शहरी स्‍थानीय निकाय चुनाव| ओबीसी कोटा के लिए 'ट्रिपल टेस्ट' औपचारिकता पूरी की गई, उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को बताया

Update: 2022-12-20 12:49 GMT

उत्तर प्रदेश में निकायों चुनावों में मुद्दे पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में हो रही सुनवाई में उत्तर प्रदेश सरकार मंगलवार को बताया कि वह शहरी स्थानीय निकाय चुनावों (Urban Local Body Election) में ओबीसी कोटा की स्थापना के लिए सुप्रीम कोर्ट के 'ट्रिपल टेस्ट' जनादेश का अनुपालन कर रही है।

राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के समक्ष एक प्रस्तुतिकरण दिया कि 2017 में उन्होंने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए कए सर्वेक्षण किया था, जिसे निकाय चुनावों में ओबीसी के लिए प्रस्तावित आरक्षण के आधार के रूप में माना जा सकता है।

प्रस्तावित कोटा के आधार के रूप में मानने का कारण यह है कि सरकार ने विकास किशनराव गवली बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य, एलएल 2021 एससी 13 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तीन कसौटियों निर्धारण किया है, जिसका अनुपालन सरकार कर रही है।

उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा था कि क्या शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव के उद्देश्य से सीटों को आरक्षित करने की प्रक्रिया में, राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनिवार्य 'ट्रिपल टेस्ट' औपचारिकताओं को पूरा किया गया, जिसके जवाब में राज्य सरकार ने आज प्रस्तुतिकरण दिया।

जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस सौरभ श्रीवास्तव की पीठ वर्तमान में वैभव पांडे और अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें राज्य सरकार की 5 दिसंबर की अधिसूचना को चुनौती दी गई है, जिसमें मसौदा आदेश में शहरी स्थानीय निकाय चुनाव में कोटा सुनिश्चित करने के लिए आपत्तियां मांगी गई थी।

याचिकाकर्ता इस तथ्य से व्यथित हैं कि विकास किशनराव के मामले में निर्धारित 'ट्रिपल टेस्ट' औपचारिकताओं को पूरा नहीं करने के बावजूद उत्तर प्रदेश सरकार अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए राज्य में 4 मेयर सीटें आरक्षित करने के बाद शहरी स्थानीय निकाय चुनाव कराने का इरादा रखती है।

संदर्भ के लिए, विकास किशनराव गवली मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ओबीसी श्रेणी के लिए आरक्षण का प्रावधान करने से पहले ट्रिपल टेस्ट का पालन करना आवश्यक है। उक्त ट्रिपल टेस्ट के अनुसार-

(1) राज्य के भीतर स्थानीय निकायों के रूप में पिछड़ेपन की प्रकृति और निहितार्थों की एक समकालीन कठोर अनुभवजन्य जांच करने के लिए एक समर्पित आयोग की स्थापना करना;

(2) आयोग की सिफारिशों के आलोक में स्थानीय निकाय-वार प्रावधान किए जाने के लिए आवश्यक आरक्षण के अनुपात को निर्दिष्ट करना, ताकि अतिव्याप्ति का उल्लंघन न हो; और

(3) अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित कुल सीटें, कुल 50 प्रतिशत से अधिक न हो।

इस पृष्ठभूमि में पिछले हफ्ते मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा था कि क्या राज्य सरकार 5 दिसंबर को अपने मसौदा आदेश को पेश करने से पहले 'ट्रिपल टेस्ट' की औपचारिकता पूरी किया था।

इसके जवाब में, सचिव, शहरी विकास विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार ने एक जवाबी हलफनामा दायर किया है, जिसमें कहा गया है:

* 7.4.2017 को जारी शासनादेश के संदर्भ में विस्तृत प्रक्रिया सहित आगामी स्थानीय निकाय चुनाव कराने के लिए पिछड़े वर्गों की आबादी की पहचान करने के लिए सरकार ने दिशा-निर्देश और निर्देश जारी किए थे। (ट्रिपल टेस्ट की पहली आवश्यकता)

"स्थानीय निकायों के चुनावों के उद्देश्य से पिछड़े वर्गों की आबादी की पहचान के लिए सरकार की ओर से 7.4.2017 को जारी आदेश में प्रदान की गई व्यवस्था, जिसका पालन आगामी चुनावों के लिए किया गया था, समसामयिक अनुभवजन्य डेटा के संग्रह के लिए एक निष्पक्ष और पारदर्शी तरीका है।

अन्य पिछड़ा वर्ग के संबंध में निवेदन है कि 7.4.2017 को जारी शासनादेश में उपलब्ध तंत्र के अनुसार अनुभवजन्य डेटा एकत्र करने के लिए किए गए व्यापक अभ्यास के आधार पर, संबंधित जिलाधिकारियों ने अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आनुपातिक आरक्षण की सिफारिश की है।

यह विनम्रतापूर्वक प्रस्तुत किया जाता है कि अन्य पिछड़े वर्गों की पहचान की उक्त कवायद विकास किशन राव गवली बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य के मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की भावना और उद्देश्य के अनुरूप है।"

* कि ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूले की दूसरी कसौटी अन्य पिछड़े वर्गों को आनुपातिक आरक्षण के संबंध में है जो उत्तर प्रदेश राज्य में वैधानिक रूप से प्रदान किया गया है और उत्तर प्रदेश राज्य में इसका सख्ती से पालन किया जा रहा है।

*50% आरक्षण की ऊपरी सीमा का तीसरा परीक्षण भी उत्तर प्रदेश राज्य में सख्ती से पालन किया जा रहा है और आरक्षण की ऊपरी सीमा का कोई उल्लंघन नहीं किया गया है।


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