैं और उन्हें अपराध में झूठा फंसाया गया है। इसलिए उन्होंने अग्रिम जमानत देने की गुहार लगाई।

अतिरिक्त लोक अभियोजक ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कुछ आरोप लगाए गए हैं कि वे मृतक को परेशान करते थे क्योंकि उन्हें अपने बेटे की शादी इस लड़की के साथ कराना पसंद नहीं था। वह इस तरह के उत्पीड़न को सहन करने में असमर्थ थी। इन सब वजहों से उसने आत्महत्या कर ली।

कोर्ट का अवलोकन

अदालत ने पाया कि रिकॉर्ड से, आरोपी पति के माता-पिता के खिलाफ कथित उत्पीड़न के बारे में कोई विशेष आरोप नहीं लगाया गया है, जो कि मृतक द्वारा किसी अतिरिक्त दहेज की मांग करने के कारण हो।

केवल यह आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता मृतक को अपने बेटे से शादी करना पसंद नहीं करते थे और इस तरह वे इस संबंध में उसके खिलाफ टिप्पणी करते थे और उसे परेशान करते थे। उक्त आरोप प्रथम दृष्टया आईपीसी की धारा 498ए के तहत दंडनीय अपराध का कारण नहीं बनते हैं। उक्त अस्पष्ट आरोप के अलावा अतिरिक्त दहेज की अवैध मांग करने के संबंध में कोई विशेष आरोप नहीं हैं।

अदालत ने मामले के तथ्यों में आपराधिक याचिका को स्वीकार कर लिया और अग्रिम जमानत दे दी।

केस का शीर्षक: गुडीमेटला श्रीनिवासुलु बनाम आंध्र प्रदेश राज्य

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