उत्तर-प्रदेश में आए प्रवासियों के संबंध में अधिक व्यवथित ढंग से कार्य किया जा सकता है', इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को दिए निर्देश

Update: 2020-05-16 01:45 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को उत्तर-प्रदेश में दूसरे प्रदेशों आए प्रवासियों के संबंध में उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश जारी किए हैं। कोर्ट ने अस्पतालों के सम्बन्ध में राज्य सरकार से जानकारी मांगी है और यह सुनिश्चित करने को कहा है कि अस्पतालों एवं प्राथमिक चिकित्सालयों में मामूली सर्दी और फ्लू से लेकर दिल के दौरे तक के रोगियों का इलाज करने के लिए पर्याप्त सुविधाएं हों।

मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा की खंडपीठ ने 14-मई-2020 के अपने आदेश में यह देखा कि अदालत के पिछले आदेश (11-मई-2020 के) में अदालत द्वारा न केवल ऐसे अस्पतालों (जो COVID -19 रोगियों का इलाज कर रहे थे) की स्थिति के बारे में जानने का इरादा किया था, बल्कि अदालत का इरादा यह भी जानने का था कि आखिर अन्य सरकारी अस्पतालों में क्या सुविधाएं मौजूद थीं।

यही कारण था कि अदालत ने राज्य सरकार से, प्रयागराज शहर के न केवल प्राइवेट अस्पतालों, बल्कि अन्य सरकारी अस्पतालों की भी स्थिति पूछी थी। विभिन्न समाचार ख़बरों से एकत्रित जानकारी की रौशनी में, अदालत ने यह देखा था कि शहर के निजी नर्सिंग होम को उनके O.P.Ds. को चलाने से प्रतिबंधित किया गया है।

अदालत ने अपने आदेश में इस बात पर गौर किया कि,

"ऐसे अस्पताल, अपने नियमित अस्पताल नहीं चला रहे थे और इसलिए यह देखा जाना चाहिए कि सरकारी अस्पतालों को आज न केवल COVID -19 रोगियों की आवश्यकताओं की ठीक से पूर्ती करनी चाहिए, बल्कि अन्य रोग से पीड़ित रोगियों के लिए भी उनके पास सुविधाएं मौजूद होनी चाहिए।"

अदालत ने अपने आदेश में आगे यह भी देखा कि,

"अस्पतालों एवं प्राथमिक चिकित्सालयों के पास मामूली सर्दी और फ्लू से लेकर दिल के दौरे तक के रोगियों का इलाज करने के लिए पर्याप्त सुविधाएं होनी चाहिए। यह निजी अस्पतालों की आवश्यकता को कम करेगा, और यह भी सुनिश्चित करेगा कि बड़े पैमाने पर जनता को अच्छा इलाज, उचित दरों पर मिल सके।"

14-मई-2020 के अपने आदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इन सभी बातों के मद्देनजर, अस्पतालों के सम्बन्ध में राज्य सरकार को निम्नलिखित जानकारी देने के लिए कहा:-

(i) क्या कारण है कि राज्य सरकार के विभिन्न आदेशों और निर्देशों के बावजूद, जिनमे COVID -19 अस्पतालों को साफ और स्वच्छ रखने को कहा गया है, उन्हें न तो साफ किया जाता है और न ही सैनीटाईज किया जाता है। यह तथ्य कि इन केंद्रों को साफ नहीं किया जा रहा है, श्री गौरव गौड़ (अधिवक्ता) के लिखित सबमिशन में संलग्न विभिन्न तस्वीरों से स्पष्ट है। 12-मई-2020 को 'अमर उजाला' में छपी खबर के अनुसार भी यह स्पष्ट है कि COVID-19 के लिए और अन्य कारणों से अस्पतालों में खुद का परीक्षण करवाने जा रहे रोगियों द्वारा शारीरिक दूरी (physical distancing) नहीं बनायी जा रही है।

(ii) राज्य यह भी सूचित करे कि प्रयागराज में टी। बी। सप्रू अस्पताल, कॉल्विन अस्पताल और 105 अन्य सामुदायिक चिकत्सालय में अत्याधुनिक चिकित्सा सुविधाएं क्यों उपलब्ध नहीं कराई जा रही हैं।

(iii) जब राज्य को वर्तमान समय में, सभी गैर-COVID-19 रोगियों की आवश्यकताओं की पूर्ती करनी है, क्योंकि निजी अस्पताल वास्तव में गैर-कार्यात्मक हो गए हैं, तो राज्य के अस्पतालों में अन्य सभी आवश्यक सुविधाएं होनी चाहिए, जैसे कि, विभिन्न मशीने, परीक्षण सुविधाएँ और डॉक्टर। प्राप्त निर्देशों से यह पता चलता है कि एस।आर।एन। अस्पताल के अलावा अन्य अस्पतालों में ICU नहीं है।

अदालत ने कहा कि

"ऐसी परिस्थितियों में, निश्चित रूप से राज्य को सूचित करना होगा कि वे किस तारीख तक कॉल्विन/एम.एल.एन अस्पताल, टी.बी. सप्रू अस्पताल/बेली अस्पताल और अन्य प्राथमिक और सामुदायिक चिकित्सा केंद्रों में अत्याधुनिक चिकित्सा सुविधा प्राप्त कर सकेंगे। इसमें कुछ वित्तीय बाधाएं हो सकती हैं, जिनके लिए हम राज्य सरकार और केंद्र सरकार में उपयुक्त प्राधिकरणों से यह अनुरोध करते हैं कि वे आवश्यक रूप से आवश्यक वित्तीय सहायता का विस्तार करें।"

प्रदेश में बाहर से आ रहे लोगों के लिए राज्य सरकार को दिए गए निर्देश

उत्तर-प्रदेश राज्य में बाहर से आ रहे लोगों के सम्बन्ध में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से निम्नलिखित सुझावों को अपने दिशानिर्देश में शामिल करने के लिए कहा है:-

I. उत्तर प्रदेश राज्य में प्राधिकरण ऐसे व्यक्तियों की एक समग्र सूची बना सकता है, जो लॉकडाउन लागू होने के बाद उत्तर प्रदेश राज्य में प्रवेश किये हैं – भले वे प्रवासी मजदूर हों या कोई और।

II. ऐसी सूची तैयार होने के बाद, प्रत्येक 400 व्यक्तियों पर, जो लॉकडाउन के बाद उत्तर प्रदेश राज्य में आ गए होंगे, एक जिम्मेदार अधिकारी नियुक्त किया जाएगा।

III. वे सभी अधिकारी (जिनके अधीन 400 व्यक्तियों का एक समूह होगा, जिन्होंने उत्तर प्रदेश राज्य में लॉकडाउन के बाद प्रवेश किया था) जिन्हें ऐसे लोगों की देखभाल देखने के लिए नियुक्त किया जाएगा, वो ऐसे 400 व्यक्तियों की सूची बनाए रखेंगे और:

(a) मोबाइल नंबरों (जिसकी सूची को इन अधिकारीयों द्वारा बनाये रखा जायेगा) के माध्यम से उनकी सलामती (WELL-BEING) के बारे में पूछताछ करेंगे।

(b) अधिकारी, दैनिक आधार पर अपनी सूची में दर्ज किए गए व्यक्तियों के स्वास्थ्य के बारे में पूछताछ करेंगे।

(c) अधिकारी, यदि वे पाते हैं कि सूची में मौजूद लोगों में से किसी को भोजन उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है, तो वे उचित व्यवस्था करेंगे कि उन्हें भोजन उपलब्ध हो।

IV. यदि किसी भी संयोग से, निजी वाहनों पर विभिन्न राजमार्गों के माध्यम से प्रदेश में प्रवेश करने वाले किसी व्यक्ति को लोकेट नहीं किया गया है उसका नाम सूची में नहीं है और जानकारी दी जाती है कि ऐसे व्यक्ति/व्यक्तियों ने यूपी राज्य में प्रवेश किया है, या किया था, तो फिर उस व्यक्ति का नाम, अन्य राज्यों से उत्तर प्रदेश राज्य में आये प्रवासियों की सूची में शामिल किया जाएगा।

V. यदि उत्तर-प्रदेश राज्य में रहने वाला कोई भी नागरिक ऐसा पाता है कि कोई व्यक्ति है जो उत्तर-प्रदेश राज्य के बाहर से आया है और उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा देखा नहीं जा रहा है, तो वह राज्य के अधिकारियों को तुरंत सूचित कर सकता है।

VI. यदि उत्तर-प्रदेश राज्य का कोई निवासी ऐसा महसूस करता है कि कोई अज्ञात व्यक्ति, उसके पड़ोस में रह रहा है, तो उसे तुरंत राज्य के अधिकारियों को सूचित करना चाहिए। इस प्रयोजन के लिए राज्य, उन मोबाइल नंबरों को प्रचारित कर सकता है, जहां सूचना भेजी जा सकती है।

VII. राज्य के अधिकारियों द्वारा यह देखा जाएगा कि उत्तर प्रदेश राज्य में प्रत्येक प्रवासी को कम से कम 15 दिनों के लिए उचित रूप से क्वारंटीन (Quarantine) किया जाए, और क्वारंटीन (Quarantine) परिसर में भोजन और चिकित्सा सुविधाओं के साथ उचित स्वच्छता भी होनी चाहिए।

अदालत ने राज्य सरकार के प्रयासों को किया रेखांकित

अदालत ने अपने आदेश में राज्य सरकार द्वारा बाहर से आ रहे लोगों की सूची को बनाने में किये जा रहे प्रयासों को रेखांकित किया, हालाँकि अदालत ने यह भी कहा कि राज्य द्वारा किए जा रहे कार्यों को और व्यवस्थित/संगठित ढंग से किया जा सकता है।

अदालत ने कहा कि

"हमारे पास यह मानने का कोई कारण नहीं है कि उत्तर प्रदेश राज्य ने बाहर से आने वाले सभी लोगों की सूची तैयार करने में उचित देखभाल नहीं की है। हमारे पास यह मानने का भी कोई कारण नहीं है कि उत्तर प्रदेश राज्य, उन लोगों को उचित बोर्ड और आवास उपलब्ध नहीं करा रहा है, जो उत्तर प्रदेश राज्य के बाहर से आए हैं। हालाँकि, हम पूरी ईमानदारी से यह मानते हैं कि उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा जो भी काम किया जा रहा है, वह अधिक संगठित/व्यवस्थित (Organised) तरीके से किया जा सकता है।"

अदालत ने आगे अपने आदेश में राज्य को निर्देश देते हुए कहा कि,

"यह जाँचने के लिए कि क्या ऐसी कोई सूची तैयार की गई है और क्या हर चार सौ प्रवासियों के लिए एक जिम्मेदार अधिकारी को नियुक्त किया गया है, अगली तारीख पर विस्तृत निर्देश पेश किए जा सकते हैं।"

क्वारंटीन केंद्रों की अस्वच्छता और अमानवीय स्थिति पर लिया था संज्ञान

दरअसल बीते 7 मई 2020 (गुरुवार) को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश राज्य के विभिन्न क्वारंटीन केंद्रों की अस्वच्छता और अमानवीय स्थितियों के बारे में संज्ञान लिया था।

मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा की एक खंडपीठ ने क्वारंटीन केंद्रों पर "दयनीय परिस्थितियों" को उजागर करते हुए हाईकोर्ट के अधिवक्ता गौरव के द्वारा भेजे गए ई-मेल के आधार पर एक जनहित याचिका दर्ज की थी।

इस ईमेल के जरिये अदालत को यह बताया था कि पेशे से इंजीनियर वीरेंद्र सिंह ने हाल ही में COVID 19 संक्रमण के कारण दम तोड़ दिया था। वीरेंद्र सिंह की पत्नी ने टेलीफोन पर अधिवक्ता गौरव गौर को यह भी सूचित किया कि क्वारंटीन केंद्र, जहां वह और उनके परिवार के अन्य सदस्य ठहरे थे, वहां पर्याप्त स्वच्छता नहीं रखी गई थी।

मामले की पिछली सुनवाई में (11-मई-2020 को) अदालत ने यह पाया था कि अदालत को ई-मेल द्वारा प्राप्त निर्देशों के अनुसार, राज्य द्वारा क्वारंटाइन केंद्रों को बेहतर बनाने के लिए पर्याप्त कदम उठाए गए हैं। अदालत को श्री वी। के। सिंह को दिया गया इलाज भी उचित प्रतीत हुआ था।

अदालत ने आगे अपने आदेश में यह भी देखा था कि, "हालाँकि, जैसा कि हम इलाज के संबंध में राज्य की तैयारियों के बारे में नहीं जानते हैं, जो राज्य ऐसे लोगों को, जो COVID-19 से आगे प्रभावित हो रहे हैं, उन्हें प्रदान करने का इरादा रखता है, इसलिए हम इस जनहित याचिका के साथ आगे बढ़ रहे हैं।"

इसके बाद अदालत ने यूपी सरकार से यह पूछा था कि COVID-19 से लड़ने के लिए इलाहाबाद शहर के अस्पताल कितने तैयार हैं। अदालत ने प्रयागराज/इलाहाबाद शहर के अस्पतालों की एक सूची देते हुए राज्य सरकार से यह पूछा था और सूचित करने का आदेश दिया था कि आखिर उन अस्पतालों में कुछ मूलभूत सुविधाएँ/मशीनें मौजूद हैं अथवा नहीं।

अदालत ने अपने आदेशं में यह भी कहा था कि "राज्य को इन अस्पतालों में काम करने वाले योग्य डॉक्टरों और नर्सों (इंटर्न के अलावा) की संख्या की भी जानकारी देनी होगी। प्रत्येक अस्पताल के विवरण के साथ यह भी बताया जाना होगा कि अस्पताल परिसर को किस प्रकार से सेनिटाईज़ एवं साफ किया जा रहा है।"

यह मामला अब सुनवाई हेतु 18-मई-2020 के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

मामले का विवरण:

केस का शीर्षक: In-Re Inhuman Condition At Quarantine Centres And For Providing Better Treatment To Corona Positive Respondent

केस नं. : पीआईएल संख्या 574/2020

कोरम: मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा

उपस्थिति: वकील गौरव कुमार गौड़ (याचिकाकर्ता के लिए)

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