(अनलॉक 2) 'लोगों में एक गलत धारणा बन गई है कि अब वे एक-दूसरे के साथ खुलकर मिल सकते हैं' : इलाहाबाद हाईकोर्ट का सुझाव, फिजिकल डिस्टेंसिंग नियमों का पालन न करने वालों को जेल भेजा जाए
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को उत्तर प्रदेश सरकार को सुझाव दिया है कि फिजिकल डिस्टेंसिंग (शारीरिक दूरी) के मानदंडों का पालन न करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए, जिसमें उनको जेल भेजना भी शामिल है।
यह सुझाव न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति अजीत कुमार की खंडपीठ ने दिया है। पीठ के समक्ष बताया गया था कि लोग आपस में एक-दूसरे के साथ ''खुलकर मिल रहे हैं'' और मास्क पहनने और हाथ धोने आदि जैसी सावधानी नहीं बरत रहे हैं।
पीठ ने कहा कि-
''हालांकि हम देख रहे हैं कि अर्थव्यवस्था की हालत फिर से सुधर रही है, परंतु हम विभिन्न समाचार रिपोर्टों से यह भी देख रहे हैं कि COVID-19 वायरस का संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है। संभवतः इसका कारण यह है कि उत्तर प्रदेश राज्य के निवासियों ने ''अनलाॅक-2'' की अवधारणा को ठीक से समझा नहीं है। किसी भी वजह से अनलॉक -2 के कारण, हमारे लोगों में एक गलत धारणा बन गई है कि वे अब एक-दूसरे के साथ खुलकर मिल सकते हैं और घूम सकते हैं।''
इसलिए पीठ ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह एक ऐसी ''योजना'' बनाए ताकि फिजिकल डिस्टेंसिंग की अवधारणा को उसके सही अर्थ व मूल भावना के साथ लागू किया जा सकें।
पीठ ने यह भी कहा कि-
''हम यह सुझाव देने में भी संकोच नहीं करेंगे कि जेल में बंद करने और भारी जुर्माना लगाने के बारे में भी सोचा जाए। हम यह नहीं समझ पा रहे हैं कि क्यों उत्तर प्रदेश महामारी रोग COVID-19 विनियम 2020 को ठीक से लागू नहीं किया जा रहा है? जबकि इन विनियम के तहत भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत स्पष्ट रूप से कार्रवाई की परिकल्पना की गई है या प्रावधान किया गया है। हम यह भी नहीं समझ पा रहे हैं कि सीआरपीसी की धारा 144 का उपयोग क्यों नहीं किया जा रहा है,जबकि हमें बताया गया है कि यह धारा लागू की हुई है।''
इन परिस्थितियों में अतिरिक्त महाधिवक्ता मनीष गोयल ने अदालत को आश्वासन दिया कि इस मुद्दे पर एक उच्च स्तरीय समिति द्वारा निर्णय लिया जाएगा।
कोर्ट ने कहा कि-
''हम उम्मीद करते हैं कि यूपी राज्य के निवासी फिजिकल डिस्टेंसिंग के मुद्दे के प्रति संवेदनशील बनेंगे। हम यह भी उम्मीद करते हैं कि राज्य के निवासी न केवल फिजिकल डिस्टेंसिंग बनाए रखेंगे, बल्कि राज्य के बाहर से आने वाले उन व्यक्तियों के बारे में प्रशासन को जानकारी प्रदान करके मदद भी करेंगे,जो फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं कर रहे हैं और न ही अपने आप को क्वारंटाइन कर रहे हैं।''
इसी बीच, पीठ ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि निम्न तथ्यों पर एक ब्लू प्रिंट तैयार करें
-निजी नर्सिंग होम में कोरोना का उपचार उपलब्ध कराने की नीति
-प्लाज्मा उपचार के बारे में योजना
-प्रयोग किए जा चुके मास्क के सिस्टेमिक डिस्पोजल के लिए एक विस्तृत योजना।
सोमवार तक उत्तर प्रदेश राज्य में 38130 COVID-19 मामले की पुष्टि को चुकी थी। इस संक्रमण के कारण राज्य में 955 मौत हुई हैं। बिगड़ती परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, राज्य सरकार ने हर सप्ताहांत पर लॉकडाउन लगाने का फैसला किया है।
मामले का विवरण-
केस का शीर्षक- In-Re क्वारंटीन केंद्रों में अमानवीय स्थिति और कोरोना पॉजिटिव रिस्पॉन्डेंट को बेहतर उपचार प्रदान करने के लिए
केस नंबर-पीआईएल संख्या 574/2020
कोरम-न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति अजीत कुमार
प्रतिनिधित्व- वकील गौरव कुमार गौर, रिशु मिश्रा और एसपीएस चौहान (याचिकाकर्ता के लिए),एएसजीआई शशि प्रकाश सिंह साथ में अधिवक्ता पूर्णेंदु कुमार सिंह (भारत संघ के लिए) ,एएजी मनीष गोयल साथ में एडवोकेट एके गोयल (राज्य के लिए)