विवाहित जोड़े के बीच छोटी-छोटी बातों को लेकर होने वाला मामूली चिड़चिड़ापन और विश्वास की कमी मानसिक क्रूरता नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2023-10-31 06:26 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि शादीशुदा जोड़े के बीच छोटी-छोटी बातों को लेकर होने वाली मामूली चिड़चिड़ापन और विश्वास की कमी को मानसिक क्रूरता नहीं माना जा सकता।

जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस मनोज जैन की खंडपीठ ने यह भी कहा कि सेक्स से इनकार को मानसिक क्रूरता का एक रूप माना जा सकता है, जहां यह लगातार, जानबूझकर और काफी समय तक पाया जाता है।

इसमें कहा गया कि इस तरह के आरोप की प्रकृति और मामले के व्यापक परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखते हुए इस तरह के संवेदनशील और नाजुक मुद्दे पर फैसला करते समय अदालत को अत्यधिक सतर्क रहने की जरूरत है।

इसके अलावा, खंडपीठ ने यह भी कहा कि "अपरिवर्तनीय टूटने" के कारण विवाह को समाप्त करने की शक्ति केवल सुप्रीम कोर्ट के पास है, जिसे किसी भी पक्षकार द्वारा अधिकार के रूप में नहीं मांगा जा सकता।

अदालत ने पत्नी द्वारा क्रूरता और परित्याग के आधार पर पति को तलाक देने के फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की।

पत्नी की अपील को स्वीकार करते हुए अदालत ने कहा कि हालांकि, कई बार कुछ पुष्ट सबूतों की मदद से शारीरिक क्रूरता के पहलू को समझना आसान हो सकता है, लेकिन मानसिक क्रूरता का आकलन करने के लिए कोई मानक पैमाना नहीं है।

अदालत ने कहा,

"ऐसी कई परस्पर जुड़ी हुई परिस्थितियां हैं, जिन्हें मानसिक क्रूरता के तत्व का आकलन करने के लिए सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है।"

पति के मुताबिक, पत्नी को उसके साथ वैवाहिक घर में रहने में कोई दिलचस्पी नहीं है। उसने आरोप लगाया कि वह किसी न किसी बहाने से उसे छोड़ देती है और उसकी रुचि "कोचिंग सेंटर चलाने" में है। वह चाहती है कि वह उसके साथ अपने माता-पिता के घर में "घर-जमाई" के रूप में रहे।

अदालत ने कहा कि पति को घर जमाई के रूप में रहने के लिए कहने का पहलू साबित नहीं हुआ। इसका कोई मतलब नहीं है, क्योंकि वह इस तरह के प्रस्ताव से सहमत नहीं था और दोनों पक्षकार किराए के मकान में एक साथ रहते हैं।

पति का यह भी मामला था कि पत्नी ने उसके खिलाफ झूठी और दुर्भावनापूर्ण एफआईआर दर्ज कराई। इस तरह की एफआईआर दर्ज करना क्रूरता के समान है। उन्होंने यह भी दावा किया कि एफआईआर में झूठ होना और भी साबित हो गया, क्योंकि आपराधिक मामले में बरी कर दिया गया, जो अंतिम चरण में पहुंच गया था।

अदालत ने कहा,

“निस्संदेह, चूंकि पत्नी ने अपने पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ शिकायत दर्ज की और अपनी शिकायत में क्रूरता के विभिन्न उदाहरणों का संदर्भ दिया, इसलिए उसे विटनेस बॉक्स में आना चाहिए था और खुद को क्रॉस एक्जामिनेश के लिए उपलब्ध कराना चाहिए था। उसी समय केवल इसलिए कि वह विटनेस बॉक्स में नहीं आती है और उसकी गवाही अधूरी रही, इसका मतलब यह नहीं होगा कि उसकी शिकायत झूठ का पुलिंदा है या उसने झूठा और परेशान करने वाला मुकदमा चलाया।”

इसमें कहा गया कि केवल इसलिए कि पत्नी ने अपनी शिकायतों के निवारण के लिए पुलिस से संपर्क किया और उसकी शिकायत के आधार पर एफआईआर दर्ज की गई, जिसमें आरोपियों को अंततः संदेह का लाभ दिया गया, यह मानने के समान नहीं होगा कि ऐसे मामले का पंजीकरण क्रूरता है।

अदालत ने कहा,

“पक्षकार किराए के आवास पर एक साथ रहीं लेकिन आपसी विश्वास का पुनरुद्धार नहीं हुआ। ऐसी स्थिति में यह महज वैवाहिक बंधन में सामान्य टूट-फूट का मामला है। ऐसा कुछ भी नहीं है, जो यह पुष्टि करता हो कि पत्नी का आचरण इस प्रकार का है कि उसके पति के लिए उसके साथ रहना अब संभव नहीं है। मामूली चिड़चिड़ाहट और विश्वास की कमी को मानसिक क्रूरता के साथ भ्रमित नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने यौन संबंध से इनकार करने के संबंध में पति के "अविशिष्ट और निराधार आरोपों" को भी स्वीकार करने से इनकार कर दिया।

इसमें कहा गया,

"पति को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि दोनों पक्षकारों के बीच बार-बार गलतफहमियां हो रही हैं और दोनों पक्षकारों की ओर से किसी तरह साथ रहने की कोशिश की जा रही है। ऐसी स्थिति में पहला प्रयास यह सुनिश्चित करना चाहिए कि दोनों पक्षकारों के बीच सीधे शारीरिक संबंध बनाने के बजाय आपसी विश्वास के ज़रिये फिर से रिश्ते की बहाली सुनिश्चित की जाए। एक बार जब विश्वास आ जाता है तो कुछ चीजें स्वाभाविक रूप से घटित होती हैं।''

केस टाइटल: एक्स बनाम वाई

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